कोरोना वैश्विक महामारी के कारण लॉकडाउन में जहां कुछ लोग पलायन कर रहे गरीब मजदूरों को मुफ्त में खाने पीने का सामान दे रहे और उन्हें आर्थिक मदद कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश की एक शिक्षिका ने चिलचिलाती गर्मी में इन मजदूरों के बीच सुबह से शाम तक मुफ्त सैनिटरी पैड बांटने का एक अनोखा अभियान शुरू किया है।
मध्य प्रदेश के देवास की शिक्षिका ज्योति देशमुख के इस काम में उनका बेटा भी शामिल है। श्रीमती देशमुख ने इन गरीब महिला मजदूरों को पिछले एक सप्ताह के भीतर 10,000 से अधिक सैनिटरी पैड वितरित किए हैं और वह इन मजदूर महिलाओं के बीच इतनी लोकप्रिय हो गयी हैं कि लोग उन्हें ‘सैनिटरी पैड देवी’ कहकर पुकारने लगे हैं ।
श्रीमती देशमुख ने बताया कि जब उन्होंने अपने शहर में महिला मजदूरों को बहुत कष्ट में देखा क्योंकि वे लॉकडाउन में अपने लिए सैनिटरी पैड खरीदने की स्थिति में नहीं है तो उन्होंने सोचा कि क्यों न उन्हें मुफ्त में सैनिटरी पैड बांटे जाएं। आखिर उन्हें भी तो इसकी जरूरत पड़ती होगी ।
श्रीमती देशमुख ने यह भी कहा कि उन्होंने जब सबसे पहले सैनिटरी पैड मजदूर महिलाओं में बांटे उन महिलाओं को बहुत खुशी हुई और उन्होंने बहुत ही आभार प्रकट किया। ये गरीब महिलाएं 10-20 दिन के नवजात शिशुओं को लेकर गर्मी में आती थी।
उन्होंने बताया कि पहले तो वह डरी कि लॉकडाउन में घर से बाहर निकल कर अगर वह सैनिटरी पैड बाँटती हैं तो कहीं पुलिस वाले ही उनकी पिटाई न कर दें। इसलिए उन्होंने अपने एक कवि मित्र एवं सरकारी कर्मचारी बहादुर पटेल की सहायता ली ताकि वह उनके साथ मजदूरों के बीच जा सके ।श्रीमती देशमुख ने बताया कि शुरू में तो उन्होंने इस काम के लिए पांच-सात हजार रुपये अपनी जेब से लगाये लेकिन बाद में उन्होंने इस काम के लिए आर्थिक मदद जुटाने वास्ते फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा और उस पोस्ट का इतना असर हुआ कि करीब 20-22 लोगों ने उन्हें फौरन मदद की और इस तरह उन्होंने अब तक करीब एक लाख रुपये का सैनिटरी पैड वितरित किया है।
श्रीमती देशमुख का कहना है कि पहले तो वह दो-चार घंटे के लिए ही सैनिटरी पैड वितरित करती थीं लेकिन अब तो वह सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक चिलचिलाती गर्मी में अपने बेटे के साथ यह सैनिटरी पैड बांटती हैं ।शुरू में तो कई बार महिलाओं को यह पता भी नहीं चला कि वह जो पैकेट ले रही हैं उसमें सैनिटरी पैड जैसी कोई चीज है क्योंकि आमतौर पर गरीब महिलाएं मैले कुचैले फटे-पुराने कपड़े से सैनिटरी पैड का काम लेती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल 48 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं को सैनिटरी पैड उपलब्ध होते हैं और यही कारण है कि वह संक्रमण का शिकार होती हैं और अक्सर बीमार पड़ती रहती हैं।
श्रीमती देशमुख देवास में निजी स्कूल चलाती हैं और वह कविताएं आदि भी लिखती हैं तथा कविताओं के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालती रहती हैं । उनका एक कविता संग्रह ‘प्रेम की वर्तनी’ प्रकाशित हो चुका है।उनका कहना है कि वह लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इन महिला मजदूरों के बीच सैनिटरी पैड बांटने का काम करती रहेंगी और अब वह पास के दो-तीन गांव में भी जाकर गांव वालों को सैनिटरी पैड मुफ्त में देंगी ।
उन्होंने कहा कि हर साल 28 मई को विश्व माहवारी दिवस मनाया जाता है और कल भी यह मनाया गया लेकिन इन महिलाओं को इसके बारे में नहीं मालूम। समाज में माहवारी को लेकर गलत धारणाएं भी प्रचलित है जिन्हें तोड़ना बहुत जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) इसी धारणा को तोड़ने के लिए एक ट्विटर अभियान चला रहा है और अब तक 32 लाख लोगों ने इसका समर्थन किया है।