उत्तर प्रदेश में मथुरा के सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट रामदत्त राम ने पुलिस द्वारा शांति भंग की जांच रिपोर्ट को अदालत में सही समय में दाखिल न करने के कारण पीएफआई के चार सदस्यों के खिलाफ दायर मुकदमें में अभियुक्तों के खिलाफ अदालती कार्रवाई को समाप्त कर दिया है।
मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में लिखा है कि पिछले 5 अक्टूबर को मथुरा जिले की मांट थाने की पुलिस ने पीएफआई के सदस्यों आलम, अतीकुररहमान, मसूद एवं प़त्रकार सिद्दीक कप्पन को शांति भंग करने के आरोप में धारा 151, 107,116 सीआरपीसी के अन्तर्गत गिरफ्तार किया था। पुलिस ने बाद में अभियुक्तों को संगीन धाराओं 153ए, 295ए, 124ए, 120 बी आईपीसी एवं 17/18यूपीए एवं 65/72 आईटी एक्ट में जेल भेज दिया था। चारों अभियुक्त संगीन धाराओं में गिरफ्तारी के बाद से अब तक जेल में बन्द हैं।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता मधुबन दत्त चतुर्वेदी ने बताया कि नियमानुसार यदि किसी अभियुक्त को शांति भंग के आरोप में पुलिस गिरफ्तार करती है तो पुलिस को उसके लिए 6 महीने के अन्दर ही साक्ष्य प्रस्तुत करना होता है। इस मामले में पुलिस के साक्ष्य प्रस्तुत न करने के कारण मजिस्ट्रेट ने चारों के खिलाफ शांति भंग करने के आरोप की कार्रवाई को तकनीकी आधार पर स्थगित करते हुए मंगलवार को लिखा है कि धारा 116 (6) की समय सीमा समाप्त हो गई है इसलिए अभियुक्तों के खिलाफ दायर किये गए शांति भंग के मुकदमें को समाप्त किया जाता है।
मजिस्ट्रेट ने यह भी लिखा है कि चूंकि चारो अभियुक्त गिरफ्तारी से अब तक जेल में हैं अतः उनसे शांति भंग करने की संभावना भी नही है। अभियुक्तों के खिलाफ धाराओं 153ए, 295ए, 124ए, 120 बी आईपीसी एवं 17/18यूपीए एवं 65/72 आईटी ऐक्ट मे दायर मुकदमों में सुनवाई विभिन्न स्तर में चल रही है।
उक्त चारो अभियुक्तों पर यह भी आरोप है कि वे हाथरस में बलात्कार पीड़िता की मृत्यु के बाद वहां के माहौल को खराब करने जा रहे थे। इसलिए ही उन पर राष्ट्रद्रोह जैसी गंभीर धाराएं लगाई गई थीं।