कोरोना वायरस संक्रमण में संकटमोचक के रूप में योगी
प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार कदम से कदम मिलाकर चल रही है। इनका प्रयास सभी का संकट दूर करना है। इसी क्रम में योगी आदित्यनाथ सरकार रोजगार तक की व्यवस्था करने में भी सबसे आगे हैं तथा अब हर रेहड़ी - पटरी दुकानदार को उदार शर्तों पर दस हजार रुपया देगी। जिससे कि वह अपना व्यवसाय फिर से शुरू कर सके और आत्मनिर्भर बने। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रेहड़ी - पटरी दुकानदारों के लिए संकटमोचक बन गए हैं। मुख्यमंत्री योगी कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लॉकडाउन से पटरी से उतरी व्यवस्था को सुधारने में लगी नरेंद्र मोदी सरकार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक पैकेज से नगरीय क्षेत्रों में पटरी व रेहड़ी दुकानदारों को सीएम योगी आदित्यनाथ 10- 10 हजार रुपये तक लोन देने में युद्धस्तर पर जुटे हैं। प्रदेश में आसानी से लोन दिलाने के लिए मुख्यमंत्री टीम-11 के साथ रणनीति भी बना रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को टीम-11 के साथ कोरोना वायरस संक्रमण की समीक्षा करने के साथ ही आगे की योजना तैयार की। इस दौरान उन्होंने हर विभाग को काम में तेजी लाने का निर्देश भी दिया। प्रदेश सरकार का मानना है कि कोरोना वायरस संक्रमण के नाते हुए लॉकडाउन की सर्वाधिक मार रेहड़ी, ठेला, खोमचा या पटरी के किनारे अन्य कारोबार करने वालों पर पड़ा है। अब प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इनकी जिंदगी को दुबारा से पटरी पर लाने की मुहिम में जुट गयी है। इस क्रम में जो भी पटरी व्यवसायी चाहेगा सरकार उसे उदार शर्तों पर 10 हजार तक का लोन उपलब्ध कराएगी। सरकार अब तक के लॉकडाउन के दौरान करीब 8.41 लाख पटरी व्यवसायियों को भरण-पोषण भत्ते के रूप में 1000 रूपये और खाद्य पदार्थ उपलब्ध करा चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा प्रदेश होने के नाते उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिकों एवं कामगारों की संख्या भी अधिक है। इसके बाद भी घर वापस आने वाले किसी भी श्रमिक को कोई दिक्कत न हो इसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है। मेरी अपील है कि खुद और अपने परिवार को जोखिम में डालकर पैदल, दोपहिया वाहन से घर के लिए न चलें। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमारे कामगार और श्रमिक हमारी ताकत और पूंजी हैं। हम इनके श्रम और हुनर का हरसंभव उपयोग कर प्रदेश को देश और दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाएंगे। सबके सुरक्षित वापसी की व्यवस्था में सरकार हर संभव व्यवस्था कर रही है। 70 ट्रेनें देश के विभिन क्षेत्रों से प्रवासी कामगारों व श्रमिकों को लेकर उत्तर प्रदेश पहुंची हैं। एक सप्ताह में करीब साढे छह लाख श्रमिक अपने घर आ चुके हैं। इस दौरान पूरे देश के लिए जो 350 ट्रेनें चलायी गयीं उनमें से 60 फीसद की मंजिल उत्तर प्रदेश ही थी। राज्य परिवहन निगम की 10 हजार से अधिक बसें भी लगातार इस काम में लगीं थी । देश के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 13 लाख लोग सुरक्षित वापस आ चुके हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रवासी श्रमिक/कामगार के आने के बाद सबके स्वास्थ्य की जांच के लिए क्वारंटीन सेंटर हैं। स्वास्थ्य के बाद सभी स्वस्थ्य व्यक्ति को हजार रुपये भरण-पोषण भत्ते और तय मात्रा में राशन देकर उनको होम क्वारंटीन के लिए घर पहुंचाया जाता है। संदिग्ध को पूरी जांच के लिए वहीं आइसोलेट कर लेते हैं। कोरोना काल में योगी आदित्यनाथ द्वारा उठाए जा रहे कदम सकारात्मक राजनीति की तरफ बढ़ते कदम हैं। योगी आदित्यथनाथ के नेतृत्वम में यूपी अन्यड प्रदेशों की तुलना में सबसे आगे खड़ा है। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘चैरिटी बीगिन्स एट होम’। इसका हिन्दी रूपांतर है परोपकार घर से आरंभ होता है। यह कहावत बताने के पीछे का मक़सद उस बात की तरफ ध्यान आकर्षित करने का है जो आज सबसे अधिक चर्चा में है। कोविड-19 जैसी महामारी से लड़ाई को तेज़ और सफल बनाने की दृष्टि से स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह पहल की कि अगर जरूरत पड़े तो जरूरी दवाइयाँ और मशीन लाने के लिए राज्य सरकार के अधीन हवाई जहाज़ का इस्तेमाल किया जाये। ऐसा इसलिए क्यूंकि लॉकडाउन के चलते सारे आवागमन के साधनों पर रोक लगी हुई है। मुख्यमंत्री का यह मानना है कि कोविड-19 की लड़ाई में लॉजिस्टिक्स किसी भी तरह से अवरोधक न बने। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने यह आदेश दिया। वैसे सुनने में तो यह आदेश बहुत साधारण सी बात लगती है पर अगर इसको दूसरे परिपेक्ष में देखा जाये तो यह भी अपने आप में एक अप्रत्याशित आदेश जान पड़ता है। हम आज जिस दौर में और जिस प्रदेश में रहते हैं वहां वीवीआईपी कल्चर और स्टेटस सिम्बल पिछले दशकों में युवाओं के जीवन का मक़सद बन गया था। ज़िम्मेदारी इन युवाओं से ज्यादा नेता और प्रशाश्निक अधिकारी है जिनको इस कल्चर से और स्टेटस सिम्बल से एक अजीब सी किक मिलती रही है। खैर दौर बदला और वीवीआईपी कल्चर को सबसे बड़ा आघात उस वक़्त लगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस ओर अपना पहला कदम बढ़ाते हुए गाड़ियों के ऊपर लगी लाल और नीली बत्ती हटाये जाने का फरमान जारी किया। बहुतों ने स्वेक्षा से हटा लिया तो औरों को हटाना भी पड़ा। वो बात अलग है कि अब नेता और अधिकारी अपनी पायलट गाड़ियों के साइरन के सहारे स्टेटस मैंटेन करने की जुगाड़ के साथ चलने लगे। इस पटकथा को लिखने का मक़सद इस प्रदेश में वीवीआईपी कल्चर के महत्त को दर्शाने का है। ऐसे में कोई मुख्यमंत्री अपने इश्तेमाल किए जाने वाला सरकार हवाई जहाज को अगर कोविड-19 की लड़ाई में आमजन को बचाने के लिए जरूरी दवाएं और उपकरण लाने के लिए लगा दे तो यह अपने आप में बड़ी बात जान पड़ती है। उत्तर प्रदेश में करोना से जारी जंग में जरूरी स्वास्थ्य उपकरणों को मंगाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना सरकारी स्टेट प्लेन स्वास्थ्य विभाग के सुपुर्द कर दिया है। अगले 9 जून को ट्रूनेट मशीनों की एक खेप लेने मुख्यमंत्री का सरकारी जहाज गोवा जाएगा। ये मशीनें कोरोना जांच के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं और मुख्यमंत्री ने फौरन ये मशीनें उत्तर प्रदेश में लाने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में समय की बचत के लिए और तेजी से स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए मुख्यमंत्री का सरकारी जहाज स्वास्थ्य विभाग के काम आ रहा है। प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य उपकरणों को लाने के लिए स्टेट प्लेन की मदद ली जा रही है। लेकिन योगी सरकार के कार्यकाल में यह पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले दो बार मेडिकल इक्विपमेंट मंगाने के लिए वह अपना सरकारी जहाज बैंगलोर भेज चुके हैं। सवाल जहाज का नहीं बल्कि एक मुख्यमंत्री की नीयत, उद्देश्य और जनमानस का कल्याण सर्वोप्रिय की भावना का है। शायद यह जहाज, यह बड़ी बड़ी कारों का काफिला, यह वीवीआईपी होने का एहसास ही तो है जो नेताओं को, अधिकारियों को, मंत्रियों को और मुख्यमंत्रियों को आम आदमी से अलग करता है। अगर यह दीवार भी टूट गयी तो क्या आम और क्या खास। खैर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने तीन साल के कार्यकाल में कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे वो आम जन के मुख्यमंत्री बनकर निकले हैं। चाहे वो फिर प्रवासियों की आई अचानक भीड़ के लिए की जा रही व्यवस्था को खुद जाकर लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर देखना हो या फिर नोएडा जाकर दिल्ली से वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों की तकलीफ़ों को समझना हो या फिर अपने मठ की दीवार को जनता के लिए बन रही फोर-लाने सड़क को रास्ता देने के लिए ढहा देना हो। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार यह साबित किया है कि वो औरों से कुछ अलग हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ये कदम किसी राजनीति से प्रेरित हथकंडे है? इसके लिए योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पहले गोरखपुर सांसद के रूप में लिए गए कदमों को देखना होगा। बतौर सांसद ऐसे कई दृष्टांत सामने आते हैं जब योगी आदित्यनाथ ने ऐसे कदम उठाए जिससे वो लोगों के प्रिय नेता बनकर उभरे। चाहे वो फिर स्वास्थ संबन्धित लिए गए कदम हो या फिर शिक्षा से संबन्धित लिए गए निर्णय हो। तीन साल पहले तक गोरखपुर क्षेत्र भी उन सभी दुश्वारीयों से ग्रसित था जो उस ज़िले को एक पिछड़ा ज़िले कि श्रेणी में रखता है। पूरे पूर्वाञ्चल में वाराणसी के बीएचयू में स्थित हॉस्पिटल को छोड़ कर कोई हॉस्पिटल नहीं था। गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज कि हालत कई ज़िला हॉस्पिटलों से बदतर थी। इसी को ध्यान में रखकर योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ हॉस्पिटल का निर्माण कराया। इस हॉस्पिटल के बनने से गोरखपुर और आसपास के क्षेत्र की एक बड़ी आबादी को इसका लाभ भी हुआ। खास बात ये थी कि इस हॉस्पिटल कि ओपीडी में आने वाले मरीजों में बहुसंख्या आबादी मुस्लिम समुदाय से हुआ करती थी। यह योगी आदित्यनाथ का वो चेहरा है जो कम से कम मीडिया कि सुर्खियों मे शायद ही कभी आया हो। येही नहीं सांसद रहते हुए उन्होने कई बार गोरखपुर में एम्स बनाने के लड़ाई लड़ी और मुख्यमंत्री बनने के बाद वो लड़ाई जीत भी ली। ऐसे ही अगर शिक्षा के स्तर को सुधारने की बात करें तो गोरखनाथ मंदिर द्वारा संचालित कई विध्यालयों में आज भी एक बड़ी संख्या में समाज के उस तपके के छात्र पढ़ते हैं जो अच्छे कॉलेज में केवल इसलिए नहीं जा पाते थे क्यूंकि उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे। अपनी छवि से विपरीत योगी आदित्यनाथ के मठ में वेद की पढ़ाई भी होती है। इसमे पढ़ने वाले बच्चों मे ज़्यादातर बच्चे ब्राह्मण जाति के हैं। वापस अगर हम योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद के निर्णयों को देखें तो ये पाएंगे कि ज़्यादातर निर्णय समाज के उस वर्ग के लिए हैं जिसके बारे में राजनीति तो बहुत हुई पर वो वर्ग चुनावों में केवल वोट बैंक बनकर ही रह गया। हाल के दिनों में जिस तेजी से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेतृत्व का परिचय देते हुए कोविड-19 की लड़ाई में उत्तर प्रदेश को तैयार किया है उसने प्रदेश को किसी भी प्रदेश की तुलना में सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है। यूपी में कोरोना की जांच में तेजी आए इसके लिए मुख्यमंत्री योगी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश में अब तक तीन लाख लोगों की जांच हो चुकी है। राज्य में क्रियाशील 31 प्रयोगशालाओं में प्रतिदिन 10 हजार सैम्पल की जांच की जा रही है। मुख्यमंत्री की मंशा इसको और बढ़ाने की है। उन्होंने अधिकारियों के समक्ष 15 जून तक प्रतिदिन 15 हजार और 30 जून तक प्रतिदिन 20 हजार टेस्ट का लक्ष्य रखा है। प्रदेश सरकार ने दूसरे राज्यों से अब तक यूपी में पहुंचे 30 लाख से अधिक प्रवासी कामगार व श्रमिक के लिए क्वारंटीन सेंटर की व्यवस्था भी की है। 15 लाख की क्षमता के इन क्वारंटीन सेंटर में लोगों को गुणवत्ता परक भोजन दिया जा रहा है। इसके साथ ही इन सेंटरों में रोके गए सभी श्रमिक व कामगार की मेडिकल स्क्रिनिंग व जांच कराई गई है। मेडिकल स्क्रिनिंग में स्वस्थ मिले कामगारों एवं श्रमिकों को राशन पैकेट और 1 हजार रुपये की सहायता राशि देकर उन्हें होम क्वारंटीन में भेजा जा रहा है। इसके अलावा जो अस्वस्थ मिले उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया। अगर यह सारे निर्णय योगी आदित्यनाथ के राजनैतिक हथकंडे मात्र हैं तो भी यह उस सकारात्मक राजनीति की तरफ बढ़ते कदम की दस्तक है जिसकी आहट सुनकर अगर आने वालों नेताओं ने अपनी राजनैतिक दृष्टिकोण वोट-बैंक की राजनीति से इतर नहीं बदला तो शायद बहुत देर हो जाएगी। इन सब बातों से इतर एक बात और निश्चित है कि 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के योग को कसौटी पर परखने का चुनाव होगा इंतज़ार कीजिये!
आसान नहीं योगी आदित्यनाथ बनना
कसौटी पर खरे उतरे योगी जहाँ एक जगह मातम होता है तो वहीं दूसरी जगह थाल बजते हैं। जहाँ हर राजनीतिक घटनाएँ और योजनाएं झूठ का जलसा लगती हैं। जहाँ आस्थाएं कुछ यूं बदलती हैं मानों सूरज ने धरती के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हों। जहाँ खुद को बेहतर साबित न कर पाने पर दूसरे को बदतर बताने की होड़ मची रहती हो वहां अगर कोई राज्य प्रमुख ये कहे कि देश के सेनापति के अनुशासन में बंधे होने और प्रदेश के करोड़ों लोगों की सुरक्षा के प्रति जवाबदेही की वजह से वो अपने पिता की अंत्येष्टि पर नहीं जाएगा तो इसे राज्य प्रमुख की नैतिकता का सोपान क्यों ना माना जाए !
सूचनाएं कभी अकेले नहीं आतीं, वो हमेशा अपने साथ भावनाएं लेकर चलती हैं और मानव जीवन भी तो एक चकमक पत्थर ही है, जब भी घिसेंगे कुछ चिंगारियां छूटेंगी ही छूटेंगी। बीते 20 अप्रैल को योगी आदित्यनाथ और टीम-11 की मीटिंग के वक्त ऐसी ही एक सूचना आई और फिर भावनाओं की चिंगारियां भी दिखीं। मुझे लगता है कि अच्छा मुख्यमंत्री होना एक शाप है क्योंकि फिर आप लगातार निष्पक्षता की सलीब पर टाँगे जायेंगे। आपके हर कार्य और आपके हर बयान को चंद लोगों के नजरिये से देखा जायेगा। आपके खुद के ख्यालों और सोच पर दुनिया भर की सीमाएं लगेंगी। आपको फाइलों पर अपने हस्ताक्षरों से डर लगेगा। कई निर्णय और कई खबरें आपको ठगेंगी और इसके बाद सारे इल्ज़ाम भी आपके सर ही होंगे। लेकिन इन सब के बावजूद कहीं एक मुख्यमंत्री ऐसा भी है जो हर रोज जमीन पर बिस्तर बिछा के सोता है और ये तय करता है कि मैं तय राहों पर चलने के लिए नहीं बल्कि उन्हीं तय ढर्रों को बदलने के लिए यहाँ आया हूँ। कोई भी शहर या समाज कई दशकों तक अंधेरा ढोने को अभिशप्त नहीं हो सकता इसलिए वहाँ हमेशा ही रोशनियों के विद्यालय खुलने की संभावना रहती है और इस माहौल में अगर वो रोशनी वाला पथ प्रदर्शक स्वयं को अपने परिवार के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करके आया हो तो उससे बेहतर क्या हो सकता है ! एक ऐसा पथ प्रदर्शक जिसके लिए ‘स्वदेशो भुवनत्रयम’ है अर्थात वह त्रैलोक्य का नागरिक है, वह वर्गहीन है और वो पूर्वाश्रम से अलग है। कोई भी सेना हो, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जय और पराजय की मुख्य जिम्मेदारी उसके सेनापति की ही होती है। वैसे भी नेतृत्व क्षमता किताबों से नहीं सीखी जाती, वो तो हमारे भीतर ही होती है। हमारे साथ ही बड़ी होती है और फिर अवसरों को पा कर प्रदर्शित भी होती है और निखरती भी जाती है। पूर्वांचल में मासूमों को शिकार बनाने वाली इन्सेफेलाइटिस चार दशक से कहर बरपा रही थी। 1978 से 2017 तक 50 हजार से ज्यादा मासूमों की मौतें हुईं थीं। सेनापति बदला और युद्ध की रणनीति बदली और फिर दस्तक अभियान द्वारा गांव की आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, प्राथमिक शिक्षक, एएनएम और ग्राम प्रधान के साथ ही सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर को ट्रेनिंग दी गई। गांव में इलाज के लिए सीएचसी में तीन-तीन बेड के मिनी आईसीयू बनाए गए, जिला अस्पताल में पीडियाट्रिक आईसीयू में पांच बेड बढ़ाए गए, सभी में आधुनिक वेंटिलेटर लगाए गए और अब काफी हद तक उत्तर प्रदेश इस जानलेवा इन्सेफेलाइटिस के प्रकोप से मुक्त हो गया है। ये दुनिया विरोधाभासों से भरी हुई है। एक जगह मातम होता है तो वहीं दूसरी जगह थाल बजते हैं। जहाँ हर राजनीतिक घटनाएँ और योजनाएं झूठ का जलसा लगती हैं। जहाँ आस्थाएं कुछ यूं बदलती हैं मानों सूरज ने धरती के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हों। जहाँ खुद को बेहतर साबित न कर पाने पर दूसरे को बदतर बताने की होड़ मची रहती हो वहां अगर कोई राज्य प्रमुख ये कहे कि देश के सेनापति के अनुशासन में बंधे होने और प्रदेश के करोड़ों लोगों की सुरक्षा के प्रति जवाबदेही की वजह से वो अपने पिता की अंत्येष्टि पर नहीं जाएगा तो इसे राज्य प्रमुख की नैतिकता का सोपान क्यों ना माना जाए ! सारे मानक बदल गये हैं। हालाँकि इस महान देश में परिवारजनों की मृत्यु के बाद भी कर्तव्यपरायणता ना छोड़ने के अधिसंख्य उदाहरण पहले से उपस्थित हैं लेकिन उन सभी उदाहरणों के बीच हमें ये जानना जरूरी होगा कि योगी आदित्यनाथ की घटना दूसरे उदाहरणों की तरह केवल पिता की मृत्यु की सूचना तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये अन्त्येष्टि में ना जाने के निर्णय तक विस्तार पाती है। स्वामी शंकराचार्य जी भी अपनी माँ की मृत्यु के अंतिम संस्कार में शामिल होने आए थे, स्वामी विवेकानंद भी सन्यास लेने के बाद माँ को भारत दर्शन करवाने के लिए ले जाते हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ, पिता के अंतिम दर्शन की इच्छा के बावजूद राजधर्म निभाना जरूरी समझते हैं और अविचल नेतृत्वकर्ता की तरह स्वयं ही नहीं बल्कि परिवारजनों से भी अंत्येष्टि में सोशल डिस्टेंसिग का पालन करने को कहते हैं। ऐसे ही लोग होते हैं जिनके कंधों पर सभ्यताएं, धर्म और प्रतीक जिंदा रहते हैं। योगी आदित्यनाथ पिछले दिनों नवरात्रि का 9 दिन उपवास रखने के बावजूद कोरोना से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की लगातार खबर ले रहे थे, पलायन करके आये लोगों के खान-पान से लेकर जीवन की सभी सुविधाओं का स्वयं निरीक्षण कर रहे थे, शासन प्रशासन के लिए 24 घंटे उपलब्ध थे, रोज टीम-11 के साथ ही सभी जिलों के अधिकारियों से कोरोना के संदर्भ में बात कर रहे थे, अस्पतालों का निरीक्षण कर रहे थे, अधिकारियों पर नकेल कस रहे थे और साथ ही साथ दुष्टों के मंसूबे को लगातार विफल कर रहे थे। राज्य प्रमुख होने के नाते इस संकट काल में उन्हें ना केवल लोगों को मौत से बचाना है बल्कि उन्हें बेहतर तरीके से जिंदा भी रखना है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान जब कोई पूर्वाश्रम के पिता को भी खो के विचलित ना हो तब उसकी एकाग्रचित्ता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ के गुरु अब नहीं रहे, पूर्वाश्रम का वो नाम भी नहीं लेते। उनका इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर कोई कागजी हिस्सा नहीं है। वैसे भी लोग असल में धरती का हिस्सा नहीं खरीदते बल्कि धरती उनके घुमंतू जीवन का एक अहम हिस्सा खरीद लेती है लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपवादों के भी अपवाद हैं। वो एक ऐसी पीठ से आये हैं जिसका इतिहास और दर्शन एक आध्यात्मिक सत्ता, गोरक्षा और जातिवाद से ऊपर सभी को बराबर रखने का रहा है। यहाँ मकर संक्रांति के दिन नेपाल से लेकर भारत तक खिचड़ी चढ़ाने वालों की जाति कभी नहीं पूछी जाती। इसके द्वारा उत्तर में विश्व हिन्दू परिषद के साथ दलितों के लिए मंदिरों का निर्माण कराया गया। यहाँ के महंत खुद काशी के डोमराजा के यहां भोजन करते थे। महाराणा प्रताप ट्रस्ट और सामाजिक एकता यहीं जन्म लेती है। ऐसे पीठ से निकलकर आने वाला व्यक्ति अगर इस वक्त 23 करोड़ लोगों का राज्य प्रमुख है तो हमें अब निश्चिन्त हो जाना चाहिए क्योंकि मर्यादाओं को सामने रखकर एक स्वर्णिम इतिहास को बनते हुए हम अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं।