आज भारतीय शिक्षा छात्रों के लिए आधुनिक दुनिया के रास्ते खोलती है.
समय के साथ भारतीय शिक्षा में परिवर्तन हुए हैं, भारतीय शिक्षा ने प्राचीन गुरुकुलों से लेकर अंग्रेजों के बाद तक का आधुनिक सफ़र तय किया है.
बेशक आज भारत में शिक्षा व्यवस्था को और अच्छा बनाने की बात की जा रही हो लेकिन जितना भी विकास भारतीय शिक्षा में हो चुका है, उसने भारत को विश्व के साथ खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है.
आज हम भारत की शिक्षा व्यावस्था के लम्बे सफ़र की बारे में बात करेंगे.
भारत कि पुरातन सांस्कृतिक विरासत है, इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारत ने प्राचीन वेदों, पुराणों और साहित्यों की शिक्षा को लगातार आगे बढ़ाया था.
अंग्रेजों से पूर्व भारत की शिक्षा व्यवस्था काफी हद तक मानवता और संस्कृति से जुड़ी हुई थी.
अंग्रेजो के शुरूआती आगमन के समय तक भारत में देसी पाठशालाओं और मदरसों में इस तरह की शिक्षा दी जा रही थी.
भारतीय देशी शिक्षा में छात्रों को गुरुओं द्वारा पढ़ाया जाता था. बच्चो को पाठशाला में 8 साल की उम्र के बाद ही प्रवेश दिया जाता था.
उस समय शिक्षा व्यवस्था को सु्चारु रूप से चलाने के लिए राज्य की कोई नीतियाँ तो नहीं होती थी लेकिन गुरुकुल में पढाने वाले शिक्षक छात्रों के चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास, सामाजिक कर्तव्यों और संस्कृति जैसे लक्ष्य रखते थे.
इन पाठशालाओं में छात्र सुबह जल्दी उठकर जरुरी काम निपटा कर कक्षा में बैठ जाते थे. छात्रों को विभिन धार्मिक ग्रंथों और साहित्यों के श्लोक याद करवाए जाते थे प्रश्नोत्तर होते थे, शंका समाधान और विषयों पर बहस की जाती थी.
पाठशालाओं में संस्कृत भाषा का व्याकरण, नीतिशास्त्र, धर्म, वैदिक साहित्य, ज्योतिषविज्ञान, ग्रन्थ, सैनिक शिक्षा, कला कौशल, कृषि, पशुपालन, राजनितिक शास्त्र आदि की शिक्षा दी जाती थी.
आजादी से पहले भारत में मुग़ल और बोद्ध धर्म का भी प्रसार हुआ. फ़ारसी, अरबी और उर्दू जैसे साहित्य भी भारत में आए जिसके कारण भारत में मदरसों की शुरुआत हुई. इन मदरसों में कुरआन की शिक्षा से लेकर क़ानून के विषयों की भी शिक्षा दी जाने लगी थी.
मुस्लिम शासकों ने भारत की प्राशासनिक भाषा के लिए फ़ारसी और उर्दू जैसी भाषा को चुना और अपने साहित्यों के लिए उन्होंने पुस्तकालयों का भी निर्माण करवाया था. बोद्ध साहित्य के संरक्षक विद्वानों ने भारत में कई बड़े महाविद्यालयों का निर्माण करवाया था. इन महाविद्यालयों में तक्षशिला, नालंदा जैसे नाम विश्व भर में मशहूर थे, जिनमे पढ़ने के लिए विदेशी छात्र भी भारत आते थे.
लेकिन एक समय भारत अपनी जिस शिक्षा पद्धति के कारण विश्वगुरु कहलाया जाता था पश्चिमी जगत में आधुनिकीकरण के आ जाने के बाद भारत की इस शिक्षा पद्धति में दोष उत्पन होने शुरू हो गये.
ब्रिटिश राज आ जाने पर भारतीय शिक्षा में नई चुनौतियां का आगमन हुआ था. अंग्रेजों का आगमन भारत में 1757 में हो गया था. अंग्रेजों ने भारत में अपने मॉडर्न इंग्लिश स्कूल खोले जिनमे पहले भारतीय छात्रों को नही पढ़ाया जाता था. लेकिन बाद में अंग्रेजी मिशनरी स्कूलों का मकसद भारत में ईसाई धर्म का प्रसार करना हो गया इसलिए यह मिशनरी स्कूल अब भारतीयों को भी पढाने लगे.
मिशनरी स्कूलों की एक व्यवस्थित शिक्षा व्यवस्था होने के कारण देसी पाठशालाओं का पतन भारत में होने लगा और लोग अपने बच्चों को इन अंग्रेजी स्कूलों में भेजने लगे जहां अंग्रेजी जैसे विषयों को भी छात्र अब सीखने लगे.
ब्रिटिश भारत में शिक्षा के लिए सबसे मुख्य भूमिका मैकाले ने निभाई जिन्होंने 1835 में अपना एक विवरण पत्र दिया जिसमे भारतीय लोगों की शिक्षा के लिए व्यवस्थित शिक्षा नियम बनाया गए. मैकाले से पहले जब मिशनरी स्कुल भारत में चल रहे थे उस समय 1813 में एक आज्ञा पत्र इंग्लेंड की सरकार ने जारी किया जिसमे ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में शिक्षा व्यवस्था का ढांचा खड़ा करने की जिम्मेदारी दी गई और एक लाख रूपये की प्रोत्साहन राशि साहित्यों और विद्वानों के लिए लागू की गई.
लेकिन अंततः इस व्यवस्था में भी विवाद हो गया समस्या यह आ गयी कि इस नियम में जो साहित्य और विद्वान सुझाए गए है वें भारतीय होंगे या पश्चिमी देशों के होंगे. इसी विवाद को सुलझाने का काम मैकाले ने किया था.
मैकाले ने अपने विवरण पत्र में निम्नलिखित कुछ सुझाव दिए थे.
भारतीय साहित्य पर सरकारी धन बर्बाद ना करना,
भारतीयों को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान करवाना,
इंग्लिश भाषा को कानूनी भाषा बनाना,
अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना
इस तरह भारत में शिक्षा का प्रसार अंग्रेजी हुकूमत के हितों को पूरा करने के लिए किया गया, अंग्रेज भारत में मिशनरी स्कूलों द्वारा अपने धर्म का प्रचार करने में लगे रहे. इस तरह भारतीय लोग भी अब पश्चिमी साहित्यों से परिचित हुए और नए-नए विचार भी भारतीयों ने पश्चिमी साहित्यों को पढ़कर सीखे जिसके बाद यह अंग्रेजी शिक्षा बाद में जाकर भारतीय राष्ट्रवाद की चिंगारी का कारण बनी.
आज वर्तमान में भारत की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था छात्रों में विश्व के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने वाली है. भारत में अब कई सरकारी और प्राइवेट स्कूल इंग्लिश माध्यम से छात्रों को पढ़ा रहे है.
स्कूलों में छात्रों को पढाने के लिए बैठने की व्यवस्था से लेकर कम्प्यूटर तक की व्यवस्था है.
आज स्कूलों में जाकर छात्र इस तरह के एजुकेशन सिस्टम में पढ़ रहे है जहां से पढ़ कर विश्व में कहीं भी जाकर विषयों को समझ सके साथ ही आधुनिकता के इस दौर में हमे ऐसी शिक्षा की जरुरत भी है
यह कहना उचित होगा की अंग्रेजों से पहले भारत की शिक्षा व्यवस्था भारतीय संस्कृति से काफी जुडी हुई थी जिसमे छात्रों उन्हें अध्यात्म एव धर्म ग्रंथो की शिक्षा दी जाती थी. उस शिक्षा प्राणाली में भौतिकवादी सत्यों पर कोई शोध नही किया जाता था. साथ ही जब पश्चिमी शिक्षा भारत में आई तब भारतीय देसी शिक्षा उसके सामने कमजोर नज़र आई जिसकी वजह से जल्दी ही भारत की एक प्राचीन शिक्षा पद्धति का पतन हो गया और जब पश्चिमी शिक्षा भारत के लिए दीर्घकालिक अच्छे परिणाम लेकर आई जिससे भारत ने बाहरी देशो की साथ सम्बन्ध बनाने शुरू किये.
Web Title: History of Indian Education System Before British
Featured Image: Ancient India & Nalanda.nic.in