आजादी की लड़ाई में बिहार के भागलपुर जेल में हर रोज कैदियों को शाम को एक कहानी सुनाई जाती थी और उसी एक कहानी से हिंदी के प्रख्यात लेखक फणीश्वरनाथ रेणु के कालजयी उपन्यास ‘मैला आंचल’ का जन्म हुआ था। हिंदी के वृद्ध आलोचक एवं समाजवादी नेता रामबचन राय ने रेणु की जन्मशती वर्ष के अवसर पर एक ऑनलाइन गोष्ठी में यह रहस्योद्घाटन पहली बार किया है।
गौरतलब है कि फेसबुक पर रेणुजी की ऑनलाइन जन्मशती मनाई जा रही है और विभिन्न विद्वान व्यायख्यान दे रहे हैं।
प्रोफेसर राय ने कहा कि जब वह पटना विश्वविद्यालय में एम ए हिंदी के छात्र थे और साठ के दशक में उनकी पहली बार मुलाकात फणीश्वर नाथ रेणु से हुई थी। उन्होंने बताया कि रेणुजी ने मैला आँचल के बारे में एक बहुत ही दुर्लभ बात उन्हें बताई थी कि आजादी की लड़ाई में जब श्री रेणु भागलपुर की जेल में बंद थे तो वहां हर शाम को कैदियों को एक कहानी सुनाई जाती थी और एक दिन रेणुजी ने भी एक ‘भूत की कहानी’ सुनाई थी जिसमें एक पात्र का नाम प्रशांत था जिसने प्रेम में असफल हो कर आत्महत्या कर ली थी। जब रेणुजी भागलपुर जेल में गंभीर रूप से बीमार पड़े तो पटना के पीएमसीएच अस्पताल में उनका इलाज हुआ और इस दौरान उन्हें उस पात्र प्रशांत के बार-बार सपने आते रहे जिसमें वह उनसे पूछता रहा कि वह उनकी आगे की कहानी कब लिखेंगे। इस घटना से ही उद्वेलित होकर रेणुजी ने 1954 में मैला आंचल जैसा कालजयी उपन्यास लिखा जिसके छपते ही हिंदी साहित्य में धूम मच गई थी । बाद में उस उपन्यास पर न केवल नाटक हुए बल्कि फिल्म भी बनी और दूरदर्शन पर धारावाहिक भी बना।
श्री राय का कहना है कि रेणुजी के लेखन के बारे में तो सब लोग जानते हैं लेकिन इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं की रेणुजी दिनमान पत्रिका के लिए 1966 में बिहार विधान सभा से रिपोर्टिंग भी करते थे और दक्षिण बिहार में जब अकाल पड़ा तो वे दिनमान के संपादक अज्ञेय के साथ रांची और डालटनगंज भी गए थे और वहां से उसकी रिपोर्टिंग भी की थी।
प्रो. राय ने कहा कि जब आपातकाल लगा तो एक बार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ कोलकाता से लौटते हुए पटना आकर रेणुजी से अस्पताल में मिले और आपातकाल के विरोध में एक बयान पर रेणुजी के हस्ताक्षर लिए थे।
उन्होंने कहा कि रेणुजी आजादी के बाद हिंदी के दूसरे प्रेमचंद थे और उन्होंने प्रेमचंद से आगे के भारतीय गांव की कथा लिखी। आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि रेणुजी आदिवासियों की कथा लिखने वाले हिंदी के पहले उपन्यासकार थे और उन्होंने जाति के प्रश्न को भी उठाया था।
डॉ जितेंद श्रीवास्तव ने कहा कि उनके उपन्यासों में नेहरू युग से मोहभंग की कथा है। वे नेहरू की नीतियों के आलोचक थे लेकिन व्यक्तिगत विरोध नहीं किया बल्कि उनके समर्थन में आज़ादी की लड़ाई में नारे लगाये।
प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि उनका मैला आँचल आज भी प्रासंगिक उपन्यास है और वह आंचलिक लेखक नही बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेखक थे।
कथाकार हृषिकेश सुलभ ने कहा कि रेणुजी ने एक टेबल के लिए पटना आकाशवाणी से नौकरी छोड़ दी और धर्मयुग में उन्होंने टेबल नाम से एक कहानी भी लिखी।
उन्होंने कहा कि रेणुजी ने पटना में अंधेर नगरी नाटक में भूमिका भी निभायी थी।