कुदरत के आगे मानव और विज्ञान बौने हैं
एक
वायरस ने दो-तीन महीने के अंदर संपूर्ण मानव जाति को विनाश की दहलीज पर लाकर खड़ा
कर दिया है। मानव की संपूर्ण साइंस, टेक्नोलॉजी, औद्योगिक क्रांति, सदियों का ज्ञान, उसकी पूरी आर्थिक, राजनीतिक और हर तरह की व्यवस्था ने इस कोरोना
वायरस के आगे घुटने टेक दिए हैं।
याद
है रिलायंस ग्रुप का सुप्रसिद्ध विज्ञापन- “कर लो दुनिया मट्ठी में।” जब कंपनी ने मोबाइल फोन लॉन्च किया
तो उस समय बिक्री के लिए इस मार्टकेग स्लोगन का इस्तेमाल किया। देखते-देखते यह
स्लोगन और फोन- दोनों देश भर में छा गए। बात भी कुछ ऐसी ही थी। आज के ‘स्मार्ट फोन’ ने दुनिया मानव की मुट्ठी में बंद कर
दी है।
आज
एक वाट्सएप संदेश से दुनिया के किसी भी कोने में अपनी बात पहुंचा दीजिए। उसी फोन
से बगैर एक पैसा खर्च किए कहीं भी फोन से बात कीजिए। इसी प्रकार अपने फोन से
सेल्फी लीजिए तुरंत फेसबुक अथवा इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दीजिए। हद तो यह है कि
वीडियो के माध्यम से आप कोई भी समाचार जहां चाहें वहां भेज दें। और तो और, यदि आपको टीवी पत्रकार बनना है, तो यूटयूब पर आप अपना मुफ्त चैनल चला
सकते हैं।
अलगरज, स्मार्ट फोन टेक्नोलॉजी ने दुनिया को
मानव की मुट्ठी में समेट दिया और देखते-देखते तमाम सीमाएं टूट गईं। संसार एक बाजार
बन गया। अमेरिका का माल यूरोप में, यूरोप की कंपनी दिल्ली में और चीन का माल न्यूयॉर्क में गली-गली ऐसे
बिकने लगा जैसे कभी करोलबाग का माल हमारे देश में गली-गली बिकता था। यह विज्ञान का
चमत्कार था जिसने टेक्नोलॉजी को उस चरम सीमा पर पहुंचा दिया जिसने मनुष्य को यह
एहसास करवा दिया कि उसने कदापि कुदरत अर्थात् प्रकृति को अपने अधीन बना लिया हो।
और
बात कुछ ऐसी लगती भी थी। कभी जंगलों में नग्न अवस्था में घुमने वाला प्राणी साइंस
और टेक्नोलॉजी के कंधों पर सवार इतना सबल हो गया कि उसने जंगल के जंगल ही काट
डाले। फिर पानी से बिजली बनाकर मानव ने एक ऐसी क्रांति कर डाली कि जिसने पूरी मानव
जाति को उस छोर पर पहुंचा दिया, जहां से एक औद्योगिक क्रांति उत्पन्न हुई। इस क्रांति ने संसार को एक
नई सभ्यता दी, जिसने एक नई
राजनीति, नई
अर्थव्यवस्था और नवीन शिक्षा प्रणाली दी।
देखते-देखते
कुदरत जो पहले मानव पर हावी थी अब मानव उसी कुदरत के सिद्धांत तोड़कर उसको अपने
अधीन करने लगा। उदाहरण के तौर पर मध्य 19वीं शताब्दी तक मानव केवल किस्से कहानियों में
अलाद्दीन के चिराग के माध्यम से ही हवा मे उड़ने की कल्पना कर सकता था। पर उसी मानव
ने न्यूटन के सिद्धांत को तोड़कर हवाई जहाज बनाकर हवा में परवाज शरू कर दिया और वह
समय भी आया जब वह चांद पर पहुंच गया और अब मंगल पर जाने की तैयारी में है।
अपनी
सुरक्षा के लिए उसने एटम बम से लेकर न्यूक्लियर हथियार और न जाने कैसे-कैसे सशक्त
हथियार बना लिए। यह सब साइंस और टेक्नोलॉजी का कमाल था, जिसने दुनिया तो क्या मानो कुदरत को
ही मानव की मुट्ठी में बंद कर दिया। इक्कीसवीं शताब्दी आते-आते मानव इतना सशक्त हो
चुका था कि अब उसने मौत टालने का सपना देखना शुरू कर दिया। अभी भी वह मौत के आगे
लाचार तो है, परंतु मेडिसिन
और सर्जरी में छलांगें लगाकर अपना जीवन काल तो उसने बढ़ा ही लिया है।
ऐसे
में अगर उसको यह प्रतीत होने लगे कि अब तो कुदरत उसकी मुट्ठी में है तो शायद यह
भ्रम नहीं कहा जाएगा। परंतु बस यही मानव की चूक है। आप कुछ कर लीजिए आप कुदरत को
अपने अधीन नहीं कर सकते। एक मामूली से वायरस, जिसको अब कोरोना कहा जा रहा है, ने दो-तीन महीनों के अंदर संपूर्ण
मानव जाति को विनाश की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस समय सारे संसार में
कोरोना वायरस का जो आतंक छाया हुआ है, उसकी कल्पना भी यह प्रगतिशील मानव नहीं कर सकता
था। इस एक वायरस ने
संपूर्ण मानव जाति को यकायक पुनः कुदरत के आगे बौना बना दिया। उसकी संपूर्ण साइंस, टेक्नोलॉजी, औद्योगिक क्रांति, सदियों का ज्ञान, उसकी संपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक और हर प्रकार की व्यवस्था
ने इस घातक वायरस के आगे घुटने टेक दिए हैं। वह मानव जो कल तक कुदरत को अपनी
मुट्ठी में कैद हुआ प्रतीत कर रहा था, आज वही मानव कुदरत से उत्पन्न एक घातक वायरस के
आगे असहाय और लाचार है। उसके बड़े-बड़े अस्पताल, उसकी तमाम साइंस और टेक्नोलॉजी, संपूर्ण प्रगति व उन्नति सब इस समय
बेमानी हो चुकी हैं।
जरा
गौर कीजिए, इटली के
लोमब्रोडी इलाके में दो-तीन दिन के भीतर कोरोना वायरस के इतने मरीज आ गए कि वहां
के बड़े-बड़े अस्पतालों ने यह फैसला किया कि वह 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले मरीजों को अस्पताल में
भर्ती नहीं करेंगे। दूसरे शब्दों में, अगर बूढ़े मरते हैं तो उनको मरने दो। ऐसी ही कुछ
खबरें चीन से आईं। इटली यूरोप का एक प्रगतिशील देश है और चीन संसार की दूसरी सबसे
बड़ी अर्थव्यवस्था। परंतु एक मामूली वायरस के आगे इटली और चीन दुनिया के लिए आज बंद
है।
और
अब लगभग पूरा यूरोप और उत्तरी अमेरिका भी ‘लॉकडाउन’ हो चुका है। दुनिया का सबसे शक्तिशाली और
उन्नतिशील देश अमेरिका में इस समय रोजमर्रा के खाने-पीने के सामान की कमी होती जा
रही है। अमेरिका जो सारे संसार को मिनटों में अपने सशक्त हथियारों से समाप्त कर
सकता है, वह कोरोना
वायरस के आगे इतना लाचार है कि उसको इस छोटे से वायरस से बचने का कोई उपाय नहीं
सूझ रहा है।
अरे!
एक अमेरिका क्या, सारे संसार और
संपूर्ण मानव जाति की समझ से बाहर है कि वह इस वायरस से बचे तो बचे कैसे। क्योंकि
यह केवल एक बीमारी नहीं है। इस महाकाल ने तो मानव जाति की सदियों की मशक्कत से
बनाई हर व्यवस्था को तीन माह के अंदर छिन्न-भिन्न कर दिया है। आज अमेरिका, यूरोप और चीन ही क्या सारी दुनिया की
दौलत इस महाकाल के आगे बेकार है। केवल इतना ही नहीं, यह बीमारी सारे संसार में लगभग हर धंधे और
व्यवसाय को इस कदर चौपट कर सकती है कि जिसकी आप अभी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
यदि
संसार में केवल नागरिक उड्डयन, होटल और ट्रेवल इंडस्ट्री ही बैठ गई तो सारी दुनिया में कितने सौ करोड़
लोग बेरोजगार हो जाएंगे, यह अभी नहीं
बताया जा सकता है। फिर अर्थव्यवस्था बैठी तो बैंक डूबेंगे, तो केवल हमारे और आपके पैसे ही नहीं
डूबेंगे बल्कि अमेजॉन, फेसबुक, एप्पल जैसी बैंक के कर्जों पर चलने
वाली न जाने कितनी विश्वव्यापी कंपनियां डूब जाएंगी और दुनिया के बड़े-बड़े बैंक
दिवालिया हो जाएंगे। यह तो महान देशों और बड़ी अर्थव्यवस्था की दुर्दशा होगी। अब जरा सोचिए, इन परिस्थितियों में सारी दुनिया के
गरीबों का क्या हाल होगा? वह खोंमचेवाला, पटरीवाला जो हमारे और आप के बाहर
निकलने पर ही अपना सामान बेचकर अपनी जीविका चलाता है, उसका क्या होगा जब देश के देश
लॉकडाऊन हो जाएंगे। कल को चीन के शहरों के समान दिल्ली की सड़कों पर उल्लू बोलने
लगे तो यहां के खोंमचवाले, रेड़ीवाले, आटो एवं रिक्शा ड्राइवर, रोज की दिहाड़ी करने वाला मजदूर, हमारे और आपके घरों में खाना पकाने
वाली महिला ये सब और इनके जैसे करोड़ों लोग जो रोज कुआं खोदकर अपना पेट पालते हैं, वे कहां जाएंगे और उनका क्या होगा? अरे उनको तो भीख देने वाला भी कोई
नहीं होगा क्योंकि जब सड़कों पर हू का आलम होगा तो कौन किसको भीख देगा। इसीलिए सारे
संसार में यह शोर मच रहा है कि गरीबों को तुरंत पैसा पहुंचाओ। यह है कुदरत से
उत्पन्न एक अदने वायरस की शक्ति जिसने ट्रंप, शी जिनपिंग, मैकरां, पुतिन और मोदी जैसे ताकतवर नेताओं को लाचार कर
दिया है। इन नेताओं की क्या हस्ती, इस समय तो संपूर्ण मानव जाति, उसकी संपूर्ण उन्नति और प्रगति ही असहाय है। वो
साइंस और टेक्नोलॉजी, जिसको मानव
अपना सबसे सबल हथियार समझता था, वह भी लाचार है। वह अपार दौलत और वह परमाणु हथियार जिनको मनुष्य अपनी
सुरक्षा का कवच समझते थे, वे सब इस समय
असहाय हैं। इस भीषण अंधकार
में अगर आशा की किरण है तो वह केवल यह कि वह मानव जिसने अपने को देशों, धर्मों, जाति, कबीलों, भाषाओं, औरत, मर्द, प्रगतिशील एवं पिछड़ों, विभिन्न भाषाओं और न जाने कितने
खानों में बांट लिया था, वह संपूर्ण
मानव जाति फिर से एकजुट होकर कोरोना वायरस महाकाल से लड़ने को इकट्ठा हो जाए, तो तब ही शायद वह इस भीषण प्रलय से
बच सकता है। परंतु इसके लिए उसको डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी जैसों की घृणा की
राजनीति त्यागकर महात्मा गांधी की मानवता और प्रेम की राजनीति और उस व्यवस्था को
गले लगाना होगा, जिसमें हर मानव
दूसरे की ‘पीर पराई जाने
रे’ सिद्धांत का पालन करे। कदापि कुदरत
भी यही चाहती है और वह कोरोना महाकाल से मानवता को यही चेता रही है।
ईश्वर
द्वारा प्रकृति की संरचना ही सर्वश्रेष्ठ संरचना हैं। हमें ईश्वर ने जो जिस रूप
में दिया वहीं हमारे लिए सर्वोत्तम है। हम भोग-विलास, दिखावे और लालसा में भले ही
प्राकृतिक चीजों से दूर चले गए पर आज मानव निर्मित चीजों के दुष्प्रभावों, दुष्परिणामों के कारण मनुष्य को
वापिस प्राकृतिक चीजों की तरफ लौटना पड़ा रहा है क्योंकि वहीं सर्वश्रेष्ठ है।*
जानिए
इस विषय में कुछ उदाहरण:
1.) पहले मनुष्य
मिट्टी के बर्तन प्रयोग करता था। फिर वहां से भिन्न भिन्न धातुओं और स्टील और
प्लास्टिक के बर्तनों तक पहुँच गया है। पर इनके प्रयोग से कैंसर होने का खतरा हो
गया है इसलिए मनुष्य दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ रहा है।
2.) पहले इंसान
अंगूठाछाप था क्योंकि उसे पढ़ना लिखना नहीं आता था। बाद में जब पढ़ना लिखना आया तो
दस्तखत (Signature) करने
का प्रचलन चला। आज विज्ञान जहां चरमसीमा पर पहुँच चुका है तो इंसान फिर से Thumb Scanning की तकनीकी के कारण अंगूठाछाप बन गया
है।
3.) पहले मनुष्य
फटे हुए सादे कपड़े पहनता था। फिर साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़े पहनने लगा। फिर फैशन
के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ने लगा। सूती वस्त्रों से टैरीलीन, टैरीकॉट पर पहुँचा इंसान फिर से वापस
सूती वस्त्रों पर आ रहा है।
4.) मनुष्य पहले
पढ़ता ही नहीं था। जब ज्ञान हुआ तो गुरुकुलों में नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान ही
लिया। अब विज्ञान चरमसीमा पर है। लोग MBBS, Engineering, MBA की पढ़ाई कर रहे हैं पर नैतिक और
आध्यात्मिक ज्ञान और शांति नहीं है। आत्महत्या जैसा घोर पाप बढ़ कर रहे हैं, अपराध बढ़ गया है। समय वो आ गया है कि
नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान भौतिक ज्ञान से जरूरी हो गया है।
5.) खेती में पहले
मनुष्य प्राकृतिक खाद प्रयोग करता था। बाद में यूरिया, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करने लगा।
इनके दुष्प्रभावों के कारण मनुष्य अब वापिस आर्गेनिक खेती की तरफ बढ़ रहा है।
6.) पहले मनुष्य
कुदरती फल, खाद्य पदार्थ
ही खाता था। उस क़ुदरती भोजन से मनुष्य प्रोसेसफ़ूड (Canned Food
& packed juices) की
तरफ बढ़ा। इससे तरह तरह की बीमारियां होने लगी। अब इन बीमारियों से बचने के लिए
मनुष्य दोबारा क़ुदरती भोजन की तरफ आ रहा है।
7.) पहले मनुष्य
सादी वस्तुएं प्रयोग करता था। फिर पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके
ब्रांडेड (Branded) चीजें
प्रयोग करने लगा। नई चीजों से जी भर गया तो पुरानी चीजें ही Antique
Piece कहकर रखने लगा।
8.) पहले मनुष्य
आयुर्वेदिक पद्दति से ईलाज करता था। फिर एलोपैथी का प्रचलन हुआ, एंटीबायोटिक का जमाना आया। एलोपैथी
और एंटीबायोटिक के दुष्प्रभावों के कारण मनुष्य वापिस आयुर्वेद की तरफ बढ़ रहा है।
9.) पहले बच्चे
मिट्टी खाते थे। जैसे जैसे सभ्यता का विकास हुआ, मनुष्य बच्चों को इंफेक्शन से डर से मिट्टी में
खेलने से रोकने लगा। बच्चों को घर में बंद करके फिसड्डी बना दिया। उसी मनुष्य ने
अब Immunity
बढ़ाने के नाम
पर बच्चों को फिर से मिट्टी में खिलाना शुरू कर दिया है।
10.) पहले मनुष्य
जंगल में रहा, गावों में रहा।
फिर विकास की दौड़ में शहर की तरफ भागा। वहां पर्यावरण को प्रदूषित किया और अब
वापिस साफ हवा और स्वास्थ्य लाभ के लिए जंगल, गांव और हिल-स्टेशनों की तरफ जा रहा है।
11.) जंगल, गांव और गौशालाओं में रहने वाला
मनुष्य चकाचौंध से प्रभावित होकर शहर भागा, डिस्को पब भागा। अब मनुष्य दोबारा मन की शांति
के लिए शहर से जँगल, गाँव व
गौशालाओं की ओर आ रहा है।
12) भारतीय (हिंदू)
संस्कृति महान थी उसने अनुसार जीवन जीने से व्यक्ति स्वस्थ्य, सुखी एवं सम्मानित जीवन जीता था
लेकिन टीवी, फिल्मे और
मीडिया के दुष्प्रभाव के कारण पाश्चात्य संस्कृति में चला गया लेकिन वहाँ दुःख, चिंता, बीमारियां बढ़ने लगी तो भारतीय संस्कृति की तरफ
लौटना शुरू कर दिया।
इससे
ये निष्कर्ष निकलता है कि तकनीकी ने हमें जो दिया, उससे बेहतर तो भगवान ने हमें पहले ही दे रखा था।
वास्तव में विज्ञान की बजाय ईश्वर की संरचना ही हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है। इससे
सिद्ध होता है कि हमारे लिए ईश्वर से बड़ा कोई हितैषी नहीं है।