आज भारत एक जवान देश है जिसकी ज्यादातर
जनसँख्या युवाओं से भरी हुई है किसी भी देश की तरक्की में सबसे बड़ा योगदान अगर
किसी का होता है तो वह देश के नौजवानों का होता है
इसलिए कोई भी देश तब ही आगे बढ़ता है जब किसी देश के लोग ज्यादा समझदार और सामाजिक
मुद्दों से सकारात्मक तरह से जुड़े हो और यह सब तब ही संभव हो सकता है जब अच्छी
शिक्षा नीति के द्वारा लोगों को अच्छी शिक्षा मिली हो और वह अपने सम्पूर्ण ज्ञान
के साथ देश के विकास में अपना योगदान दे सके
एक बेहतर शिक्षा ही व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति को विभिन्न आयामों में सोचने का
मार्गदर्शन करती है
देश में इस समय शिक्षा के ढाँचे में बदलाव की
सख्त जरुरत महसूस होती है मोदी सरकार चाहती है कि देश में पिछले 50 सालों से चली आ
रही 1968 की पुरानी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव हो जो कि वर्तमान के समय के अनुकूल
नही है इसलिए सरकार ने शिक्षा के ढाँचे में बदलाव की योजना बनाई है जिसके ड्राफ्ट
भी तैयार किये जा चुके है.
सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं संस्थाओं द्वारा इस ड्राफ्ट पर विचार किया जा रहा है
जिसके लिए सरकार ने सुझावों के लिए 30 जुलाई 2019 तक का वक्त भी दिया था
पूरी तरह सुझावों का अध्यन करकर सरकार जल्द ही शिक्षा की इस नयी नीति पर फैसला ले
सकती है
भारत की बेअसर शिक्षा नीति
जैसा कि आप सभी जानते है कि भारतीय शिक्षा में बदलाव तब देखने को मिला जब भारतीय
पारंपरिक गुरुकुल और शिक्षा प्रणाली से परे हट कर अंग्रेजों के द्वारा उनके नियमों
के मुताबिक़ लागू की गई शिक्षा भारत में पढ़ाई जाने लगी. कहने को तो वह शिक्षा नीति
भारत पर थोपने जैसी प्रतीत हो रही थी लेकिन अंग्रेजों द्वारा लागू की गई उस शिक्षा
पद्धति का सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि भारतीय लोग भी पश्चिम ज्ञान से रूबरू हुए और
अंग्रेजी भाषा भी भारत में आई
उस समय के हिसाब से भारत को विश्व के ज्ञान
से परिचित होने के लिए इसकी जरुरत भी थी
लेकिन समय के साथ कई तरह के बदलाव समाज और तकनीक में होते रहते है जिनके कारण नए
रोजगार अवसर और उद्यमों की शुरुआत भी होती है. इन नए रोजगार अवसरों में नए तरह के
कौशलों की जरुरत भी होती है जिसके कारण अगर किसी को रोजगार पाना हो तो समय की मांग
के अनुसार एक व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत विकास पर ध्यान देना होता है लेकिन शिक्षा
की पुरानी नीति आज के समय के हिसाब से वो परिणाम नही दे पा रही जिससे कि कुशल और
योग्य पेशेवर तैयार हो सके
एक तरफ तो फिनलेंड, जापान और चीन जैसे देश है जो बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर
बहुत ही जोर देते है लेकिन भारत में शिक्षा की प्राथमिक जड़े वही पुराने एजुकेशन
सिस्टम पर चली आ रही है
विद्यार्थियों को उनकी
व्यक्तिगत क्षमता के लिए विकसित नही किया जा रहा है बल्कि शिक्षा का लक्ष्य सिर्फ
डिग्री लेकर एक नौकरी पाने तक ही रह गया है
आज के दौर में इन्टरनेट क्रान्ति का दौर है और भारतीय शिक्षा नीति इन्टरनेट
क्रान्ति से पहले की है.
तकनीक के बदलाव के साथ-साथ हमे शिक्षा में भी इस बदलाव के तहत नयी नीति बनाने की
जरूरत है
भविष्य में छात्र इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल करेंगे जो अभी तक आविष्कार नही हुई
है और उनके आने वाले समय में भी नौकरियां बिलकुल अलग ही क्षेत्र की होगी जिनसे
उनकों परिचित होना बहुत ज़रूरी है
नए ज्ञान की पीढ़ी होने के कारण उसके प्रयोग के बीच संकीर्ण समय अंतराल खासकर
विज्ञान और प्रोधौगिकी के क्षेत्र में शिक्षार्थियों के बदलते समाजिक व व्यक्तिगत
आवश्यकताओं और उभर्तरे राष्ट्रिय विकास लक्ष्यों के लिए उनकी प्रासंगिकता बनाये रखने
के लिए स्कूल और उच्च शिक्षा के लिए समय समय पर नवीकरण करना बहुत ही जरूरी होता है.
उच्च शिक्षा पर भी नही है
सबकी पहुँच / उच्च शिक्षा में नही है कारगार
स्कूली शिक्षा के स्तर के बाद अगर हम बात करें उच्च शिक्षा की तो वहाँ भी परिणाम
कुछ ख़ास अच्छे नही है
आज भारत में कई उच्चतम शिक्षा संस्थान खुलते है लेकिन उनमे से बहुत कम ही ऐसे
शिक्षा संस्थान है जिनकी देश के बाहर भी कोई प्रतिष्ठा है. बाकी जितने भी हज़ारों
की संख्या में आज संस्थान खुल रहे है वह सब छात्रों को उचित गुणवत्ता वाली शिक्षा
नही दे पा रहे है.
उच्च शिक्षा संस्थानों की शिक्षा पाठ्यक्रम में बिखराव साफ़ नज़र आता है क्योंकि यह
कई खण्डों में बंटी हुई है.
पाठ्क्रम की विषय सूचीयों में भी काफी
बिखराव है.
इसी के साथ कई विशेष सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबके ऐसे है जिनके पास अभी तक
उच्च शिक्षा की पहुँच नही है.
उच्च शिक्षा संस्थानों में लड़के और लड्कियो के बीच में भी काफी अंतर है जिससे पता
चलता है कि लड़कियां उच्च शिक्षा में कम है.
एक अच्छी शिक्षा के लक्ष्य क्या होते है.
1. जानने के लिए सीखना- एक ऐसा व्यक्तित्व बनना जो ज्ञान से भरा हो और यह
सीखना कि सीखना कैसे होता है ताकि जीवन भर हम शिक्षा के मिलने वाले नए अवसरों का भी
लाभ उठा सके.
2. कुछ करने के लिए सीखना - शिक्षा का लक्ष्य ना केवल व्यवसायिक कौशल
प्राप्त करना है बल्कि कई परिस्तिथियों से निपटना आना और टीम वर्क से साथ किसी भी
काम को पूरा करना है इसी के साथ कई स्किल अपने अन्दर डेवलप करके जीवन की किसी भी
कार्यशील चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनना है.
3. समाज में सभी के साथ रहने के लिए सीखना - आज की परिस्थितियों में हम एक
दुसरे के साथ उनके विचारों से सहमत नही होते इसलिए शिक्षा के माध्यम से हमे इस तरह
समझदार होना चाहिए कि हम दुसरे लोगों के साथ आपसी समझ विकसित कर सके और शांति और
स्वभाव के भावना से एक दुसरे की सरहाना कर सके.
4. कुछ बनने के लिए सीखना- एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करना और उस
व्यक्तित्व के द्वारा स्वायत्तता, निर्णय और व्यक्तिगत
जिम्मेदारी के साथ कार्य करना.
वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए
शिक्षा में सुधार की जरूरत
भारत 2030 तक अपने कई
वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए
शिक्षा के क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र है जो सभी जरुरी आयामों के साथ जुड़कर भारत को
लक्ष्यों की प्राप्ति तक ले जा सकता है
हमे इस तरह के सुधार शिक्षा की गुणवत्ता
में करने होंगे जो जिसके द्वारा एक विद्यार्थी और शिक्षक दोनों के पूर्ण ज्ञान
प्राप्त हो पाए और जिससे वैश्विक लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में एक माध्यम बन जाए सीखने को बढ़ावा देने के लिए शैक्षिक ससाधनों
संगठनों और अच्छी नीतियों सहित एक प्रभावी प्रशाशन प्रणाली की आवश्यकता है
सरकार क्या बदलाव करने जा
रही है
नयी शिक्षा नीति की शुरुआत अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन के नाम से स्कूली
शिक्षा के बुनियादी स्तर को सुधारने के विश्वास के साथ हुई है.
इसी के साथ प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा को रोजगार परख शिक्षा बनाना और उच्च
शिक्षा में रिसर्च और डेवलपमेंट में सुधार करके उसको भारतीय उद्योग और सुरक्षा में
उसका लाभ लेना सरकार की योजना है.
नयी शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा के ढाँचे में फिर से सुधार किया गया है जिसके
अनुसार हर भाग को अलग-अलग बांटा गया है.
इस प्रणाली में शिक्षा को 5+3+3+4 के प्रारूप के तहत अपनाया जाएगा अगर इसे विस्तार
से देखा जाए तो स्थिति यह होगी
प्री-प्राइमरी लेवल - शुरुआती शिक्षा+ आंगनवाडी शिक्षा+यूकेजी+ पहली कक्षा + दूसरी
कक्षा
उच्च प्राइमरी लेवल - तीसरी कक्षा+ चौथी कक्षा+ पांचवी कक्षा
मध्यम लेवल- छटी कक्षा + सातवी कक्षा+ आठवी कक्षा
उच्तर माध्यमिक लेवल- नोंवीं कक्षा+ दसवीं कक्षा, ग्यारहवी कक्षा+ बारहवी कक्षा
प्री प्राइमरी में दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई शामिल है इस बार की शिक्षा नीति में
फाउंडेशन लेवल पर छात्र पर ज्यादा ध्यान दिया गया है क्योंकि इस 3 से 8 साल की
उम्र में बच्चे काफी ज्यादा सीखने वाले होते है और शुरूआती लेवल पर ही बच्चों में
मात्रभाषा के अलावा किसी और भाषा का ज्ञान देना भी इस में शामिल है इस स्तर में
बच्चे के बहुआयामी विकास पर ख़ास जोर दिया गया है इसमें बच्चों को किताबों से दूर
रख कर उनकी एक्टिविटी पर ज्यादा ध्यान देने की योजना है ,
इसके बाद अगला स्तर उच्च प्राइमरी लेवल का है यानी इसमें कक्षा तीसरी से लेकर
पांचवी तक ही शामिल है इस स्तर में बच्चे को किताबी ज्ञान शुरू करवाया जाएगा साथ
ही किताबों के साथ कुछ एक्टिविटी पर भी ध्यान दिया जाएगा. इस स्तर में 8 से 11 साल
तक के बच्चे शामिल होंगे
उच्च प्राइमरी स्तर के बाद अगला स्तर माध्यमिक
स्तर होगा जो कि तीन साल के लिए होगा और उसमे कक्षा 6 से लेकर 8 वीं तक शामिल होगी
इस स्तर में बच्चों के लिए अमूर्त विचार और विभिन सब्जेक्ट की शिक्षा दी जाएगी इस
स्तर में बच्चों की उम्र 11 से 14 साल होगी
चौथा क्रम उच्च या सेकेंडरी स्तर का हो सकता है जिसमे 9,10,11,12 कक्षा को शामिल किया जाएगा
इस स्तर में बहु-विषयक पाठ्य कार्यक्रम
छात्रों के सलेबस में जोड़ा जाएगा साथ ही कई तरह की स्किल डेवलप करने के लिए कई तरह
के वोकेशनल कोर्स शामिल होंगे साथ ही छात्र के अन्दर विभिन्न स्किल विकसित कर सके.
शिक्षा की इस नई नीति में तीन भाषाओं को अनिवार्य करने पर विचार चल रहा है जिसका
क्षेत्रों में हिंदी भाषा थौपे जाने की
बात कही जा रही है इस त्रिभाषीय मोड्यूल में एक एक मात्रभाषा, स्थानीय या स्थानीय
भाषा और एक अंग्रेजी भाषा इसी के साथ अगर कोई विद्यार्थी कोई विदेशी भाषा सीखना
चाहता है तो चौथी भाषा के रूप में उसको वह विदेशी शिक्षा भी मिल जाएगी.
पाठ्यक्रम सामग्री को कम करने पर किया जा रहा है विचार क्योंकि इस तकनीकी युग में
आने वाला समय ऐसा है विद्यार्थियों को बैग ले जाने की जरूरत ही ना हो.
शैक्षिक संस्थानों में अच्छे अनुभवी शिक्षक और उनके प्रदर्शन पर सरकार अब ध्यान
देगी जिससे कि छात्रों को शिक्षा में कोई भी चुक ना हो और किसी भी संसथान के लिए
अच्छे शिक्षक ओना बहुत ही जरुरी है जिसके लिए बीएड के 4 साल के कोर्स के द्वारा ही
और CTET के द्वारा ही टीचरों का चयन होगा.
टीचर बनने के लिए शिक्षकों को इन दोनों प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा.
स्कूल व विश्वविध्यालय के इंफ्रास्ट्रक्चर में सभी सरकार सुधार करेगी जिसके बाद
कक्षा से बहार बैठ कर पढ़ाया जाना भी बंद किया जाएगा और जब अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर
तैयार किया जाएगा तो यह छात्रों को अच्छा शिक्षिक माहौल देने में कारगर होगा.
नयी शिक्षा नीति में रटे-रटाए ज्ञान की जगह विद्यार्थियों के सम्पूर्ण विकास के
लिए अच्छा ज्ञान, रुझान,
हुनर के साथ साथ तार्किक चिंतन , बहुभाषी
क्षमता और डिजिटल शिक्षा की और ध्यान दिया जाएगा.
छात्रों शिक्षकों, शैक्षिक संस्थाओं के लिए उपयुक्त योग्यताओं और क्षमताओं से लैस
नए शैक्षिक परिवेश विकसित किये जाएंगे.
उच्च शिक्षा में अनुसन्धान के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के गठन का प्रस्ताव भी
सरकार के द्वारा रखा गया है.
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ी कमी
विश्विद्यालय स्तर पर अनुसंधान की योजना और कार्यान्वन के लिया सुसंगत दिशा का
अभाव है. इस बड़ी कमी को दूर करने के लिए पहली बार एक नया राष्ट्रिय अनुसंधान
संस्थान (NRF) बनाने
का प्रस्ताव सरकार द्वारा प्रस्तावित किया गया है. जो शिक्षा प्रणाली के भीतर मुख्य
रूप से कॉलेजों और विश्विद्यालयों में अनुसन्धान के वित्तपोषण पर ध्यान केन्द्रित
करेगा
NRF के अंतर्गत – विज्ञान , तकनीक , समाजीक विज्ञान , कला
एवमं मानिविकी के चार व्यापक क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा.
स्तरहीन शिक्षा संस्थानों को बंद करने के लिए क़ानून लाया जाएगा जो बच्चो की शिक्षा
की गुणवत्ता से खिलवाड़ कर रहे है.
प्राथमिक शिक्षा ( आंगनवाडी) के लिए अभी कोई भी एक सामान पाठ्यक्रम नही है जिससे
छात्र को एक योजनाबद्ध तरीके से उसको शिक्षित नही किया जाता. NCERT को यह
जिम्मेदारी सौपी गई है कि वह एक अच्छा पाठ्यक्रम इस शुरूआती शिक्षा के लिए भी
तैयार करे जो कि सभी जगह लागू हो सके.
माध्यमिक शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार RTE एक्ट पर भी ध्यान देगी.
एक ज्ञानवान समाज के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमे एक उत्तरदायी शिक्षा
व्यवस्था की जरूरत है जो तभी हो सकता है जब हमारे शिक्षा संस्थान स्कुल कॉलेज
विश्वविध्यालय आदि इस नीति में दर्शाएं गए गए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सक्षम
और स्वतन्त्र हो.
"राष्ट्रिय शिक्षा आयोग" बनाने का सुझाव सरकार की तरफ से दिया गया है जो
कि इस नीति के क्रियान्वन को अच्छी तरह से लागू करवा सके और इसको भ्रष्टाचार जैसे
मुद्दों के कारण भटकना ना पड़े
शिक्षा नीतियों का सफ़र
1. 1948-49 में पहला राधाकृष्ण आयोग - 14
नवम्बर 1948 को इस आयोग का गठन हुआ डॉ राधाकृष्णन इस आयोग के अध्यक्ष थे .
स्वतंत्र भारत का यह पहला शिक्षा आयोग था. स्कूली शिक्षा के साथ यह आयोग
विश्विद्यालय स्तर की शिक्षा व्यवस्था की भी देख रेख करता था.
उच्च शिक्षा के लक्ष्यों को निर्धारित करना इसी का काम था. उच्च शिक्षा के शिक्षण
स्तर को बढ़ाना.
विद्यार्थियों के कल्याण के योजनाए बनाना.
ग्रामीण विश्वविध्यालय और महाविद्यालयों का निर्माण
परीक्षाओं का प्रारूप यह सब काम इस आयोग की ही देखरेख में हुए.
2. 1953- 1953 में भारत सरकार ने माध्यमिक शिक्षा आयोग की स्थापना की. इस आयोग के
मुख्य अध्यक्ष डॉ॰ लक्ष्मणस्वामी मुदालियर थे. बाद में उन्ही के नाम पर इस आयोग को
मुदालियर अयोग भी कहा जाने लगा.
इस आयोग का मुख्य कार्य यह था कि इसने शिक्षा के पाठ्यक्रम में विविधता लाने का
प्रयास किया और एक त्रिस्तरीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने की शिफरिशे की थी.
MCQ परीक्षा का सुझाव भी पहली बार इसी आयोग द्वारा सुझाया गया था.
दसवीं कक्षा से पहले और कक्षा ग्यारहवीं और बारहवीं में एक मूल विषय रहना जरुरी है
जैसे कि गणित, सामाजिक विज्ञानं, संगीत, विज्ञानं, कला आदि
उनके द्वारा माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा के लिए भी ध्यान दिया जिसमे यह पेशकश की
गई की प्राथमिक शिक्षा 4-5 साल की हो और माध्यमिक शिक्षा में 2 स्तर होने चाहिए.
3. NCERT की स्थापना 1961-
1961 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधन और प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) की
स्थापना की गई. इसका उदेश्य केंद्र वह राज्य सरकारों को शिक्षा से सम्बंधित जरुरी
निर्देश और सलाह देने का था. शिक्षा में गुणात्मक सुधार हो सके इसलिए इस
आर्गेनाईजेशन के भुत ही महत्वपूर्ण भूमिका थी.
एन.सी.ई.आर.टी शिक्षा से सम्बंधित क्षेत्रों में खुद ही अनुसन्धान करके शिक्षा के
लिए लिए एक नीति तैयार करने में मदद करता है.
यह छात्रों के लिए शिक्षा में इस्तेमाल होने वाली किताबों और उनके पाठ्यक्रम,
समाचार पत्र, पत्रिकाएँ और अन्य जरुरी साहित्य और सामग्री मुहैया कराने का काम भी
करता है.
एन.सी.ई.आर.टी शिक्षकों की अच्छी ट्रेनिंग और नए तकनीकी दौर में नये उपकरणों और
तकनीक के उपयोग को आज की शिक्षा से जोड़ने का काम भी करता है.
4. यूजीसी की स्थापना - 1956 में शिक्षा के नए मापदंडो के साथ तालमेल बैठाने उनके
निर्धारण करने अनुरक्षण के लिए संसद के अधिनियम के द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान
आयोग की स्थापना हुई थी.
यूजीसी आज सरकारी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों को अनुदान प्राप्त करता है
यूजीसी राष्ट्रिय योग्यता परीक्षा (UGC NET) का आयोजन भी कराता है जिसके माध्यम से
विश्विद्यालयों के लिए शिक्षक का चुनाव होता है.
5. 1964 - कोठारी शिक्षा आयोग - इस आयोग की सिफारिशों के माध्यम से प्रथम
राष्ट्रिय शिक्षा नीति अपनाई गई जिसमे 6 साल तक के बच्चों के उचित विकास के लिए समेकित
बाल विकास योजना लागू की गई. इस आयोग के अध्यक्ष डॉ दौलतसिंह कोठारी थे. इस आयोग
का उदेश्य स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार और नयी दिशा देना था. इस आयोग ने
सामजिक बदलाव को देखते हुए शिक्षा में कुछ जरुरी मूलभूत सुधार लाने के ठोस सुझाव
दिए.
6. 1968- में पहली भारत की बिलकुल नयी शिक्षा नीति को अपनाया गया. इस निति में कई
सुझाव कोठारी आयोग की सिफारिशों से लिए गए. इस निति में राष्ट्रिय एकता, सामाजिक
दक्षता, व समाजवादी समाज की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया. 10+2+3
पद्धति का विकास भी इसी शिक्षा नीति में हुआ था
7. 1992- में आचार्य राममूर्ति समिति का गठन इसलिए किया गया ताकि 1968 में लागू
शिक्षा नीति में सुधार किया जा सके. इस समिति ने शिक्षा के ढाँचे में कुछ आमूलचूल
परिवर्तन की सिफारिशें की.
8. सर्व शिक्षा अभियान - 2000 में शुरू हुआ सर्व शिक्षा अभियान भारत सरकार की एक
योजना है जिसके द्वारा देश के प्राइमरी स्कुल के ढाँचे को मजबूत करना सरकार का
लक्ष्य है. तथा देश के हर गाँव में प्राथमिक स्कुल खोलना और सभी को समानता से
शिक्षा मिलना इस अभियान का उदेश्य है.
गाँवों में बच्चे स्कुल जा सके इसलिए सरकार की योजना रही है कि कम से कम एक
किलोमीटर के अन्दर उनके लिए सरकारी स्कुल खोला जाए.