त्रिपुरा में सर्वशिक्षा अभियान से जुड़े शिक्षकों ने राज्य सरकार पर नियमितीकरण को लेकर उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना किये जाने का आरोप लगाया है।
एसएमएस शिक्षकों का कहना है कि उच्च न्यायालय गत फरवरी में इस वर्ग के पिछले 15 वर्षाें से कार्यरत 5437 शिक्षकाें को छह माह में नियमित करने के निर्देश दिए थे और यह अवधि भी 22 अगस्त को समाप्त हो गयी है।
पीड़ित शिक्षकों ने राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की योजना बनायी है, लेकिन मुकदमेबाजी में आने वाली लागत उनके राह में रोड़ा बन रही है। उन्होंने अब अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए एक सादे कागज में त्रिपुरा के मुख्य न्यायाधीश से अपील करने का फैसला किया है और जिसमें वे न्यायालय से उचित कार्रवाई की मांग करेंगे।
एक एसएसएम शिक्षक वास्तव देववर्मा ने आरोप लगाया कि पिछले सप्ताह एक प्रतिनिधिमंडल को शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने आश्वासन दिया था कि 24 अगस्त को मंत्रिमंडल की बैठक में एसएसएम शिक्षकों के मुद्दों पर चर्चा करेंगे लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि कुछ अधिकारियों ने उन्हें मौजूदा मानदंडों के अनुसार शिक्षण की उनकी पात्रता के सवाल को उठाने से रोकने का प्रयास किया है। शिक्षकों के अलावा, एसएसएम में कुछ गैर-शिक्षण कर्मचारी भी लगे हुए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने प्रस्ताव में आश्वासन दिया था कि यदि वे सरकार बनाते हैं तो वे सभी एसएसएम और आरएमएसए कर्मचारियों की सेवा को नियमित करेंगे, लेकिन वे अपने वादे को निभा पाए बल्कि मामले को फिर से अदालत में घसीटा है।”
गौरतलब है कि जब त्रिपुरा सरकार ने एसएसएम शिक्षकों की सेवा को नियमित करने से इनकार किया तो शिक्षकों ने उच्च न्यायालय का रुख किया और मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी और न्यायमूर्ति सत्य गोपाल चट्टोपाध्याय की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग को उनकी सेवा को नियमित करने और उन्हें नियमित वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया और दस साल की सेवा पूरी करने वाले शिक्षक को छह महीने के भीतर नियमित करने का निर्देश दिया।