उच्चतम न्यायालय ने रामायण में वर्णित ‘रामसेतु’ को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देने की मांग संबंधी एक याचिका पर लगभग 2 साल बाद फिर शीघ्र सुनवाई करने की अर्जी बुधवार को स्वीकार कर ली। शीर्ष अदालत ने सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की गुजारिश को स्वीकार करते हुए कहा कि वह इस मामले में 9 मार्च को सुनवाई करेगी।
मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता स्वामी की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद याचिका पर सुनवाई के लिए 9 मार्च के लिए सूचीबद्ध करने की का निर्देश दिया। स्वामी ने इस याचिका पर शीघ्र सुनवाई की गुहार आज ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान लगाई थी। इससे पहले उन्होंने 23 जनवरी 2020 में शीघ्र सुनवाई की निवेदन किया था जिस पर केंद्र जवाब तलब किया गया था। राज्यसभा सांसद स्वामी का दावा है कि केंद्र सरकार ने ‘रामसेतु’ का अस्तित्व पहले ही स्वीकार कर चुकी है। सरकार ने उनकी मांग पर 2017 में इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने पर विचार करने को लेकर सहमति व्यक्त की थी। लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया।
स्वामी का कहना है कि केंद्र सरकार ने अभी तक रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। मान्यता है कि तमिलनाडु के दक्षिण पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार द्वीप के बीच स्थित चूने के चट्टानों की श्रृंखला (एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है) प्राचीन काल में ‘रामसेतु’ के तौर पर जानी जाती थी। प्राचीन धार्मिक ग्रंथ रामायण में इसका वर्णन किया गया है। इस धार्मिक ग्रंथ के मुताबिक मां सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए भगवान श्री राम की वानर सेना ने इस सेतु का निर्माण किया था।
कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र की संप्रग-एक सरकार के कार्यकाल में ‘सेतु समुद्रम’ परियोजना के खिलाफ दायर याचिका के बाद ‘रामसेतु’ का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया। वर्ष 2007 में इस परियोजना पर रोक लगा दी गई थी। भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे को बार-बार उठाती रही है।