प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के साथ किसानों से अपील की थी कि वे अब आंदोलन खत्म कर वापस अपने घर लौट जाएं।
लेकिन, किसान नेता अभी अपनी जिद्द पर अड़े हैं। किसान नेताओं का कहना है कि उनकी मांग सिर्फ कृषि बिल की वापसी नहीं थी, बल्कि एमएसपी गारंटी कानून, पराली जलाने का कानून और किसानों पर दर्ज मुकदमों के साथ 700 किसानों की मृत्यु भी हमारा मुद्दा है।
किसानों ने इन्हीं मुद्दों को लेकर लखनऊ में किसान महापंचायत भी की। आंदोलन का असर यह हुआ कि केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने किसानों को आश्वासन देते हुए कहा है कि सरकार पराली पर भी किसानों की बात मानने के लिए तैयार है साथ ही आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज केस वापसी और मुआवजे की मांग को लेकर केंद्रीय मंत्री का कहना है कि यह राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र है और राज्य सरकारें ही इस पर फैसला लेंगी।
सरकार अब किसानों की समस्या जानने और समस्या का हल करने के लिए उत्सुक दिखायी पड़ रही है। ऐसे में सरकार की लगातार यह कोशिश है कि किसान शांति से अपने घर लौट जाएं। वहीं दूसरी तरफ किसान नेताओं की मांग लगातार बढ़ती जा रही हैं जो सरकार के पेशानी पर बल डाले हुए है।
किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार की बिल वापसी की घोषणा सुखद है किन्तु एमएसपी और 700 किसानों की मृत्यु पर भी सरकार हमारी मांगें पूरी करें। टिकैत का कहना है कि सरकार अगर 26 जनवरी से पहले हमारी मांग मान जाएगी तो हम अपना आंदोलन खत्म करके घर चले जाएंगे वरना आंदोलन जारी रहेगा। वहीं चुनाव को लेकर टिकैत ने कहा कि चुनाव के विषय में हम चुनाव आचार संहिता लगने के बाद बताएंगे।
राकेश टिकैत के इस बयान के कई मायने हैं। पहला यह है कि अब राकेश टिकैत कृषि कानून की आड़ में राजनीति करते नजर आ रहे हैं। शायद राकेश टिकैत इस आंदोलन को किसी भी तरह देश में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव तक खींचना चाहते हैं।
राकेश टिकैत यह भी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी की सरकार है। पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। लेकिन विधानसभा चुनाव तक अगर यह मामला खिंच जाए तो बीजेपी को चार राज्यों में अच्छा खासा नुकसान हो सकता है।
इस बात को बीजेपी भी अच्छी तरह से जानती है और यही वजह है कि बीजेपी भी लगातार किसानों से बात कर इस मसले को चुनाव से पहले ही निपटाने में जुटी है। कानून वापसी से लेकर अब तक जो घटनाक्रम हुआ है यदि उसकी गहराई से पड़ताल की जाए तो मामला गंभीर नजर आ रहा है। किसान नेताओं का रवैया इस बात का संकेत कर रहा है कि यह आंदोलन किसान के हितों की आड़ में मोदी सरकार के खिलाफ या मोदी को हटाने के लिए होता नजर आ रहा है। यदि ऐसा है तो यह ना तो देश के लिए और ना ही किसानों के लिए अच्छा है।
बहरहाल, अब क्योंकि किसान बिल सरकार ने वापस ले लिए हैं ऐसे में किसानों को भी सरकार द्वारा घर लौटने की बात स्वीकार कर लेनी चाहिए और दिल्ली के बॉर्डरों को खाली कर अपने-अपने घर लौट जाना चाहिए। अगर किसान ऐसा नहीं करते तो धीरे-धीरे अन्ना हजारे के आंदोलन की तरह इस आंदोलन को भी कोई हाईजैक करके इसका अनुचित लाभ उठा सकता है। अतः वक्त रहते यदि किसानों ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया तो यह आंदोलन किसान आंदोलन से मोदी सरकार हटाने की मुहिम बन कर रह जाएगा।