अस्सी के दशक में कानपुर के बेहमई गांव में 22 ठाकुरों की हत्या करने वाली दस्यु फूलन देवी को चंबल इलाके के एक ठाकुर राजनेता की बदौलत ही राजनीति के शीर्ष तक जाने का मौका मिला था।
जालौन जिले के पुरवा गांव निवासी एक मल्लाह परिवार में 10 अगस्त 1963 को जन्मी फूलन देवी को ठाकुर जाति के दुश्मन के रूप में याद किया जाता है । प्रतिकार का बदला लेने के लिए डकैत फूलन ने 14 फरवरी 1981 को कानपुर के बेहमई में 22 ठाकुरों को मौत की नींद सुला दिया था। तब से फूलन के प्रति ठाकुरों में नफरत है लेकिन, यह भी सच है कि बेहमई कांड के बाद एक ठाकुर ने ही फूलन देवी की कदम दर कदम मदद की थी और उन्हें राजनीति का ककहरा पढ़ाया था ।
फूलन के ठाकुर से लगाव का खुलासा तब हुआ जब वह भदोही से सासंद बन गयीं थी । चंबल इलाके के चकरनगर में समाजवादी पार्टी की एक सभा थी, इसमें मुलायम सिंह भी मौजूद थे । ठाकुर बाहुल्य इलाके में आयोजित इस सभा में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी को निर्देश दिया कि वे अपने संबोधन में ठाकुरों के सम्मान में भी कुछ बोलें। तब फूलन ने इस बात का खुलासा किया “ भले ही मुझे ठाकुरों से नफरत के लिए याद किया जाता है लेकिन बेहमई कांड के बाद मेरी सबसे ज्यादा मदद एक ठाकुर ने ही की थी। उन्होंने इलाके के प्रभावशाली ठाकुर नेता जसवंत सिंह सेंगर का नाम लेते हुए बताया कि बेहमई कांड के जब वह गैंग के साथ जंगलों में दर-दर भटक रही थीं तब सेंगर साहब ने ही महीनों उन्हें शरण दी। खाने पीने से लेकर अन्य संसाधन भी उपलब्ध करवाए।”
इस जनसभा को हुए वर्षों बीत गए लेकिन, आज भी फूलन और सेंगर की चर्चा चंबल में होती है। दिवंगत जसवंतसिंह के बेट हेमरूद्र सिंह बताते हैं कि बेहमई कांड के वक्त उनके पिता स्थापित कांग्रेस नेता और चकरनगर के ब्लाक प्रमुख थे । ऐसे में फूलन देवी और उनके गैंग के सदस्यों ने जब पिता से मदद मांगी तो उन्होने इंकार नहीं किया। फूलन और उनके गैंग के सदस्यों को अपने खेतों में रुकने का बंदोबस्त कर दिया। फूलन भी जसवंत सिंह की काफी इज्जत करती थीं। जसवंत के कहने पर बतौर सांसद फूलन ने क्षेत्र में कई काम करवाए थे।
फूलन की भले ही अपने जमाने में तूती बोलती थी लेकिन आज उनकी मां घोर गरीबी में जी रही हैं । चंबल फाउंडेशन के संस्थापक शाह आलम बताते हैं कि जालौन जिले के महेवा ब्लाक अंतर्गत शेखपुर गुढ़ागांव में फूलन की मां मूला देवी केवट इन दिनों बहुत कष्ट में हैं। घोर गरीबी में वे दुखों का पहाड़ ओढकऱ एक-एक दिन जीवन काट रही हैं । 7 जून 2018 को फूलन की सबसे छोटी बहन रामकली का अभाव की जिंदगी जीते हुए निधन हो गया । वही मूला का एकमात्र सहारा थी। ऐसे में अब मूला को मौत कब खाली पेट दस्तक दे दे कुछ कहा नहीं जा सकता।