राष्ट्र, धर्म, संस्कृति और समाज विरोधी मंच बनीं वेब सीरीज
ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म (ओटीटी) की स्वच्छंद दुनिया में एक के बाद एक विवादित कहानी फूहड़ तरीके से पेश कर दी जाती है और किशोर और युवाओं का बड़ा वर्ग जो कतिपय कारणों के चलते देश-संस्कृति-समाज की मूल भावनाओं से अनभिज्ञ है, इन्हें हाथों-हाथ लेकर हित चयनित विशेष एजेंडा चलाने वालों की तिजोरियां भरने में जुट जाता है। ओटीटी पर वेब सीरीज की स्वच्छंद दुनिया में अभी कोई बंधन नहीं है तो इससे जुड़े लोग भी स्वार्थ सिद्ध करने और मंतव्य साधने की जुगत में कला, अभिव्यक्ति और रचनात्मक कल्पना का बहाना बनाकर देश और समाज के प्रति नकारात्मक, उल-जुलूल किस्से-कहानियां परोस कर वैचारिक अराजकता दर्शा रहे हैं। लेखकीय और कलात्मक कल्पना की आड़ लेकर वेब सीरीज के माध्यम से स्थापित की जा रही मिथ्या व्याख्याओं-परिभाषाओं-अर्थों-कहानियों (फेक नैरेटिव) का रचनात्मक प्रतिकार अत्यंत आवश्यक है। बेशक यह काम सरकार का है, लेकिन हमें भी अपने दायित्व निभाने होंगे और इस लेख के माध्यम से हमने ऐसा ही करने का प्रयास किया है।
जी हां ओटीटी प्लेटफार्म कहें कि डिजिटल मंच इन दिनों हमारी हजारों वर्ष पुरानी सनातन वैदिक संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों पर कुठाराघात करने और राष्ट्र विरोध व सामाजिक एकजुटता के विध्वंस का पटल बन गए हैं। कला की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के नाम पर राष्ट्र विरोध और सनातन संस्कृति-संस्कारों को आघात पहुंचाने व समाज को बांटने की इस षाड़यंत्रिक स्वतंत्रता पर देशव्यापी बहस की आवश्यकता है। अधिकांश वेब सीरीज देखने से प्रतीत होता है कि मनोरंजन की यह विधा राष्ट्र, सनातन और भारतीय सैन्यबलों को बदनाम करने, अश्लीलता फैलाने, फूहड़पन परोसने और गाली-गलौंच को बढ़ावा देकर हमारी सभ्य-सुसंस्कृत भाषा-समाज को दूषित करने के कुत्सित षड़यंत्र को मूर्तरूप देने का माध्यम भर बनकर रह गई है। देश-समाज-धर्म व संस्कृति विरोधी चंद लोगों के गिरोह के द्वारा यह काम रचनाधर्मिता के कलात्मकता के लबादे में लपेटकर किया जा रहा है। कथित प्रगतिशील जमात हमेशा ही अपने हित चयनित एजेंडा के तहत सनातन धर्म, हिन्दुत्व और धार्मिक परम्पराओं की गलत और पूर्वाग्रहग्रस्त व्याख्या-कहानी स्थापित करने की कुत्सित कोशिश कर रही है।
यदि आप निष्पक्ष मन से विचार मंथन करेंगे तो समझ आएगा कि कलात्मक कल्पनाशीलता और रचनात्मक अभिव्यक्ति के बहाने सनातन संस्कृति और उससे संबंधित वर्ग की छवि को लांछित और दूषित करने का अभियान युद्ध स्तर पर चल रहा है। इसमें महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि खास जमात को दूध धुला और पाक-साफ बताने-दिखाने-साबित करने का एजेंडा भी इन छद्म धर्मनिरपेक्ष की अघोषित मुहिम का हिस्सा है। अधिकांश वेबसीरीज न केवल अश्लीलता परोसने का काम कर रही हैं, बल्कि देश और समाज के नकारात्मकता का भाव पैदा करके राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर पर विघटन व विध्वंस की स्थितियां उत्पन्न का प्रयास करती दिखती हैं।
लगते रहे हैं गंभीर आरोप
कई डिजिटल मंचों पर सनातन वैदिक संस्कृति और धर्म को बदनाम किए जाने और देश की छवि को नकारात्मक बनाने का एजेंडा चलाने का आरोप है। अनेक वेबसीरीज पर भारत की नकारात्मक छवि बनाने और सनातन वैदिक संस्कृति व धर्म को बदनाम करने के आरोप लग चुके हैं। कई शो का कंटेंट यह साबित करने को पर्याप्त है कि रचनात्मकता के नाम पर कल्पना की आड़ लेकर बाकायदा सुनियोजित तरीके से लोगों की भावनाओं को आहत करने का खेल चल रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अपने विभिन्न शो के जरिए दुनिया में भारत, भारतीय सेना और सनातन संस्कृति की नकारात्मक छवि बनाने, हिन्दूफोबिया से पीड़ित होने के चले धर्म विरोधी दुष्प्रचार किए जाने और हिन्दुओं की भावनाएँ आहत करने के आरोप लगते रहे हैं। अधिकांश वेबसीरीज में कमोबेश कुछ न कुछ ऐसा कंटेंट होता ही है, जिससे देश-समाज-धर्म व संस्कृति पर कुठाराघात किया जा रहा है। ऐसे में इन राष्ट्र, धर्म और समाज विरोधी शक्तियों के योजनाबद्ध कुत्सित कृत्यों पर अंकुश लगाए जाने की आवश्यकता है। ओटीटी मंचों के कंटेंट को लेकर सनातन धर्म, भाजपा, शिवसेना और आरएसएस से जुड़े लोग अक्सर ऐसे आरोप लगाते रहे हैं। तमाम आरोपों के बावजूद इस क्रम में केद्र सरकार ने अभी तक सीधे-सीधे किसी अधिकारिक संस्था का गठन नहीं किया है। ऐसे में जरूरी है कि इससे निपटने को इनकी निगरानी और नियमन किया ही जाना चाहिए।
क्या हैं ओटीटी मीडिया - ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म
ओवर द टॉप (ओटीटी) स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म यानी डिजिटल मीडिया मंच एक ऐसी मीडिया प्रसारण सेवा है तो इंटरनेट के जरिए सीधे दर्शकों तक उपलब्ध होती है। दूसरे शब्दों में ओटीटी दरअसल केबल और उपग्रह आधारित परम्परागत टीवी प्लेटफार्म्स से अलग सीधे इंटरनेट से दर्शकों तक पहुंचती है। वेबसाइट और एप आधारित इस सेवा को कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन, टैबलेट, डिजिटल मीडिया प्लेयर और स्मार्ट टीवी पर एक्सेस किया जा सकता है। यह सब्सक्रिप्शन आधारित वीडियो प्रसारण सेवा है। ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्म्स में न्यूज पोर्टल के अलावा 'वेबस्ट्रिमिंग साइट' जैसे हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स, जी-5, अमेजन प्राइम वीडियो, एल्ट बालाजी, बिगफ्लिक्स, व्यू, सोनी लाइव, ईरोजनॉव, स्लिंगटीवी, फूबोटीवी, हुलू मर्कटीवी, प्लुटोटीवी, शड्डर, स्किनी, स्काईगो और वूट जैसे मंच आते हैं जो इंटरनेट के माध्यम से सीधे प्रसारित होते हैं। भारत में फिलहाल डिजिटल यानी ओटीटी प्लेटफार्म्स के प्रमाणन/नियमन और यहां प्रसारित शोज के कंटेंट पर निगरानी रखने को लेकर कोई संस्था नहीं है।
भ्रामक और नकारात्मक कंटेंट की है भरमार
फिलहाल
समाचार पोर्टल व अन्य सोशल प्लेटफॉर्म्स मंचों के लिए कोई प्रमाणन/नियमन
संस्था नहीं है। नतीजतन सोशल मीडिया साइट्स यानी डिजिटल मीडिया
प्लेटफार्म्स पर फेक न्यूज, उलजुलूल, नकारात्मक और अश्लील कंटेंट की भरमार
है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह डिजिटल मीडिया के लिए भी नियमन
का होना आवश्यक है। समय समय पर विभिन्न स्तरों पर इसकी मांग की जाती रही
है। अफवाहों और फर्जी खबरों का बाजार गुलजार होने के बाद अब यह मांग देशभर
में जोरशोर से उठ रही है कि फर्जी यानी फेक न्यूज फैलाने वालों पर शिकंजा
कसने के लिए न केवल सख्त कानून बनाया जाए, बल्कि सोशल मीडिया समेत इंटरनेट
आधारित समस्त मीडिया प्लेटफार्म्स का नियमन करने और उसके कंटेंट की निगरानी
को सरकार एक प्रभावी स्वायत्त संस्था का गठन भी करे। बीते दिनों सीएए,
एनआरसी और एनपीर विरोधी प्रदर्शनों के दौरान भी विभिन्न सोशल मीडिया
प्लेटफार्म्स पर तमाम तरह का भड़काऊ सामग्री अपलोड और फारवर्ड की गई। जिससे
यह विरोध प्रदर्शन कई जगह हिंसात्मक हो गए थे। इसके बाद कोरोना संक्रमण काल
में भी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स तमाम तरह के फर्जी, भ्रामक और
नकारात्मक कंटेंट की भरमार है।
विवादित और भ्रामक कथानक पर बनी वेबसीरीज
अभिनेत्री और प्रोड्यूसर अनुष्का शर्मा की पाताल लोक और एकता कपूर की दोनों वेब सीरीज पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगे। बीते दिनों अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई पाताललोक को लेकर उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद स्थित लोनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने सनातन धर्म की गलत छवि पेश करने का आरोप लगाया। विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने इस मामले को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और रासुका के तहत कार्रवाई की मांग की। भाजपा विधायक ने वेब सीरीज में देश, सनातन धर्म व साधु-संतों की गलत छवि पेश करने, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अपने फोटो का अनुचित इस्तेमाल किए जाने, भारतीय जांच एजेंसियों के गलत चित्रण का आरोप लगाया। वेब सीरीज पाताल लोक पर सरकार और भाजपा की छवि भी खराब करने की कोशिश करने के साथ ही जातीय •ोदभाव एवं वैमनस्यता को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप भी लगे हैं।
इतना ही नहीं अनुष्का शर्मा की पाताल लोक को लेकर सिख और नेपाली समुदाय भी बेहद खफा हैं। नेपाली समुदाय से जुड़े लोगों ने जहां जातिसूचक शब्द का प्रयोग करने पर शिकायत की है, वहीं सिख समुदाय के कुछ नेताओं ने सिखों के प्रदर्शन को लेकर भी आपत्ति जताई है। ऑल अरुणाचल प्रदेश गोरखा यूथ एसोसिएशन ने पाताल लोक के खिलाफ शिकायत की।
गोरखा समुदाय ने 'पाताल लोक' में 'नस्लीय टिप्पणी' और नेपालियों की छवि को अपमानजनक तरीके से पेश किए जाने का आरोप लगाते हुए अनुष्का शर्मा के खिलाफ एनएचआरसी में शिकायत दर्ज की थी। इसके अतिरिक्त, भारतीय गोरखा परिषद- भारतीय युवा गोरखा परिषद की युवा शाखा ने भी वेब श्रृंखला के खिलाफ एक ऑनलाइन अभियान शुरू किया था। गोरखा समुदाय ने अपमानजनक दृष्ट हटाने और माफीनामे की मांग की गई।
हाल ही में सेना के जवानों और अफसरों की पत्नियों की छवि धूमिल करने की कुत्सित मानसिकता वाली एक वेब सीरीज ट्रिपल एक्स अनसेंसर्ड और ट्रिपल एक्स-2 को लेकर एकता कपूर पर भारतीय सेना के अपमान समेत तमाम गंभीर आरोप लगे। ट्रिपल एक्स अनसेंसर्ड वेब सीरीज में एक महिला को अपने सैनिक पति के साथ धोखेबाजी करते हुए दिखाया गया है। विवादित सीन में महिला आर्मी यूनिफॉर्म को फाड़ती दिखी। साथ ही अन्य कई आपत्तिजनक सीन भी दिखाए गए।
इस मामले में बिग बॉस शो के एक्स कंटेस्टेंट हिंदुस्तानी भाऊ के अलावा इंदौर और मध्यप्रदेश में भी लोगों ने एकता कपूर के खिलाफ मामले दर्ज कराए थे। सभी ने ऑल्ट बालाजी पर स्ट्रीम होने वाली वेब सीरीज ट्रिपल एक्स-2 से आपत्तिजनक दृष्यों को हटाने, सेना से माफी मांगने और पद्मश्री सम्मान वापस लिए जाने की मांग की थी। जिसके बाद एकता कपूर ने एक विवादित दृश्य को हटाते हुए भारतीय सेना से माफी तक मांगी, लेकिन मामला अभी शांत नहीं हुआ है और विरोध जारी है।
हालांकि अनुष्का शर्मा और एकता कपूर की हाल ही में आई दोनों वेबसीरीज तो बानगी भर हैं। नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित ‘लैला’ भी भ्रामक कथानक से लबरेज वेब सीरीज में से एक थी। दीपा मेहता के निर्देशन में बनी लैला प्रयाग अकबर के उपन्यास पर आधारित थी। इसे देखकर कोई अनपढ़ भी कहानी लिखने वाले और फिर उसे परदे पर उतारने वाले शख्स के नापाक मंसूबों को बेहद आसानी से भांप सकता है।
सेक्रेड गेम्स भी ऐसी ही नकारात्मक और विवादित कंटेंट वाली वेब सीरीज रही। वेब थ्रिलर सेक्रेड गेम्स में सिख समुदाय और हिन्दू धर्म की छवि बिगाड़ने समेत कई आरोप लगे थे। इसे लेकर विवाद भी हुआ। विक्रम चंद्रा के 2006 में इसी नाम के उपन्यास पर आधारित विक्रमादित्य मोटवाने और अनुराग कश्यप निर्देशित नेटफ्लिक्स की इस वेब थ्रिलर का निर्माण फैंटम फिल्म्स के बैनर तले किया गया। सेक्रेड गेम्स का पहला सीजन जून 2018 में और दूसरा सीजन अगस्त 2019 में शुरू हुआ था।
जासूसी थ्रिलर वेब सीरीज बार्ड ऑफ ब्लड बिलाल सिद्दीकी के इसी नाम के 2015 में आए जासूसी उपन्यास पर आधारित है। शाहरूख खान की कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित और रिभु दासगुप्ता द्वारा निर्देशित इस वेब सीरीज के कंटेंट को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। नेटफ्लिक्स पर सितंबर 2019 में शुरू हुई बार्ड ऑफ ब्लड में भारतीय खुफिया एजेंसियों और भारत सरकार की छवि गलत तरीके से पेश करने के आरोप लगे थे। जी5 पर स्ट्रीम हुई वेब सीरीज कोड एम भी विवादों में आई थीं। जेनिफर विंगेट की इस सीरीज पर सेना के अपमान करने का, उसकी गलत छवि दिखाने का आरोप लगा था। अब कोई दो-चार नाम हों तो गिनाए भी जाएं यहां तो ऐसी वेबसीरीज एक लंबी फेहरिश्त है जिन पर भारत की नकारात्मक छवि बनाने और सनातन वैदिक संस्कृति व धर्म को बदनाम करने के आरोप लग चुके हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिए थे गाइडलाइन बनाने के निर्देश
बीते साल यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी जा पहुंचा। ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म्स के नियमन को लेकर दिल्ली के एक एनजीओ जस्टिस फॉर राइट्स की तरफ से एक याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में ओटीटी प्लेटफार्म्स के नियमन और उनके कंटेंट पर निगरानी रखने को लेकर नियम-कानून बनाने के साथ ही सेंसर बोर्ड के समकक्ष व्यवस्था किए जाने की मांग की गई थी। जिसके बाद ओटीटी प्लेटफार्म्स नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और हॉटस्टार आदि पर नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया गया। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से ऐसे सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के कंटेंट को रेग्यूलेट करने के लिए लेकर अलग से एक गाइडलाइन जारी करने के निर्देश दिए। लेकिन अभी तक इसे लेकर कोई प्रभावी निर्णय नहीं लिया जा सका है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस संदर्भ में सरकार द्वारा विशेषज्ञों से भी सलाह मांगी गई है कि इससे कैसे निपटा जाए।
सूचना और प्रसारण मंत्री ने स्वनियमन पर दिया बल
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीते दिनों एक मीडिया संस्थान के कार्यक्रम में वेब सीरीज के स्वनियमन पर बल दिया था। हालांकि अधिकांश वेब सीरीज के कथानक का अध्ययन करने के बाद यह तय माना जाना चाहिए कि यहां स्वनियमन बहुत दूर की कौड़ी है, देर-सवेर सरकार को ही नियमन संबंधी कदम उठाने होंगे। इसके लिए सरकार अपनी संस्था नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन का बेहतर और बखूबी उपयोग कर सकती है। देश-समाज-धर्म व संस्कृति विरोधी इस कुत्सित षड्यंत्र के खात्मे को वर्तमान में प्राथमिक जरूरत दरअसल ओटीटी प्लेटफार्म्स समेत पूरे डिजिटल मीडिया का नियमन-प्रमाणन किए जाने की है। इस संदर्भ में नियम बनें और सख्ती से लागू भी किए जाएं।
'ओटीटी' मंचों का नियमन होने की बंधी उम्मीद
भारत में ओटीटी मंचों पर बड़ी फिल्मों के रिलीज होने की परम्परा शुरू होने की कवायद के बीच इस डिजिटल मीडिया माध्यम को लेकर प्रमाणन/नियमन संबंधी कायदे-कानून बनाए जाने और इस पर प्रसारित कंटेंट की निगरानी को प्रभावी संस्था के गठन की उम्मीद भी बंधने लगी है। दरअसल देश में डिजिटल मंच यानी ओटीटी प्लेटफार्म्स खासे लोकप्रिय हो रहे हैं और उनके सब्सक्राइबर्स की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। बावजूद इसके फिलहाल ओटीटी मंचों के लिए कोई प्रमाणन संस्था नहीं है, समाचार पोर्टल व अन्य सोशल प्लेटफॉर्म्स के मामले में भी यही स्थिति है।
दरअसल डिजिटल यानी ओटीटी प्लेटफार्म्स को लेकर कोई नियमन संस्था नहीं होने के चलते इन प्लेटफार्म्स पर फेक न्यूज, उलजुलूल, नकारात्मक और अश्लील कंटेंट की भरमार है। ऐसे में फिल्मों की भांति वेब स्ट्रीमिंग साइटों (ओटीटी) के लिए भी नियमन का होना आवश्यक है। समय समय पर विभिन्न स्तरों पर इसकी मांग की जाती रही है। ओटीटी पर लगातार ऐसा सिनेमा आ रहा है जिसका कंटेंट अच्छा होने के साथ ही बुरा और बहुत बुरा भी है। विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्म्स तमाम तरह के फर्जी और नकारात्मक कंटेंट की भरमार है। बीते एक अरसे के दौरान रिलीज कुछ वैब सीरीज में खासा नकारात्मक कंटेंट परोसा गया।
देश में यह हैं फिल्म-टीवी के प्रमाणन-नियमन संस्थान
देश में फिल्मों के नियमन का जिम्मा केंद्रीय फिल्म प्रमाणन परिषद यानी फिल्म सेंसर बोर्ड के पास है। विभिन्न मंचों पर प्रकाशित-प्रसारित विज्ञापनों के कंटेंट पर नजर रखने का काम भारतीय विज्ञापन मानदंड परिषद के जिम्मे है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया यानी समाचार चैनलों का प्रमाणन/नियमन जहां सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन है, वहीं इन पर प्रसारित समाचारों की निगरानी रखने का काम चैनल्स के संचालकों की संस्था न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) द्वारा किया जाता है।