बेहद सरल और सस्ती है उगाने की प्रक्रिया
माइक्रोग्रीन्स में पौष्टिक तत्वों का खजाना छिपा होता है। साथ ही इन्हें उगाने की प्रक्रिया बेहद सरल और सस्ती है। वैज्ञानिकों की मानें तो माइक्रोग्रीन्स उगाने से अवसाद और तनाव से भी बचाव संभव है। क्योंकि इन्हें उगाने की प्रक्रिया और इनकी देखभाल में व्यक्ति का खाली समय भी बेहतर तरीके से व्यतीत हो जाता है। ऐसे में विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर माइक्रोग्रीन्स उगाना न केवल शारीरिक रूप से ही लाभदायक है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। माइक्रोग्रीन्स उगाना बेहद आसान है, इन्हें लगाने से काटने तक एक से दो सप्ताह का समय चाहिए।
सेवन से बढ़ती है शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) लखनऊ के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन बताते हैं कि माइक्रोग्रीन्स न केवल भोजन को स्वादिष्ट और पौष्टिक बनाते हैं, बल्कि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। इन्हें विटामिन, पोषक तत्वों और बायोएक्टिव कंपाउंड्स के खजाने के रूप में जाना जाता है। इस कारण माइक्रोग्रीन्स को सुपर फूड कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
स्प्राउट से कुछ अलग होते हैं माइक्रोग्रीन्स
भारतीय परिवेश में चना, मूंग और मसूर आदि को अंकुरित करके खाना एक आम बात है। ज्यादातर इस कार्य के लिए दालों वाली फसलों का प्रयोग किया जाता है और इन्हें अंकुरित बीज या स्प्राउट कहते हैं। माइक्रोग्रीन्स इन से कुछ अलग होते हैं, क्योंकि अंकुरित बीजों या स्प्राउट्स में हम जड़, तना एवं बीज-पत्र को खाने में प्रयोग में लाते हैं, लेकिन माइक्रोग्रीन्स में तने, पत्तियों एवं बीज-पत्र का उपयोग किया जाता है और जड़ों को नहीं खाते हैं। आमतौर पर माइक्रोग्रीन्स को मिट्टी या उससे मिलते-जुलते माध्यम में उगाया जाता है। माइक्रोग्रीन्स को विकास के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। मूली और सरसों जैसी सामान्य सब्जियों के बीज का उपयोग भी इसके लिए किया जा सकता है ।
बीज अंकुरण और पौधों का क्रमिक विकास बच्चों में जगाता है रूचि
डॉ. राजन कहते हैं कि माइक्रोग्रीन्स को स्वयं उगाना खासा रोमांचक है। इन्हें उगाना वयस्कों के लिए ही सुखद नहीं, बल्कि बच्चों के लिए भी रूचिकर है। शहरों के आधुनिक परिवेश में पले-बढ़े बच्चे आज पौधों की दुनिया से बहुत दूर हैं। माइक्रोग्रीन्स उगाना उनके लिए एक रोचक खेल का रूप ले सकता है। प्रतिदिन कुछ मिनट देने से इस रोमांचक कार्य में धीरे-धीरे उनकी रूचि बढ़ेगी। बच्चों के लिए सीखने के अतिरिक्त एक यह रोचक खेल की तरह है। इन्हें उगाने की प्रक्रिया और बीज से निकलने वाले पौधे और उसमें होने वाला क्रमिक विकास बच्चों में विज्ञान विशेषत: वनस्पति विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने में सहायक होता है।
बढ़ रहा है माइक्रोग्रीन्स के सेवन का चलन
माइक्रोग्रीन्स को उगाने और इनके सेवन का चलन अब बढ़ रहा है क्योंकि इन्हें उगाना मजेदार और कम मेहनत का काम है। ये कम ही दिन में तैयार हो जाते हैं और थोड़े दिन के अंतराल पर इसे कई बार उगाया जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि पूरे साल माइक्रोग्रीन्स का उत्पादन किया जा सकता है, बशर्ते वहाँ सूर्य की रोशनी आती हो है। डॉ. राजन ने बताते हैं कि यदि माइक्रोग्रीन्स के लिए प्रसिद्ध पौधों के बीज मिलने में कोई समस्या हो तो इसके लिए अन्य विकल्प भी अपनाए जा सकते हैं। घर में उपलब्ध मेथी, मटर, मसूर, मूंग, चना आदि को भी स्प्राउट्स की जगह माइक्रोग्रीन्स से रूप में उगा कर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।
कुछ ऐसी है माइक्रोग्रीन्स उगाने की प्रक्रिया
माइक्रोग्रीन्स उगाना बेहद आसान है, इन्हें लगाने से काटने तक एक से दो सप्ताह का समय चाहिए। माइक्रोग्रीन्स उगाने के लिए तीन से चार इंच मोटी मिट्टी की परत वाले किसी भी बॉक्स आदि को लिया जा सकता है और यदि ट्रे उपलब्ध है तो और अच्छा है। इसके लिए मिट्टी की सतह पर बीज को फैला दिया जाता है और उसके ऊपर मिट्टी की एक पतली परत डालकर धीरे-धीरे थपथपा कर यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि मिट्टी कंटेनर में अच्छी तरह से बैठ गई है। मिट्टी के ऊपर सावधानीपूर्वक पानी डालकर नमी बनाकर रखने से दो से तीन दिन में ही बीज अंकुरित हो जाते हैं। इन अंकुरित बीजों को थोड़ी धूप वाली जगह में रखकर उन पर दिन में दो से तीन बार पानी का छिड़काव किया जाता है। एक हफ्ते के भीतर ही माइक्रोग्रीन्स तैयार हो जाते हैं। यदि आप चाहें तो इन्हें दो से तीन इंच से अधिक ऊंचाई तक बढ़ने दे सकते हैं। इनकी कटाई कैंची के द्वारा आसानी से की जाती है और मिट्टी या अन्य माध्यम का उपयोग दोबारा किया जा सकता है। फसल काटने के बाद मिट्टी को गर्मी के दिनों में धूप में फैला कर रखने से उस में पाए जाने वाले रोग जनक सूक्ष्म जीव मर जाते हैं।
बिना मिट्टी के केवल पानी में भी उगाए जा सकते हैं माइक्रोग्रीन्स
डॉ. राजन के अनुसार माइक्रोग्रीन्स को बिना मिट्टी के भी उगाया जा सकता है। कई लोग इन्हें पानी में ही उगाते हैं। पोषक तत्वों के घोल का उपयोग करके अच्छे क्वालिटी के माइक्रोग्रीन्स का उत्पादन किया जा सकता है। माइक्रोग्रीन्स के लिए प्रतिदिन तीन से चार घंटे की सूर्य की रोशनी पर्याप्त है। घर के अंदर ही यदि आपके पास ऐसी जगह उपलब्ध है तो आसानी से उसका उपयोग किया जा सकता है। ऐसी जगह उपलब्ध नहीं होने पर फ्लोरोसेंट लाइट का उपयोग करके भी इनका सफलतापूर्वक उत्पादन किया जाना संभव है। घर के बाहर इन्हें उगाने में कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन कभी-कभी चिलचिलाती धूप में इनकी सुरक्षा करना आवश्यक हो जाता है।
सीमित संसाधन, कम लागत और अल्प समय में उगाना है संभव
माइक्रोग्रीन्स को बहुत कम लागत में सीमित संसाधन और अनुभव से कम समय में उगाया जा सकता है। यदि आप उगाने की कला जान जाते हैं तो इन्हें साल भर आसानी से उगाया जा सकता है। शहरों में जहां घरों में सीमित स्थान है और गृह वाटिका उपलब्ध नहीं है, माइक्रोग्रीन्स का उत्पादन एक अच्छा विकल्प है। खासतौर पर जब आपके पास समय की कोई कमी नहीं हो तो जल्दी तैयार होने वाली माइक्रोग्रीन्स की फसल का उत्पादन खुद का व्यस्त रखने के लिए एक बेहतर है। व्यस्त रहकर तनाव और अवसाद से दूर रखा जा सकता है। ऐसे में माइक्रोग्रीन उत्पादन शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभदायक है।
सलाद, सैंडविच और पिज्जा समेत विभिन्न व्यंजनों में किया जा सकता है उपयोग
माइक्रोग्रीन को उगाना आसान है और यह विभिन्न व्यंजनों के अलावा सलाद एवं सैंडविच में भी उपयोग में लाए जा सकते हैं। स्वादिष्ट एवं पौष्टिक पिज्जा बनाने में भी माइक्रोग्रीन्स का उपयोग किया जा सकता है। माइक्रोग्रीन को कैंची से काट कर धोने के बाद प्रयोग में लाया जा सकता है। माइक्रोग्रीन्स बेहद नाजुक होते हैं, अत: काटने के बाद बाहर रखने पर इनके सूखने का डर रहता है। अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के पर इन्हें फ्रिज में रखने से लगभग एक हफ्ते तक इनका उपयोग किया जा सकता है।