उच्चतम न्यायालय ने राज्यों से पूछा है कि क्या जाति आधारित आरक्षण की तय की गयी 50 प्रतिशत अधिकतम सीमा की समीक्षा की जानी चाहिए अथवा नहीं। न्यायालय ने इस संबंध में राज्यों से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने मराठा आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को शुरू हुई सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
पीठ ने राज्यों को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा है। इस मामले पर मंगलवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। शीर्ष अदालत में इस बात को लेकर सुनवाई शुरू हुई है कि आरक्षण से संबंधित मंडल प्रकरण नाम से चर्चित इंदिरा साहनी मामले पर न्यायालय की एक वृहद पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए अथवा नहीं।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 1992 में वरिष्ठ वकील इंदिरा साहनी की एक याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी। हालांकि पीठ ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा था कि विशेष परिस्थितियों में आरक्षण की सीमा को बढ़ाया जा सकता है।
देश के कई राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को पार कर गयी है। तमिलनाडु में 69 प्रतिशत, हरियाणा में 67 प्रतिशत और तेलंगाना में 62 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। पीठ ने कहा कि संविधान के 102वें संशोधन के मामले पर निर्णय लेने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे हर राज्य प्रभावित होता है। न्यायालय ने सभी राज्यों से जवाब मांगा था कि क्या संविधान का 102वां संशोधन राज्य विधायिकाओं को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने को लेकर कानून बनाने और अपनी शक्तियों के तहत उन्हें लाभ प्रदान करने से वंचित करता है।
उल्लेखनीय है कि संविधान में किये गए 102वें संशोधन अधिनियम के जरिये अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन, उसके कार्यों और शक्तियों से संबंधित है।