इस वक्त दिल्ली में रहने वाले
लोग भयकर वायू प्रदूषण का सामना कर रहे है. दिल्ली की हवाओं में धुये की मात्रा इतनी
ज्यादा बढ़ गई है कि देश का दिल कहलाये जाने वाले इस शहर में लोगों का सांस लेना तक
मुश्किल हो गया है. ऐसा पहली बार नही हो रहा है जब दिल्ली के लोग जहरीली हवाओं में
सांस लेने के लिए मजबूर हुए हो. हर साल नवम्बर का महीना इस शहर के लोगो के लिए भयंकर
वायू प्रदूषण लेकर आता है. दिल्ली की ये स्थिति तब है जब यहां केंद्र सरकार के साथ
साथ राज्य सरकार भी शासन कर रही है. ऐसे में सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर क्यों देश
की राजधानी पिछली कई सालों से इस मौसम में वायू प्रदूषण का दंश झेल रही है.
दरअसल वायू प्रदूषण को कम करने
को लेकर हमारे राजनेताओं के पास कोई रोडमैप नही है. यहां केन्द्र में बैठी सरकार इस
समस्या का ठीकड़ा राज्य सरकार पर फोड़ने की कोशिश करती है तो राज्य सरकार ये समझाने
की कोशिश करती है कि इसका समस्या के पीछे जिम्मेदार केंन्द्र सरकार है. आरोप प्रत्यारोप
में ये सवाल काफी पीछे छूट जाता है कि इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है. सरकारी
तंत्र से लेकर मीडिया तक, ना कभी इस मुद्दे
को लेकर कोई गम्भीर बहस होती है और ना ही एक नागरिक के तौर पर इस देश के आमलोग अपनी
सरकारों से खराब होते पर्यावरण को लेकर कोई सवाल पूछते है. मीडिया में रोजाना रात में
बेमतलब के मुद्दे छाये रहते है. ऐसे में बेरोजगारी, गरीबी,
पर्यावरण जैसे बुनियादी मुद्दे कही पीछे छूट जाते है. एक दर्शक के तौर
पर इस देश के आमलोग भी इन बहसों को खूब दिल लगाकर सुनते है. राष्ट्रवाद, आतंकवाद और पाकिस्तान को लेकर होने वाली इन बहसों को सुनते सुनते अब हम उस
स्थिति में पहुंच चुके है जहां हमारे पास सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा का भी आभाव
हो गया है.
वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के
मुताबिक दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में छठे नम्बर पर है. क्या सच में
से नम्बर हमे विचलित नही करता है. रोजाना राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने वाले एंकरों और
नेताओं से क्या कभी हमने पूछने की कोशिश की कि इस राष्ट्र की राजधानी दुनिया की छठी
सबसे प्रदूषित नगरी क्यों है. वो राष्ट्र कैसे दुनिया की सुपरपॉवर बन सकता है जिसकी
राजधानी में रहने वाले लोगो के पास सांस लेने के स्वच्छ हवा भी ना हो. अभी भी वक्त
है हमे अपने बुनियादी मुद्दे पर वापस आना पड़ेगा वरना आने वाली स्थिति काफी खतरनाक
हो सकती है.