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मानसिक रूप से बीमार मरीजों का बीमा क्यों नहीं
मानसिक बीमारी के लिए बीमा कवर क्यों नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और IRDA से मांगा जवाब
मानसिक बीमारी के रोगियों के इलाज के लिए बीमा को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की. सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने भारत सरकार और बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और बीमा कंपनियों पर निगरानी रखने वाली संस्था IRDA से पूछा है कि आखिर मानसिक रूप से बीमार मरीजों को बीमा क्यों नहीं दिया जा रहा है. बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर छिड़ी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को केंद्र और बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) को नोटिस जारी किया। दरअसल याचिका को वकील गौरव कुमार बंसल ने दायर किया है, जिसमें बीमा कंपनियों को मानसिक बीमारी के रोगियों के इलाज को भी चिकित्सा बीमा के अंतर्गत लाने के लिए उचित निर्देश देने की मांग की गई है. गौरतलब है कि बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद मानसिक बीमारी को लेकर बहस तेज हो गई है. जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, नवीन सिन्हा और बी.आर. गवई की पीठ ने एक नोटिस जारी किया और केंद्र और आईआरडीए से जवाब मांगा। मानसिक बीमारी के लिए बीमा कवर क्यों नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) को नोटिस जारी किया। याचिका में मानसिक बीमारी के उपचार के लिए चिकित्सा बीमा का विस्तार करने के लिए सभी बीमा कंपनियों को निर्देश देने की मांग की गई थी। माना जा रहा है कि 14 जून को आत्महत्या करने वाले सुशांत अवसाद से जूझ रहे थे। जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, नवीन सिन्हा और बी.आर. गवई की पीठ ने एक नोटिस जारी किया और केंद्र और आईआरडीए से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने इस मामले की वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान ये नोटिस जारी किये। पीठ ने केन्द्र और आईआरडीए से याचिका में उठाये गये बिन्दुओं पर जवाब मांगा है। अगस्त, 2018 में भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बीमा कंपनियों से कानून के इस प्रावधान का अनुपालन करने को कहा था. वित्त मंत्रालय द्वारा लोकसभा को उपलब्ध कराई गई सूचना में कहा गया है, ''सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों ने सूचित किया है कि देशभर में करीब एक लाख लोगों को मानसिक रोग के इलाज का बीमा कवर दिया गया है.'' इरडा ने कहा कि पिछले साल अगस्त में उसने इस बारे में सर्कुलर जारी किया था. उसके बाद 110 ऐसे उत्पादों को मंजूरी दी गई है जो मानसिक रोग को कवर करते हैं. माना जाता है कि धीरे-धीरे मानसिक रोग से संबंधिता बीमा कराने का चलना बढ़ेगा. मानसिक रोगों के इलाज को लेकर देश में जागरूकता की कमी है. कई लोग इसे बीमारी नहीं मानते हैं, जबकि इसका इलाज मुमकिन है. गौरव बंसल ने खुद ही बहस करते हुये पीठ से कहा कि मानसिक स्वास्थ्य कानून, 2017 की धारा 21(4) में प्रावधान है कि बीमा पालिसी में मानसिक रोग शामिल किया जायेगा लेकिन अभी तक इरडा के लाल फीताशाही रवैये की वजह से इस प्रावधान पर अमल नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि आईआरडीए मानसिक स्वास्थ्य कानून, 2017 की धारा 21(4) पर अमल करने के लिये बीमा कंपनियों को नहीं कह रहा है और इस वजह से मानसिक रोग से जूझ रहे व्यक्त्तियों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बंसल ने कहा कि कानून में स्पष्ट प्रावधान के बावजूद इरडा इस पर तत्काल कार्रवाई करने के प्रति अनिच्छुक है। बंसल का तर्क है कि आईआरडीए का गठन मुख्य रूप से पालिसी धारकों के हितों की रक्षा करने के लिये हुआ था लेकिन ऐसा लगता है कि वह अपने लक्ष्य से भटक गया है। बंसल ने अपनी याचिका में कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य कानून, 2017 में प्रावधान है कि बीमाकर्ता को निर्देश है कि वह मानसिक रोग होने के आधार पर ऐसे व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा और संसद द्वारा बनाये गये कानून में मेडिकल बीमा के मामले में मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के साथ दूसरे लोगों जैसा ही आचरण किया जायेगा। याचिका में कहा गया है कि यह कानून बनने के बाद आईआरडीए ने 16 अगस्त, 2018 को सभी बीमा कंपनियों को एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें मानसिक स्वास्थ्य कानून, 2017 के प्रावधानों का अनुपालन करने का निर्देश दिया गया था। बंसल ने कहा कि 16 अक्टूबर, 2018 के सर्कुलर का नतीजा जानने के लिये उन्होंने 10 जनवरी, 2019 को सूचना के अधिकार कानून की धारा 6 के तहत एक आवेदन दायर किया था। उन्होंने कहा कि इस आवेदन के जवाब में 6 फरवरी, 2019 को आईआरडीए ने सूचित किया कि इस संबंध में अभी तक 16 अगस्त, 2018 के आदेश पर अमल नहीं किया गया है। याचिका के अनुसार एक साल बीत जाने के बावजूद मानसिक स्वास्थ कानून 2017 की धारा 21(4) के बारे में स्थिति जस की तस है और बीमा कंपनियों पर लगाम कसने की बजाये इरडा उनके मददगार के रूप में ही काम कर रहा है।