बिहार में पिछले 60 घन्टें से हो रही बारिश के चलते जनजीवन बेहाल हो चुका है. बिहार की राजधानी पटना पूरी तरह से बाढ़ के चपेट में हैं. यहां के लगभग 85 फीसदी घरों के ग्राउंड फ्लोर में पानी भर चुका है. बाढ़ का प्रकोप इतना भयावह है कि अब तक इस बाढ़ की वजह से 60 लोगो की जाने जा चुकी है.
बिहार में भारी बारिश की वजह से जो स्थिति पैदा हुई है उस पर और ज्यादा बात करने से पहले याद करते है ग्रेटा थनबर्ग के उस भाषण को जो उन्होने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में दिया था. जो लोग इस नाम से परिचित नही है उनके लिए ये बताना जरूरी हो जाता है कि ग्रेटा थनबर्ग स्वीडन की है मात्र 16 साल की है और अपने देश में पर्यावरण ऐक्टिविस्ट के तौर पर काम करती है. अब बात करते है उनके भाषण की. पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने अपने भाषण में दुनिया भर के नेताओं को जलवायू परिवर्तन से होने नकारात्मक प्रभावों को लेकर चेताया था. उन्होने अपने भाषण में दुनिया भर के नेताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि आपनेे हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले शब्दों से छीना. हालांकि, मैं अभी भी भाग्यशाली हूं. लेकिन लोग झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है. अब वक्त आ गया है कि हम पर्यावरण को लेकर सचेत हो जाये . अगर अब भी हमने ऐसा नही किया तो आने वाले समय में इन्सानों को इसके भयंका परिणाम झेलने पड़ेंगे.
अब वापस बिहार की बाढ़ पर आते है. बिहार में आज जो भी स्थिति है. अगर ऐसा कहा जाये कि वो हमारे सिस्टम की पर्यावरण को लेकर अन्देखी की वजह से पैदा हुई है तो क्या ये बात सही नही है. क्या इस बाढ़ का जिम्मेदार केवल प्रकृति को मानना जैसा हमारे नेता कह रहें हैं क्या उचित है. हमने अपने निजि हित के खातिर जंगलों, पहाड़ो और तालाबों को इतना कमजोर कर दिया कि अगर अगर एक दिन भी लगातार बारिश हो जाये तो हमारे देश के कई हिस्से पानी में डूब जाते है.
आज बिहार में जो भी हालात है उसके जिम्मेदार कही ना कही हमारा सिस्टम ही है. अगर हमने प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अपनी सड़को और घरों का निर्माण किया होता तो लगातार बारिश के बाद वहां जो स्थिति पैदा हुई है वैसी कभी नही होती. आसमानों से बारिश के जरिये जमीन पर गिरने वाले पानी को अगर अपना रास्ता नही मिलेगा तो वो इसी तरह बाढ़ की शक्ल में हमारे घरों में घुस जायेगा जैसा की बिहार में हुआ है. ऐसे में ग्रेटा थनबर्ग का वो भाषण काफी प्रांसगिक हो जाता है जो उन्होने स्वीटन में दिया था. सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि हर मुद्दे पर अपनी सरकार से सवाल करने वाले हम लोग कभी जलवायू और पर्यावरण के मुद्दे पर कोई सवाल नही करते है. देश के तमाम सरकारों ने विकास के नाम पर नेचर के साथ जो खिलवाड़ किया है उसी का नतीजा है कि आज बिहार में सड़को से लेकर अस्पतालों तक में पानी भर गया है. पर्यावरण को लेकर हम सभी को सोचना पड़ेगा नही तो वो दिन दूर नही जब ग्रेटा थनबर्ग की एक एक बात हमारे सामने ही हकीकत बन जायेगी. तब शायद हम ये खुद से सवाल करने पर मजबूर हो जायेगे कि हमने उस वक्त क्यों नही कुछ किया जब इस तबाही की शुरूआत हुई थी. तब शायद बहुत देर हो चुकी होगी और हमारे पास अफसोस करने के सिवा कुछ नही बचेगा