कोरोना काल में विदेशी विद्वानों ने प्रेमचंद को याद किया

28-05-2020 17:16:49
By :
Notice: Trying to get property 'fName' of non-object in /home/newobserverdawn/public_html/module/Application/view/application/index/news.phtml on line 23

Notice: Trying to get property 'lName' of non-object in /home/newobserverdawn/public_html/module/Application/view/application/index/news.phtml on line 23


कोरोना वैश्विक महामारी के समय विदेशी विद्वानों ने लॉकडाउन में वेबिनार के जरिये हिंदी के अमर लेखक मुंशी प्रेमचंद को याद किया और उनके साहित्य में दलित चेतना पर संवाद किया।


इजरायल ,इटली ,स्वीडन और जर्मनी के करीब 20 विद्वानों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के हिंदी प्राध्यापक एवं प्रसिद्ध दलित लेखक डॉ अजय नावरिया के साथ एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में प्रेमचंद के साहित्य पर विचार-विमर्श किया। इसका आयोजन इजरायल के हिब्रू विश्वविद्यालय के एशियाई अध्ययन विभाग की प्रोफेसर मरीना रेमशा ने किया था। इस विश्विद्यालय में डॉ अजय नावरिया की चर्चित कहानी ‘हेलो मिस्टर’ प्रेमचंद पढ़ाई जाती है। डॉ नावरिया ने प्रेमचंद की रचनाओं के पात्रों के आधार पर यह कहानी लिखी है । डॉ नावरिया की कई कहानियां अमेरिका, हंगरी, इटली और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं।


डॉ नावरिया ने यूनीवार्ता को बताया कि हिब्रू विश्वविद्यालय ने कल ‘हिंदी कहानी परम्परा और स्मिता विमर्श’ पर उनका व्याख्यान ज़ूम के सहारे आयोजित किया जिसमें उन्होंने प्रेमचंद के गोदान, रंगभूमि और गबन के अलावा उनकी चर्चित कहानियों पर चर्चा की जिसमें करीब 21 विद्वानों ने वेबिनार में हिस्सा लिया और 10 विद्वानों ने मुझसे प्रेमचंद के साहित्य में दलित चेतना के बारे में भी सवाल पूछे। उन्होंने बताया कि इन विदेशी विद्वानों ने मुझसे पूछा कि क्या प्रेमचंद की कहानियों में अस्मिता विमर्श है और उनकी प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है।


डॉ नावरिया ने कहा कि भारत का दलित साहित्य प्रेमचंद को नकार नहीं सकता क्योंकि प्रेमचंद ने समाज के उपेक्षित वर्ग की चिंता अपनी रचनाओं में की है और उन्होंने दलितों को भी अपना पात्र बनाया। उनकी सद्गति, ठाकुर का कुआं,घासवाली ,दूध का दाम ,सवा सेर गेहूं जैसी रचनाओं को कोई भूल नहीं सकता जिसमे दलित समाज की पीड़ा व्यक्त हुई है। उन्होंने बताया कि विदेशों में प्रेमचंद और दलित साहित्य को जानने की दिलचस्पी बढ़ी है।दलित साहित्य पर शोध और अनुवाद कार्य हो रहे हैं। करीब डेढ़ घण्टे तक ये विदेशी विद्वान उनकी बातें सुनते रहे और सवाल पूछते रहे।



Comments

Note : Your comments will be first reviewed by our moderators and then will be available to public.

Get it on Google Play