कोरोना से ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था के कारण करनी होगी अच्छे दिनों की प्रतीक्षा
चीनजन्य महामारी कोरोना विषाणु संक्रमण ने भारत में कोविड-19 ने 2020 से ही जनहानि के साथ आर्थिक हानि पहुंचाने का काम किया है। न केवल भारत ही, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कोरोना प्रकोप की वजह से अर्थव्यवस्था चौपट होने के कगार पर पहुंच चुकी है। कोरोना महामारी ने जीडीपी और आय संकुचन, बेरोजगारी व महंगाई दर में बढ़ोत्तरी होने आदि विभिन्न समस्याओं के सृजन में मुख्य भूमिका निभाई है। कोरोना से ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था को सुधरने-पटरी पर आने में समय लगेगा और अच्छे दिनों की प्रतीक्षा करनी होगी। देश को 2025 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का प्रधानमंत्री का सपना कहें कि लक्ष्य पूरा होने में भी विलंब होना निश्चित माना जा रहा है।
दरअसल इस जानलेवा महामारी से बचाव को देश के विभिन्न राज्यों में लागू की गई कामकाजी पाबंदियों के परिणाम स्वरूप अधिकांश कारोबारी-औद्योगिक गतिविधियों की रफ्तार कुंद हो गई, जिससे उत्पादकता का प्रभावित होना लाजिमी है। ऐसे में कई कारोबारी-औद्योगिक सेक्टरों में उत्पन्न आर्थिक समस्याओं के कारण रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना-2.0 यानी कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण देश में एक करोड़ से अधिक लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, जबकि पिछले साल महामारी की शुरूआत से लेकर अब तक 97 प्रतिशत परिवारों की आय विभिन्न कारणों से घट गई। भारत में भी कामकाजी बंदिश (लॉकडाउन) से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण बहुत से कारोबारी-औद्योगिक क्षेत्रों में गतिविधियां ठप्प पड़ने, घर से कार्य (वर्क फ्रॉम होम) के कारण काम-धंधे बंद हो गए। देश के बहुत से छोटे-बड़े
औद्योगिक-कारोबारी घरानों-समूहों-प्रतिष्ठानों ने आर्थिक कारणों से अपने कार्मिकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया या उनका वेतन आधा-अधूरा कर दिया। संगठित-असंगठित क्षेत्र के साथ ही विभिन्न व्यापार करने वाले क्षेत्र के लोगों और दिहाड़ी श्रमिकों की आय में भी खासी कमी आई है।
कुल मिलाकर कोरोना विषाणु संक्रमण की दूसरी लहर ने आर्थिक और जन हानि पहुंचाकर न भूलने वाला आघात किया है। संक्रमण प्रकोप के कारण न जाने कितने ही परिवार उजड़ गए, कितने ही बच्चे अपने माता-पिता होने से अनाथ हो गए, कितने ही माता-पिता को अपनी युवा संतानों की अर्थियां तक देखनी पड़ीं। इस महामारी ने असंख्य परिवारों को ऐसे घाव दिए हैं, जिनका दर्द बेशक समय के साथ कम हो जाए, लेकिन उनकी भरपाई कतई संभव नहीं है। देश को इस महासंकट से उबारने को मिल-जुलकर काम करने की जरूरत है। राजनीतिक दलों को परस्पर मतभेद दरकिनार कर समन्वय स्थापित करके और दलगत हित त्यागते हुए जनहित में फैसले लेने की आवश्यकता है। केंद्रीय योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन संग राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी बेरोजगारी दूर करने, किसानों, मजदूरों और गरीब वर्गों की स्थिति सुधारने को प्रभावी योजनाएं लागू करनी होंगी। इस दिशा में कुछ कदम उठाए भी गए हैं। केंद्र सरकार ने 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के सभी नागरिकों को कोरोनारोधी टीकाकरण (वैक्सीनेशन) के साथ ही जरूरतमंद पात्र नागरिकों को खाद्य-सामग्री वितरण आदि की व्यवस्था का ऐलान किया है। राज्य सरकारें भी वैक्सीनेशन, सेनिटाइजेशन, खाद्य-सामग्री वितरण की व्यवस्थाओं में अपने योगदान के साथ ही ऐसे परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रही हैं, जिनमें कोविड-19 के कारण अब कोई कमाने वाला नहीं बचा है। अभिभावकों को खो देने वाले बच्चों के पालन-पोषण व शिक्षा आदि की जिम्मेदारी उठाने का भी राज्य सरकारों ने ऐलान किया है। अब जरूरत उक्त राहतकारी योजनाओं के त्रुटिरहित क्रियान्वयन को सरकारी स्तर पर पर्याप्त निगरानी रखे जाने की है, जिससे कि कोरोना महामारी से मिले घावों पर मरहम लगाने में कोताही न हो।
बहरहाल, कोविड-19 महामारी रूपी संकट से महायुद्ध जारी है और हमें विश्वास है कि निश्चित रूप से जीत हमारी ही होगी। कोरोना संक्रमण के घटते प्रकोप के आंकड़े भी कुछ ऐसा ही संकेत देते प्रतीत हो रहे हैं। कोरोना महामारी से जंग जीतने वालों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। परिणाम स्वरूप अधिकतर राज्यों में बीती एक जून से कामकाजी बंदिशें हटानी शुरू की गईं और अब स्थितियां देशभर में सामान्य होने की तरफ बढ़ चली हैं। हालांकि चिकित्सा विशेषज्ञों ने आगामी सितम्बर-अक्तूबर महीने में कोरोना 3.0 यानी तीसरी लहर आने का अंदेशा जताते हुए सावधानी बरतने की सलाह दी है। ऐसे में सभी को अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए कोरोना के बचाव नियमों का पालन करने के प्रति सचेत रहना ही होगा, क्योंकि मामूली सी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है।