आत्मनिर्भर भारत बनाने को कृषि और श्रम कानूनों में सुधार
सर्वविदित है कि पहले से ही मंदी के हिचकोले खा रहे वैश्चिक अर्थतंत्र को चीनजन्य कोरोना संक्रमण महामारी ने पूरी तरह से चौपट कर दिया। भारत में भी इसका अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहा है। परिस्थितिजन्य इस गभीर संकट से निपटने को सरकार हरसंभव जतन कर रही है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल आत्मनिर्भर भारत बनाने का आह्वान किया है, बल्कि कृषि, विनिर्माण और सेवा सहित सभी क्षेत्रों में देश को आत्म-निर्भर बनाने के संकल्प के साथ इस अभियान पर त्वरित गति से आगे बढ़ने को बल दिया है। परिणामस्वरूप सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने को नित-नए फैसले कर रही है।
भारत आदिकाल से रहा है खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर और निर्यातक
वास्तव में कृषि प्रधान देश भारत की अर्थव्यवस्था उद्योग धंधों पर ही नहीं, बल्कि बहुत हद तक गांवों पर ही निर्भर है। ऐसे में कृषि और श्रम क्षेत्र समेत विभिन्न मोर्चों पर व्यपक सुधार किए जाने की आवश्यकता अरसे से महसूस की जा रही थी। भारत आदिकाल से ही न केवल खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर रहा है, बल्कि विभिन्न कृषि उत्पादों, मसाले, चावल, कपास और रेशमी वस्त्रों का बड़ा निर्यातक भी रहा है। कोविड-19 यानी कोरोना संक्रमण महामारी के संकट से उपजी परिस्थितियों पर पार पाने को हमें एक बार फिर स्वदेशी, स्वावलंबन अपनाकर आत्मनिर्भर बनना होगा और मेक इन इंडिया-मेक फॉर वर्ल्ड के सिद्धांत पर आधारित आर्थिक अर्थव्यवस्था खड़ी करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
संकल्पों के सही क्रियान्वयन को सुधारनी होगी व्यवस्था
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि, विनिर्माण और सेवा सहित सभी क्षेत्रों में भारत को आत्म-निर्भर बनाने का संकल्प लिया है। सरकार ने बीते कुछ समय में कृषि सुधार की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। तीन बड़े विधेयक, कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम, अनुबंध कृषि सुधार और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करने के बाद सरकार अब किसानों को सीधे उद्योगों से जोड़ने की तैयारी में जुट गई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लाख करोड़ रुपए का एग्रीकल्चर फंड लॉन्च करते हुए कहा है कि सरकार छोटे किसानों को पूरी तरह बिचौलियों और कमीशनखोरों से मुक्त करने में जुटी है। सरकार के लिए अपने इन संकल्पों के सही प्रकार से क्रियान्वयन के लिए इन्हें क्रियान्वित करने वाली व्यवस्था में सुधार करने की आवश्यकता है। ऐसे में जरूरी है कि हम वर्तमान वास्तविक परिस्थितियों का सही-सही आंकलन और विश्लेषण करते हुए विगत में हुई भूलों को सुधारकर अपनी सामर्थ्य अनुसार योजना बनाते हुए आगे बढ़ें। श्रम सुधारों के साथ ही इस संकटकाल में अव्यवस्थित कहें कि अनियंत्रित हो चुके अर्थतंत्र को सहारा देने के लिए करोना के कारण संकट में पड़े लघु और मध्यम उद्योगों कारोबारी जगत को विशेष ऋण राहत पैकेज दिए जाने के साथ ही उनके कर्जों और ब्याज माफी की जरूरत है। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र पर भी व्यापक ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
कृषि के बूते ही संकट के हर दौर में मजबूती से टिकी रह सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की लगभग 65-70 फीसदी आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है और कृषि के बूते ही भारतीय अर्थव्यवस्था हर संकट के दौर में मजबूती के साथ टिकी रह सकती है। केंद्र सरकार ने संसद के हालिया मानसून सत्र में कृषि और श्रम कानूनों में आवश्यक वांछित सुधार कराने को कई विधेयक पारित करने-कराने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खेती-किसानी से संबंधित विधेयकों के बार में दावा किया है कि कृषि क्षेत्र में सुधारों से जुड़े यह विधेयक किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी आय को दोगुना करने में मील का पत्थर साबित होंगे। वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने के अपने वादे के तहत मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों के बाद से अर्थ जगत में माना जा रहा है कि कृषि और श्रम कानूनों में किए गए यह सुधार आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होंगे।