छह गांवों को मिलाकर बसी है 'गुलाबी नगरी' 'जयपुर'
यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है आमेर किला, जंतर-मंतर और परकोटा
गुलाबी शहर के नाम से मशहूर जयपुर को यूनेस्को की विरासत स्थल सूची में शामिल है। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में शामिल जयपुर शहर को राजा जयसिंह ने वर्ष 1727 में छह गांवों को मिलाकर बसाया था। चौड़ी-चौड़ी सड़कों और वास्तुकला की पहचान रखने वाला जयपुर शहर यानी पिंक सिटी छह गांवों नाहरगढ़, तालकटोरा, संतोष सागर, मोतीकटला, गलताजी और किशनपोल को मिलाकर बनाया गया था। जयपुर आज अपनी वास्तुशिल्प के लिए विश्वविख्यात है। छह गांवों को मिलाकर बसाया गया यह ऐतिहासिक नगर अपनी स्थापत्य कला के कारण पर्यटकों में आकर्षण का केंद्र है। यहां की संस्कृति, वस्त्र सज्जा और लोकगीत लोगों को लुभाते रहे हैं।
चारों ओर से दीवारों से घिरा है शहर, प्रवेश को बनाए गए थे सात द्वार
शानदार महलों वाला यह शहर चारों ओर से दीवारों से घिरा है, इसमें प्रवेश के लिए सात द्वार बनाए गए थे। गुलाबी शहर के नाम से मशहूर जयपुर नगरी में स्थित शानदार महल और इमारतों के वैभव संग इसकी चौड़ी-चौड़ी सड़कें, पुरातन और नवीनता की कहानी कहती हैं। अपने आगोश में इतिहास की अनेक गाथाएं समेटकर रखने वाले इस शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ने की भी एक कहानी है। दरअसल वर्ष 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन के अवसर पर महाराजा सवाई मानसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था। तभी से जयपुर शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया।
पिंक सिटी में हैं दर्जनों ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल
पिंक सिटी नाम से मशहूर इस शहर में स्थित दर्जनों ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। इसमें शहर के बीचों बीच राजा का महल सिटी पैलेस के नाम से मशहूर है और यहां स्थित अंबर दुर्ग (आमेर किला), जंतर-मंतर, हवा महल, गोविंद देव जी मंदिर, गलताजी बंदर मंदिर, जल महल, नाहर गढ़ का किला, जयगढ़ किला, अल्बर्ट संग्रहालय, बिरला मंदिर, रामबाग पैलेस, राज मंदिर सिनेमा, जयपुर चिड़ियाघर, कनक वृंदावन गार्डन, चोखी ढाणी जयपुर, पन्ना-मीना का कुंड, नाहरगढ़ जैविक उद्यान आदि प्रमुख दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए दूर-दराज से पर्यटक जयपुर आते हैं।
यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं जयपुर की तीन ऐतिहासिक विरासत
राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली पर्वतमाला की एक पहाड़ी पर बना 'आमेर दुर्ग', दुनियाभर में प्रसिद्ध खगोलशाला 'जन्तर-मन्तर', और पुरातन नगर का परकोटा (चारदीवारी क्षेत्र) यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं। कुलमिलाकर ऐतिहासिक शहर जयपुर, अहमदाबाद नगर, अजंता एलोरा की गुफाएं, ताजमहल, भीमबेटका, काजीरंगा समेत देश के करीब चार दर्जन स्थल ऐसे हैं, जिन्हें यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया जा चुका है।
रास्तों की चौड़ाई पर दिया गया विशेष ध्यान
जयपुर शहर को बसाते समय सड़कों और विभिन्न रास्तों की चौड़ाई पर विशेष ध्यान दिया गया। शहर के मुख्य बाजार त्रिपोलिया बाजार में सड़क की चौड़ाई 107 फीट रखी गई तो वहीं हवामहल के पास ड्योढ़ी बाजार के पास 104 फीट की सड़क बनाई गई। जौहरी बाजार की दुकानों के बरामदे से जौहरी बाजार की चौड़ाई 92 फीट रखी गई। वहीं जब चांदपोल बाजार बना तो दुकानों के बरामदे से चौड़ाई 91 फीट रखी गई। मुख्य बाजार की सड़कों के दोनों ओर बाजार की तरफ झांकते हुए भवनों का आकार और ऊंचाई एक जैसी करने पर खास ध्यान दिया गया। चान्दपोल से सूरजपोल गेट पश्चिम से उत्तर की ओर है और यहां मुख्य सड़क दोनों द्वारों को जोड़ती है, बीच-बीच में चौपड़ है। जौहरी बाजार के भवन आज भी सबसे सुन्दर और एकरूपता लिए हुए दिखते हैं। ऐसे ही सुन्दर भवन सिरह ड्योढ़ी बाजार में देखने को मिलते हैं, इस बाजार को हवामहल जैसा सुन्दर बनाया गया।
राजस्थान की शान है 'आमेर किला'
राजस्थान की शान कहे जाने वाला विश्व धरोहर में भी शामिल 'आमेर किला' अरावली पर्वतमाला की एक पहाड़ी पर बना है। यह राजस्थान के बेहतरीन किलो में से एक है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मानिंसह ने करवाया था। आमेर दुर्ग युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल है। आमेर दुर्ग के सामने एक झील भी है, जिसे मावटा सरोवर नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में आमेर को अम्बावती, अम्बरेश्वर, अम्बकेश्वर, आंबेर, अंबेर, अमरपुरा और अमरगढ़ आदि नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि अम्बकेश्वर भगवान शिव के नाम पर यह नगर 'आमेर' बना, परन्तु अधिकांश लोग और तार्किक अर्थ अयोध्या के राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं। भक्त अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना, तब यह स्थान उनके नाम अम्बरीश से जाना गया। कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से यह 'आमेर' या 'आम्बेर' बन गया। 'आमेर दुर्ग' को देखने के लिए न सिर्फ देश, बल्कि दुनियाभर से पर्यटक आते हैं।
खगोलशाला 'जन्तर-मन्तर' है जिज्ञासा का केंद्र
खगोलीय वेधशाला जन्तर मन्तर का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 1724 से 1734 के बीच कराया गया था। यह यूनेस्को के 'विश्व धरोहर सूची' में सम्मिलित है। सिटी पैलेस के पास बना जंतर मंतर भी पर्यटकों की जिज्ञासा का केंद्र है। प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस वेधशाला में 14 प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने, सौर मण्डल के ग्रहों संबंधी दिक्पात (चुम्बकीय परिवर्तन) आदि जानने में सहायक हैं। इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि भारतीयों को गणित एवं खगोल विज्ञान की जटिल संकल्पनाओं (कॉंसेप्ट्स) का इतना गहन ज्ञान था। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इन संकल्पनाओं को एक 'शैक्षणिक वेधशाला' का रूप देने का काम किया। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने वैदिक खगोलशास्त्र के आधार पर देश भर में जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में पांच वेधशालाओं का निर्माण कराया था। इन वेधशालाओं को नाम दिया गया जन्तर-मन्तर। इन वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उस समय के प्रख्यात खगोलशास्त्रियों की मदद ली गई थी। सवाई जयसिंह को खुद भी खगोल शास्त्र के ज्ञाता थे। देश की सभी पांच वेधशालाओं में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी है। यह अन्य जन्तर-मन्तर से आकार में तो विशाल है ही, शिल्प और यंत्रों की दृष्टि से भी इसका कोई मुकाबला नहीं है।
मानसागर सरोवर के बीच में बना है 'जलमहल'
जलमहल जयपुर-आमेर मार्ग पर अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित मानसागर सरोवर के बीच में बना हुआ एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक महल है। जलमहल का निर्माण आमेर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने 18 वी शताब्दी में कराया था। इस महल के निर्माण से पहले जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर झील का निर्माण करवाया, इसका निर्माण 1799 में हुआ था।
'हवा महल' है आकर्षण का मुख्य केंद्र
जयपुर के व्यापारिक केंद्र के हृदयस्थल में मुख्य मार्ग पर चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित हवा महल भी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें 953 बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज गर्मी में भी महल सदा वातानुकूलित सा ही रहता है। हवा महल का निर्माण 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। इसे हिन्दू भगवान कृष्ण के मुकुट के रूप में डिजाइन किया था।
घूमने को कैसे और कब पहुंचें जयपुर
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से गुलाबी नगरी जयपुर की दूरी करीब 270 किलोमीटर है। राजस्थान की राजधानी और ऐतिहासिक पर्यटन स्थल होने के चलते यह ऐतिहासिक नगर देश के अधिकांश बड़े शहरों से रेल, सड़क और वायु मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली आदि विभिन्न राज्यों से यहां के लिए नियमित रूप से बस सेवा भी संचालित होती है। यहां शहर से मात्र 13 किमी. की दूरी पर सांगानेर हवाई अड्डा स्थित है्, जिसे जयपुर अर्न्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा के नाम से भी जाना जाता है। यह हवाई अड्डा नियमित उड़ानों के जरिए मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ़ और हैदराबाद समेत देश के बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।जयपुर रेलवे जंक्शन देश के कई प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की सेवाओं का भी लाभ उठाया जा सकता है। जयपुर में जलवायु साल भर में मौसत के तमाम अनुभव करवाती है। गर्मियों में यहां कभी-कभी भंयकर गर्मी पड़ती है, जबकि सर्दियों के दिनों में काफी ठंड होती है। पिंक सिटी घूमने के लिए नवम्बर से मार्च तक का समय सबसे बेहतर होता है।