भारत 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था की और अग्रसर है और विकसित देशों की तरह आर्थिक, अन्तरिक्ष, मेन्युफेक्चरिंग, शिक्षा और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में विश्व गुरु बनना चाहता है.
वैसे तो यह सभी क्षेत्र सम्पूर्ण भारत के विकास के लिए बहुत ही ज़रूरी है लेकिन पर्यावरण की दिशा में भारत सरकार एक नया लक्ष्य हासिल करने के लिए 2030 तक भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर में 40% इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को पूरी तरह से पारंपरिक पेट्रोल और डीजल के वाहनों से परिवर्तित करना चाहती है.
विश्व में पर्यावरण की समस्या एक उभरती हुई समस्या है जिस पर पुरे विश्व को ध्यान देना है. कई विकसित देश भी कुछ सालों में अपने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों का लक्ष्य हासिल करने के लिए रणनीति बना रहे है ताकि पर्यावरण को बचाने की दिशा में कुछ काम किया जा सके.
इलेक्ट्रिक वाहनों के आने से वातावारण पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और लोग स्वच्छ हवा में सांस ले सकते है.
चलिए अब जानते है कि इलेक्ट्रिक वाहन क्या है इसके क्या फायदे और नुक्सान है और भारत में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
ई-मोबिलिटी (इलेक्ट्रो मोबिलिटी) जीवाश्म ईंधन और कार्बन गैस उत्सर्जन को विद्युत-संचालित तकनीक से परिवर्तित करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाने वाला एक शब्द है
वे सभी वाहन जो एक इलेक्ट्रिक मोटर से चलते है और एक पॉवर ग्रिड द्वारा चार्जिंग स्टेशनों पर चार्ज होकर अपनी ऊर्जा लेते है. वे सभी वाहन ई-मोबिलिटी की श्रेणी में आते है.
इलेक्ट्रोनिक और हाइब्रिड वाहनों मे एक इलेक्ट्रिक इंजन होता है इन वाहनों को पॉवर ग्रिड (प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों – पीएचईवी) के माध्यम से रिचार्ज किया जाता है.
इलेक्ट्रिक वाहन और हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन के इस्तेमाल से पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने वाले पारंपरिक उर्जा संसाधनों पर निर्भरता कम हो सकती है.
इस तरह की तकनीक से पेट्रोल और डीजल के इस्तेमाल कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है.
दुनियाभर के देशों में इलेक्ट्रिक कारें मौजूद हैं, और दिन पर दिन उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
ई-मोबिलिटी का मुख्य लक्ष्य पर्यावरण के अनुकूल अधिक वाहनों का उत्पादन करना है.
भारतीय सरकार का लक्ष्य है कि लोगों के लिए किफायती और पर्यावरण अनुकूल सार्वजानिक परिवहन का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाए.
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों पर जोर दे रही है जिसके लिए सरकार इस तकनीक के विनिर्माण और पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने की योजना बना रही है.
सरकारी एजीन्सियों, उद्योगों और सार्वजानिक क्षेत्र के उद्यमों की सक्रीय भागीदारी द्वारा इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.
प्रदुषण कार्बन उत्सर्जन, पेट्रोल और डीजल की ज्यादा खपत जैसे विभिन्न पर्यावरणीय खतरों से ग्रह को बचाने के बारे में बढ़ती जागरूकता ने सबसे बड़े उद्योगों को भी नोटिस लेने और एक स्टैंड लेने के लिए प्रेरित किया है ताकि वे मामलों को बदतर बनाने के बजाय पहल में योगदान कर सकें.
ऑटोमोटिव उद्योग निश्चित रूप से हाल के दशकों में पर्यावरणीय क्षरण के लिए प्राथमिक योगदान कर्ताओं में से एक है, विशेष रूप से वायु प्रदूषण में बहुत अधिक फ्लैक हो रहा है. हम ऑटोमोबाइल निर्माताओं से इस मुद्दे को हल करने की कोशिशों को देख रहे हैं, और उनकी एक चाल पर्यावरण के अनुकूल वाहनों का उत्पादन करना है। इलेक्ट्रिक कारों को सबसे अच्छे समाधानों में से एक माना जाता है, और इसने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी या ई-मोबिलिटी- प्रौद्योगिकियों की शुरूआत को बढ़ावा दिया.
भारत को इलेक्ट्रोनिक वाहनों का एक बड़ा बाज़ार बनाने के लिए बहुत बड़े स्तर पर चार्जिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना बड़ी चुनौती है.
चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के बुनियादी ढांचे पर काम करना, और चार्जिंग स्टेशन के रखरखाव, मूल्य वर्धित सेवाएं, बिलिंग, बिजली उत्पादन, बिजली वितरण और भंडारण को भी दुरुस्त करना ज़रूरी है.
सबसे बड़ी बात इस काम के लिए सरकार ने जो समय सीमा निर्धारित की है वह बहुत ही कम है और इसी समय में यह लक्ष्य पूरा करना है.
भारत में कुछ जगह अब चार्जिंग स्टेशन खुलने लगे हैं लेकिन अभी इनकी संख्या बहुत ही कम है.
हाल ही में बी.इस.इ.एस के द्वारा डिस्कॉम सब ग्रिड के नाम से दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन में पहला चार्जिंग स्टेशन खोला गया है. बी.इस.इ.एस का लक्ष्य 2019-20 में ऐसे 150 और चार्जिंग स्टेशन खोलने का है.
इन सभी चार्जिंग स्टेशनों को पेट्रोल पम्प की तरह एक निश्चित दूरी पर लगाना पड़ेगा.
इलेक्ट्रिक वाहनों का चार्जिंग में लगने वाला समय पेट्रोल की कारों से कहीं ज्यादा होता है इसलिए अच्छी तकनीक वाले फ़ास्ट चार्गिंग स्टेशनों की बहुत ज्यादा जरूरत होगी.
इलेक्ट्रिक कारों की डिमांड को बढ़ावा देना एक बहुत ही मुश्किल काम है क्योंकि कोई भी नई तकनीक अपने साथ कई तरह की समस्या लेकर आती है और लोग जल्दी से नई तकनीक को अपनाने की कोशिश नही करते.
भारत में कई योजनाएं सरकार द्वारा लागू तो हो जाती है पर ऐसा कई बार देखा गया है कि सरकार और राज्य सरकार के बीच में सही से तालमेल ना बैठ पाने के कारण बहुत सी योजनाएं अपने तय समय से पूरी ही नही हो पाती, इस समस्या को देखते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों के बीच में तालमेल होना बहुत ज़रूरी है.
चार्जिंग स्टेशन के लिए बिजली के ग्रीन स्रोत की है जरुरत
भारत में बिजली अभी भी पारंपरिक स्रोतों से बनती है.
भारत में अभी 65% से ज्यादा बिजली थर्मल पॉवर से बन रही है और 58% बिजली कोयले से बन रही है जो कि पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल नही है.
इसलिए बिजली उत्पादन के लिए हमे ऐसे स्रोतों की जरुरत है जो कि पर्यावरण के अनुकूल भी हो और उनसे ईको फ्रेंडली बिजली भी मिल सके.
भू-तापीय उर्जा, विंड पॉवर,हाइड्रो इलेक्ट्रिक पॉवर, बायोमास उर्जा, ज्वार उर्जा, तरंग उर्जा ईको फ्रेंडली बिजली के कुछ स्रोत है जिनसे बिजली बनाई जा सकती है.
इलेक्ट्रिक वाहन है बहुत महंगे
इलेक्ट्रिक वाहन अन्य पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों के तरह सस्ते नहीं आते हैं।
ज्यादा कीमत होने के कारण लोग आसानी से इन नए विकल्पों के तरह ही नही देखते है.
कीमतों में हुई वृद्धि का कारण अक्सर उच्च अनुसंधान और विकास लागत को ठहराया जाता है. मोटर वाहन निर्माता अपनी ई-मोबिलिटी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और उन्हें ई-वाहनों के उत्पादन में लागू करने के लिए अच्छा ख़ासा निवेश करता है.
बैटरी परफोर्मेंस में बदलाव
बैटरी डिजाइन में बदलाव के कारण विभिन्न इलेक्ट्रिक वाहनों को अलग-अलग बदलाव के साथ डिजाइन किया गया है. कुछ इलेक्ट्रिक बैटरी दूसरी बैटरियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती हैं, और इस तरह से बैटरी से सम्बंधित भी कई समस्याएँ इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के साथ आती है.
उच्च निवेश लागत लगाना
ई-मोबिलिटी में उच्च निवेश और बड़े पैमाने पर सहयोग की आवश्यकता होती है।
एक एकल कार निर्माण कंपनी अकेले इस क्षेत्र में आगे नही बढ़ सकती क्योंकि उन्हें बुनियादी ढांचे पर निवेश करना होता है, इसी के साथ निवेश के लिए अन्य संस्थाओं और यहां तक कि सरकार के साथ मिलकर काम करना जरुरी हो जाता है.
ग्राहक के लिए दिशा-निर्देश
अचानक से जब कोई नयी तकनीक आती है तो इलेक्ट्रिक वाहनों की अवधारणा के बारे में ग्राहक या बाजार को पूरी तरह से निर्देश देने में बहुत समय और प्रयास लगता है। कुछ ऑटो निर्माताओं के दृष्टिकोण से, ग्राहकों के लिए ई-मोबिलिटी की अवधारणा को पेश करने और उन्हें इसके बारे में शिक्षित करने के लिए संसाधनों को खर्च करना होगा, यह अपेक्षित लाभ की तुलना में बहुत अधिक है.
ई-मोबिलिटी के फायदे
ई-मोबिलिटी के इस दौर में अगर इलेक्ट्रिक वाहन सडको पर आ जाते है तो कई तरह के फायदे पर्यावरण के साथ साथ इन्सान को भी होंगे चलिए देखते है कौन से लाभ होंगे
सबसे पहले तो पर्यावरण को कम नुक्सान पहुंचेगा.
देश का 40% निजी वाहन इलेक्ट्रिक में बदल जाएगा.
पारंपरिक उर्जा स्रोतों की खपत कम होगी जिससे इन प्राकर्तिक स्रोतों पर निर्भरता कम हो पाएगी. एलेक्र्टिक वाहन पेट्रोल और डीजल से किफायती रहेंगे. गाड़ियाँ शोर कम करेगी और सस्ती उर्जा पर चलेगी.
इलेक्ट्रिक कारें एक बार चार्ज करने पर लम्बी दूरी तक का सफ़र तय कर सकती है.
नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होने पर ऑटोमोबाइल मार्केट में नया बदलाव होगा.
ई-मोबिलिटी परिवहन क्षेत्र द्वारा आवश्यक और उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की खपत की मात्रा को कम करने में मदद करेगी.
ई-मोबिलिटी से रोजगार के अवसर पैदा होंगे ऑटोमोटिव उद्योग इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास में अधिक आश्वस्त होगा, और उन्हें ऐसा करने के लिए प्रतिभा और जनशक्ति की आवश्यकता होगी.
वैश्वीकरण के मानक और ई-मोबिलिटी तकनीक, व्यापार में आने वाली बाधाओं को कम कर देगी, जिससे निर्माताओं और राष्ट्रों के बीच सामंजस्यपूर्ण काम करने के लिए अनुमति मिलेगी.
वाहन की क्षमता में वृद्धि और परिचालन लागत में कमी: नियमित वाहनों में तेल या ईंधन की खपत काफी अधिक है, और यह इंधन सस्ते नहीं आते हैं, तेल बाजार में तेल की कीमतों में भारी वृद्धि देखी जाती है, जो दुनिया भर के लगभग सभी तेल खपत वाले देशों में एक बड़ी समस्या है.
कार्बन उत्सर्जन का अनुपालन:
पूरी दुनिया में राष्ट्रीय सरकारें मानती हैं कि कालिख और ऑक्साइड के रूप में कार्बन का उत्सर्जन वैश्विक प्रदूषण समस्या का एक बड़ा हिस्सा है। लगभग हर देश अपने कार्बन उत्सर्जन के नियमों को निर्धारित करने के लिए नियम तो बनाता है पर वह इस पर ठीक से कार्य नही कर पाते.
अगर इसी तरह विनाशकारी कार्बन उत्सर्जन को खत्म नहीं किया जाता और इसे कम करने के लिए कानूनों का पालन नही किया जाता तो यह बहुत ही खतरनाक है.
पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करती है.
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, ई-मोबिलिटी डीकार्बोनाइजेशन के लिए वैश्विक रूप से उठ कड़ी हुई चुनौती का कारगार उत्तर है.
ऊर्जा आवश्यकताओं में कमी
हालिया ई-मोबिलिटी प्रौद्योगिकियों के डिजाइन को स्मार्ट पावर ग्रिड के निर्माण से जोड़ा गया है यह इ- वाहनों के लिए ऊर्जा का स्रोत है और यह पॉवर ग्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों को शक्ति ददेता है. इलेक्ट्रिक वाहन अधिक कुशल है, इसका मतलब है कि स्मार्ट पावर ग्रिड भी इसी कि तरह अधिक कुशल होगा. पॉवर ग्रिड द्वारा रिचार्ज करने के लिए इसे चलाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन को बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होगी, और इसलिए ग्रिड को उस ऊर्जा को प्रदान करने के लिए "बहुत मेहनत" नहीं करनी होगी.
ई-मोबिलिटी की सफलता है इस पर निर्भर
कोई तर्क नहीं है कि वैश्विक स्तर पर पूर्ण ई-गतिशीलता के लिए सड़क अभी भी बहुत लंबी है। लेकिन यह पूरी तरह से असंभव नहीं है। अभियान के सफल होने के लिए, सहयोग और गठबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. आखिरकार, ई-गतिशीलता एक स्टैंड-अलोन मूल्य प्रस्ताव के रूप में सफल नहीं हो सकती है. ई-मोबिलिटी इकोसिस्टम के सभी चार खंड, जो पहले चर्चा में थे, एक दूसरे के साथ बातचीत और बारीकी से शामिल होना चाहिए।
बुनियादी ढांचे को साझा करने के उद्देश्यों के लिए एक ही उद्योग में व्यवसायों के साथ गठबंधन
इन दिनों, आप बुनियादी ढांचा प्रदाताओं और बिजली उत्पादकों के बीच विकसित गठबंधनों को देखेंगे, मुख्य रूप से इस वास्तविकता के कारण कि ई-मोबिलिटी व्यवसाय को विकसित करने और इसे सफल बनाने के लिए भारी मात्रा में निवेश होता है. निकट भविष्य में, हम बस ई-वाहन निर्माताओं को भी इन दोनों के साथ साझेदारी स्थापित करते हुए देख सकते हैं, और इससे निश्चित रूप से ई-गतिशीलता के मोर्चे पर बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे.
अन्य गतिशीलता प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकरण
कार निर्माता हमेशा वाहन निर्माण के मामले में उस महान छलांग की ओर काम कर रहे हैं, और इलेक्ट्रिक वाहन भी अपने शोध और विकास के प्रयासों में सबसे आगे हैं. प्लेटफार्मों और मॉड्यूल का निर्माण उनके लिए एक सतत प्रक्रिया है, और प्रयास ज्यादातर उन प्लेटफार्मों के निर्माण पर केंद्रित होते हैं जो इलेक्ट्रिक वाहनों और पारंपरिक ड्राइव सिस्टम के एकीकरण के साथ-साथ ईंधन कोशिकाओं और अन्य रेंज एक्सटेंडर का समर्थन करते हैं.
विभिन्न गतिशीलता-संबंधित व्यवसायों और संगठनों के साथ भागीदारी
निर्माता निश्चित रूप से अपनी पहुंच बढ़ा रहे हैं, वाहन सेवा प्रदाताओं के साथ जुड़ रहे हैं और भागीदारी कर रहे हैं, जरूरी नहीं कि यह केवल वाहन और वाहन के निर्माता हों.
विदेशों में ई-मोबिलिटी की स्थिति
विश्व के कई विकसित देश पर्यावारण की वैश्विक समस्यां के मध्यनजर परिवहन क्षेत्र को ई-मोबिलिटी में परिवर्तित करना चाहते है जिसमे सभी देशों ने अपने लिए कुछ सालों के लक्ष्य रखें हैं.
नीदरलैंड – 2025 तक ई-मोबिलिटी का लक्ष्य पाना चाहता है.
नार्वे – 2040 तक इस लक्ष्य को पूरा करेगा.
फ्रांस – भी 2025 तक इस दिशां में अपना काम करेगा
2016 तक चीन में 2 लाख 15 हज़ार चार्जिंग पॉइंट लगाएगा
जापान में 40 हज़ार चार्जिंग पॉइंट स्टेशन अपने परिवहन क्षेत्र के लिए लगाना चाहता है.
अमेरिका में फिलहाल 9 हज़ार चार्जिंग पॉइंट मौजूद है.
ई-मोबिलिटी प्रोत्साहन के लिए सरकार का मिलेगा साथ
भारत सरकार द्वारा ई-मोबिलिटी के प्रोत्साहन के लिए कस्टम ड्यूटी में छूट का प्रावधान किया गया है.
इसी के अलावा सरकार इन वाहनों की खरीद और इन से जुड़े बिज़नस में भी जीएसटी में छूट देने का प्रोत्साहन करेगी.
इलेक्ट्रिक व्हीकल से जुड़े स्टार्टअप्स को विभिन्न माध्यमो के जरिये प्रोत्साहन दिया जाएगा.
2030 तक पूरी तरह से पेट्रोल के वाहन ख़त्म हो जाएंगे
कमर्शियल वाहन पर जोर देने के लिए इलेक्ट्रिक बसों और टेक्सियों की व्यवस्था की जाएगी
ये इलेक्ट्रिक कारे हैं मार्किट में मौजूद.
हुंडई की – कोना कीमत 25-30 लाख
महिंद्रा- केयुवी -100 कीमत 10-12 लाख
महिंद्रा- आल न्यू वैरीटो कीमत 10-15 लाख
महिंद्रा- टिवोली-ई कीमत 20-25 लाख
निसान- लीफ कीमत – 40-50 लाख
टाटा- नैनो नियो कीमत 6-9 लाख
टाटा- टीगोर कीमत 8-10 लाख
टाटा- टियागो-ई कीमत 11-12 लाख
बी एम डब्ल्यू – आई-5 कीमत 1 करोड़
बी एम डब्ल्यू – आई एक्स 3 कीमत 1.5- 2 करोड़
मर्सडीज- ईक्यूसी कीमत – 1-2 करोड़
जगुआर – आई पेस कीमत – 1- 1.25 करोड़
ऑडी – ई टरोंन कीमत 1- 1.25 करोड़
टेस्ला- मॉडल – 3 कीमत 30-40 लाख
टेस्ला – मॉडल एक्स कीमत 1- 1.25 करोड़
मारुती सुजुकी – वैगन आर ईवी कीमत 8- 10 लाख
विशेषज्ञों के विश्लेषण के अनुसार, ई-गतिशीलता आने वाले वर्षों में बड़े पैमाने पर उछाल से गुजरने की उम्मीद है, जो 2020 में वैश्विक स्तर पर यूएस $ 390 बिलियन बाजार में बढ़ रहा है.
हार्मोनाइजेशन के प्रयास, जो आर्गोन और जेआरसी के बीच सहयोग द्वारा प्रदर्शित किए गए थे, आने वाले वर्षों में अधिक से अधिक देशों और अर्थव्यवस्थाओं को कार्रवाई में लाने के लिए अधिक जमीन हासिल करना सुनिश्चित करते हैं. वास्तव में, चीन की अंतर-पहल पहल में चीन को शामिल करने की वर्तमान चर्चाएँ हैं। यदि चर्चा सकारात्मक रूप से आगे बढ़ती है, तो मानकों का सामंजस्य केवल अमेरिका और यूरोप में ही नहीं बल्कि चीन में भी होगा.
वास्तव में, पूर्ण ई-मोबिलिटी का मार्ग अभी भी काफी लंबा है, और इसमें शामिल सभी पक्षों से बहुत धैर्य की आवश्यकता है. हालांकि, सभी पक्षों द्वारा पूर्ण समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ, इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम सभी भविष्य में ई-गतिशीलता के लाभों का आनंद लेंगे.
आज हम अपने पर्यावरण को प्रदुषण से बचाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाना चाहते है. दिल्ली में तो वाहनों से होने वाले प्रदुषण के कारण कई बार ऑड इवन सिस्टम को भी लागू किया है जिससे कि कुछ तय किये समय के लिए वाहनों के संख्या कम होने से प्रदुषण में कुछ कमी आ सके.
भारत के बड़े शहरों में यातायात से होने वाला प्रदुषण बहुत ही ज्यादा है और इन बड़े शहरों में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु जैसे शहरों के नाम आते है.
वाहनों के प्रदुषण से सर दर्द, जी मिचलाना, आँखों में चुभन, विभिन्न ब्रोन्कियल और दृश्यता समस्याएं, ह्रदय और सांस से जुडी बीमारियाँ
ऑटोमोबाइल से निकलने वाले मुख्य प्रदूषक हाइड्रोकार्बन, सीसा, बेंजीन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर हैं. वाहनों की बढती संख्या के कारन प्रदूषण कि समस्या और ज्यादा बढ़ गई है. इसके अलावा वाहनों में प्रदुषण के अन्य और भी कारण है जैसे 2 स्ट्रोक इंजन, खराब गुणवत्ता वाला ईंधन, पुराने वाहन, अपर्याप्त रखरखाव, भीड़भाड़ यातायात, खराब सड़क की स्थिति और पुरानी मोटर वाहन प्रौद्योगिकियां और यातायात प्रबंधन प्रणाली.
पुरे भारत में वाहनों की संख्या लगभग 40 करोड़ के आसपास है जिसमे अकेले दिल्ली में लगभग इकनोमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 1 करोड़ वाहन है जिसमे 60 से 70 लाख दुपहिया वाहन ही शामिल है.