जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है तब से नेशनल हेराल्ड को लेकर तमाम सवाल लोकसभा से लेकर आम सभाओं तक चर्चा का विषय बने हुए हैं.
मोदी सरकार को लेकर तमाम सवाल उठाने वाली कांग्रेस पार्टी नेशनल हेराल्ड को लेकर असहज नजर आती है.
2004 के बाद लगातार 10 सालों तक भारतीय राजनीति पर काबिज रहने वाली कांग्रेस पार्टी अपने कार्यकाल में करप्शन के कई मामलों में घिरी हुई नजर आई लेकिन नेशनल हेराल्ड ही एकमात्र ऐसा मामला है जिसमें गांधी परिवार के किसी सदस्य का नाम सीधे तौर पर सामने आता है.
देश की राजनीति में अपनी जमीन दोबारा हासिल करने के लिए प्रयासरत कांग्रेस पार्टी आखिर क्यों नेशनल हेराल्ड को लेकर बैकफुट पर खेलने क लिए मजबूर हो जाती है.
बात उस वक्त की है जब ये देश अंग्रेजों की गुलामी कर रहा था.
ये साल था 1937 जब हिन्दुस्तानियों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक असोसिएटेड जर्नल बनाया. इस जर्नल के तहत तीन अखबार निकाले जाने लगे.
इन अखबारों में से एक अखबार अंग्रेजी में था. इसी अखबार का नाम था नेशनल हेराल्ड. नेशनल हेराल्ड पर किसी का मालिकाना हक नही था. इसको लगभग 500 स्वतन्त्रता सेनानी वित्तीय सर्पोट कर रहे थे, वही इसके शेयर होल्डर भी थे. वक्त गुजरता गया और 15 अगस्त 1947 को ये देश का आजादी मिल गई.
आजादी मिलने के बाद इस अखबार की ब्रिक्री कम होने लगी. नेशनल हेराल्ड को विज्ञापन देने वालों की संख्या में जबरदस्त गिरावट आई और 2008 आते आते पैसो के अभाव के चलते इस अखबार को बन्द करना पड़ गया. बन्द होने के वक्त इस अखबार के ऊपर 90 करोड़ रूपये का कर्ज था.
नेशनल हेराल्ड के ऊपर भारी वित्तीय संकट था. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने अखबार के वित्तीय संकट को दूर करने के लिए एक ट्रिक अपनाई. इस पार्टी ने नॉट-फॉर-प्राफिट कंपनी बनाई जिसका नाम था यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड. इस कंपनी के 76 परसेंट शेयर राहुल और सोनिया गांधी के पास थे. यंग इडिया कम्पनी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से 90 करोड़ रूपये दिये गये जिसकी बदौलत इस कम्पनी ने असोसिएटेड जर्नल को खरीद लिया. ऐसा करके नेशनल हेराल्ड पर यंग इडिया का मालिकाना हक हो गया.
2012 में बीजेपी नेता सुब्रमनियन स्वामी ने एक जनहित याचिका (PIL) डाली. इसके बाद उन्होंने कांग्रेसी नेताओं पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया. स्वामी ने कहा कि मात्र 50 लाख रुपए खर्च करके 90 करोड़ रुपयों की वसूली कर ली गई. इनकम टैक्स ऐक्ट के हिसाब से कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी भी थर्ड पार्टी के साथ पैसों का लेन-देन नहीं कर सकती. ये भी सवाल उठाया गया कि तमाम अन्य बिजनेस में दखल रखने वाली एजेएल कम्पनी ने अपना कर्ज खुद क्यो नही चुकाया जबकि ऐसा करने में वो पूरी तरह सक्षम थी.
1. स्वामी ने कहा कि कांग्रेस ने पहले तो 90 करोड़ का लोन दिया. फिर अकाउंट बुक्स में हेर-फेर करके उस रकम को 50 लाख दिखा दिया. यानी 89 करोड़ 50 लाख रुपए यहीं माफ कर दिए गए.
2. अखबार छपना बंद होने के बाद असोसिएटेड जर्नल ने प्रॉपर्टी का काम शुरू कर दिया यानी वो रियल एस्टेट फर्म बन गई, जो दिल्ली, लखनऊ और मुंबई में बिजनेस कर रही थी. स्वामी का आरोप है कि इस रियल एस्टेट फर्म के हिस्से जो भी प्रॉपर्टी थीं, वो भी कांग्रेस के नेताओं ने अपने नाम कर लीं, क्योंकि असोसिएटेड जर्नल को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड खरीद चुकी थी. ये संपत्ति लगभग 2 हज़ार करोड़ की थी और इस तरह 90 करोड़ खर्च करके 2,000 करोड़ की प्रॉपर्टी के वारे-न्यारे हो गए.
नेश्नल हेराल्ड को लेकर स्वामी के आरोपों पर काग्रेस पार्टी का कहना है कि यंग इंडिया लिमिटेड को चैरिटी यानी दान-पुण्य के लिए बनाया गया था. उनके मुताबिक पैसों का जो लेन-देन हुआ है, वो फाइनैंशियल नहीं, बल्कि कॉमर्शियल था. यानी वित्तीय नहीं, बल्कि व्यावसायिक था.
गौरतलब है किे सुब्रमनियन स्वामी 2012 में पहली बार इस केस को लेकर अदालत में गये थे. कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद 26 जून 2014 को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी के अलावा मोतीलाल वोरा, सुमन दूबे और सैम पित्रोदा को समन जारी कर पेश होने के आदेश जारी किए थे. जिसके बाद कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. 21 दिसंबर 2018 को दिल्ली की कोर्ट ने हेराल्ड हाउस परिसर दो हफ्ते के अंदर खाली करने का आदेश दिया था. इसके बाद एजेएल ने एकल पीठ के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी। कोर्ट ने एजेएल पर अपना फैसला बरकरार रखा. कोर्ट के आदेशानुसार अब एजेएल को सात मजिला एजेएल हाउस खाली करना पडेगा. फिलहाल इसको लेकर कोर्ट ने कोई समय सीमा अभी निर्धारित नही की है.
नेशनल हेराल्ड में सीधे तौर पर राहुल और सोनिया गाधी का नाम सामने आया है ऐसे में बीजेपी इस मुद्दे के सहारे काग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को घेरने की पूरी कोशिश करेगी. क्योकि ये ही एकमात्र ऐसा मुद्दा है जिसको तूल देकर बीजेपी राहुल गांधी की छवि को सीधे तौर पर खराब कर सकती है. फिलहाल जिस तरीके से मोदी सरकार इस मुद्दे को गंभीर है ऐसे में ये आसानी से कहा जा सकता है कि काग्रेस पार्टी को हेराल्ड के जिन से छुटकारा पाना आसान नही होगा .
Web Title: Story Of National Herald