कोरोना महामारी से हुई मौतों
का आंकड़ा छुपा
रही दिल्ली सरकार!
दिल्ली में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सरकारी आंकड़े जहां 984 मौतों की बात करते हैं तो एमसीडी का कहना है कि दो हजार से ज्यादा मौतें हुईं हैं। बहरहाल, इन दिनों दिल्ली में श्मशान घाटों पर कोरोना से मरने वालों के शवों का ढेर लग रहा। श्मशान घाटों के हालात भयावह हैं। कोविड मरीजों के लिए रिजर्व साउथ एमसीडी के पंजाबी बाग श्मशान घाट रोजाना शवों से भर जाता है। जिससे शवों के अंतिम संस्कार के लिए परिवार वालों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। गुरुवार को पंजाबी बाग श्मशान घाट में दर्जनों शवों के एक साथ अंतिम संस्कार का वीडियो भी वायरल हुआ। दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौत के आंकड़ों पर ही सियासत शुरु हो गई है. दिल्ली सरकार के आंकड़ों को झुठलाते हुए एमसीडी चेयरमैन जय प्रकाश 2098 से ज़्यादा मौत होने का दावा कर रहे हैं. दावे की सच्चाई के लिए श्मशान घाट और कब्रिस्तान की आंकड़ों को पेश कर रहे हैं. वहीं मौत के बढ़ते हुए आंकड़े को देखकर दिल्ली में श्मशान घाट और कब्रिस्तान (cemetery) की संख्या बढ़ा दी गई है.
9 श्मशान घाट और 2 कब्रिस्तान की संख्या तो दो दिन पहले ही बढ़ाई गई है.
अब दिल्ली में कोविड 19 से होने वाली मौत के बाद शवों का दिल्ली के
13 श्मशान घाट और 5 कब्रिस्तान में दाह संस्कार हो सकेगा जानकारों की मानें तो पंजाबी बाग श्मशान घाट पर सबसे ज़्यादा शवों का दाह संस्कार हो रहा है.
एक हफ्ते पहले तक घाट का प्रबंधन दिनभर के इंतज़ार के बाद भी शाम को कुछ शवों को लौटा रहा था. इसके पीछे प्रबंधन का भी अपना तर्क था कि हम तय घंटों के हिसाब से भी ज़्यादा काम कर रहे हैं.
सीएनजी की भट्टी भी ठीक से काम नहीं कर रही हैं. शवों की संख्या ओवर हो रही थी.
इसी को देखते हुए अब प्रबंधन ने बुकिंग करते हुए समय देना शुरु कर दिया है.
जहाँ लॉकडाउन के बाद राजधानी के प्रदूषण में रिकॉर्ड सुधार हुआ था। सर्जरी और बीमारियों से होने वाली मौत में
28 फीसदी से अधिक की कमी आई थी । इसका ताजा प्रमाण यह था कि अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट में आने वाले शवों की संख्या में कमी
आ गई थी। निगमबोध घाट, लोदी रोड, पंजाबी बाग, गाजीपुर और गीता कॉलोनी सहित 8 बड़े श्मशान घाटों में दाह संस्कार के लिए आनेवाले शवों में 30 से
40 फीसदी की कमी आई थी। निगमबोध घाट के प्रधान सुमन कुमार गुप्ता ने बताया था कि हमारे यहां हर रोज औसतन 55 शव आते थे। अब उनकी संख्या 30-32 रह गई है। लोदी रोड श्मशान घाट के पं.
रामपाल मिश्र के अनुसार, पहले 10-12 शव आते थे। लेकिन अब
8-9 रह गए थे। पंजाबी बाग में
25 से घट कर 10-15 शव रोज आते थे। हालांकि इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि लॉकडाउन के कारण अब लोग अंतिम संस्कार घर के आसपास स्थित श्मशान घाट में कर रहे हैं। ऐसे मामले 10 से
15 फीसदी बताए जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में रोड एक्सिडेंट से हर रोज औसतन 5 मौत और बीमारी व सर्जरी से
90 से अधिक मौत शामिल थी। डॉक्टर के.के.
अग्रवाल के अनुसार पर्यावरण शुद्ध होने से जीआई डिसऑर्डर बहुत कम हो हो गया था। इस कारण हार्ट अटैक के मामले ज्यादा नहीं आ रहे हैं। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सफाई और हाथों को साबुन व सैनिटाइजर से हाथ धोने से डायरिया, टाइफाइड और निमोनिया आदि के मामले नहीं आ रहे हैं। इन बीमारियों के नहीं होने से मौत के मामले काफी आई थी। इसके अलावा सर्जिकल मामले न के बराबर रह गए थे।
भारत में महामारी का असर देश के विभिन्न हिस्सों में
अलग-अलग दिख रहे हैं तथा शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी हालात अलग-अलग हैं दिल्ली
में क्यों होने वाला है कोरोना का विस्फोट, लाखों
की संख्या में होंगे बीमार, रोकना
हो जाएगा मुश्किल देश में अभी कोरोना के 2 लाख
67 हजार केस सामने आए हैं, लेकिन
खतरे की बात यह है कि 31
जुलाई तक दिल्ली में इससे ज्यादा केस होने का डर है। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष
सिसोदिया ने कहा कि 15 जून
तक 44,000 मामले होंगे और 6,600 बेड
की जरूरत होगी। 30 जून
तक 1 लाख तक मामले पहुंच जाएंगे और 15,000 बेड
की जरूरत होगी। 15
जुलाई तक 2.25 लाख मामले होंगे और 33,000 बेड
की जरूरत होगी। 31
जुलाई तक, 5.5 लाख मामलों की उम्मीद है और 80,000
बेड की जरूरत होगी। दिल्ली आपदा प्रबंधन
प्राधिकरण (डीडीएमए) के साथ एक बैठक के बाद मनीष सिसोदिया ने कहा,
दिल्ली में जुलाई अंत तक 80,000
बिस्तरों की जरूरत पड़ेगी। बैठक की अध्यक्षता उप राज्यपाल अनिल बैजल कर रहे थे जो
कि दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष भी हैं। मनीष सिसोदिया ने कहा कि 31
जुलाई तक 5.5 लाख लोग संक्रमित हो सकते हैं। 9 जून
तक दिल्ली में कोरोना के . 29
हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। 52 दिन
बाद यानी 31 जुलाई तक राजधानी में में कोरोना के करीब 5 लाख
केस बढ़ जाएंगे। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि राजधानी में
कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो गया है। सत्येंद्र जैन ने कहा कि दिल्ली
में कोरोना का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे वजह है कि संक्रमण का का सोर्स ही
पता नहीं चल रहा है। इसे ही कम्युनिटी ट्रांसमिशन कहते हैं। हालांकि अभी केंद्र
सरकार ने साफ किया है कि अभी कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हुआ है। इस बात का जवाब
दिल्ली सरकार की तैयारियों से मिल सकता है। 31
जुलाई तक दिल्ली में 5.5 लाख
कोरोना के मरीज होंगे। उनके इलाज के लिए 80
हजार बेड की जरूरत होगी। दिल्ली में कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए अभी 8575 बेड
... हैं। इसमें सरकारी अस्पतालों में 5678 और
प्राइवेट अस्पतालों में 2887 बेड
हैं। इसमें सरकारी अस्पतालों में 2463
बेडों पर मरीज हैं और 3215 बेड
खाली हैं। वहीं प्राइवेट अस्पतालों में 1950
बेडों पर मरीज हैं और 937 बेड
खाली हैं। दिल्ली में अभी तक 4413
बेडों पर मरीज हैं और 4162 बेड
खाली हैं। दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार के उस फैसले को बदल
दिया था, जिसमें कहा गया... गया था कि दिल्ली के अस्पतालों में
केवल दिल्लीवालों का ही इलाज होगा। उन्होंने कहा कि अधिकारी इस बात को सुनिश्चित
करें कि किसी भी मरीज को स्वास्थ्य सेवाएं देने से इस आधार पर मना नहीं किया जा
सकत... क्योंकि वो दिल्ली के निवासी नहीं हैं। कम्युनिटी ट्रांसमिशन कोरोना वायरस
की थर्ड स्टेनज होती है। यह स्टेज तब आती है जब किसी एक बड़े इलाके के लोग वायरस
से संक्रमित पाए जाते हैं। वहां की स्थितियां कोरोना से बीमार लोगों की संख्या के
खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है। कम्युनिटी ट्रांसमिशन में कोई ऐसा व्यक्ति भी
संक्रमित हो सकता है जो न तो कोरोनवायरस से प्रभावित देश से लौटा है और न ही वह
किसी दूसरे कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया हो। कई देशों में तो
अध्ययन में ये भी बताया गया कि कम्युनिटी स्प्रेड होने पर इससे बचाव काफी मुश्किल
हो जाता है। इस स्टेज में यह पता नहीं चलता कि कोई व्यक्ति कहां से संक्रमित हो
रहा है। भारत कोविड-19
महामारी के मामले में छठा प्रभावित देश बन गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार
शनिवार को देश में संक्रमण के एक दिन में सर्वाधिक मामले आए जिनकी संख्या 9,887 रही,
वहीं 294
लोगों की मौत हो गयी। इसके बाद देश में अब तक संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 2,36,657 हो
गयी है तथा मरने वालों का आंकड़ा 6,642 पर
पहुंच गया है। डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि 130
करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में कोरोना वायरस के दो लाख से अधिक मामले ज्यादा
लगते हैं, लेकिन इतने बड़े देश के लिए यह संख्या अब भी बहुत अधिक
नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत एक विशाल देश है जहां बहुत घनी आबादी वाले शहर हैं,
वहीं कुछ ग्रामीण इलाकों में कम सघन बसावट है और इसके
अतिरिक्त विभिन्न राज्यों में स्वास्थ्य प्रणालियों में भी विविधता है तथा इन सबकी
वजह से कोविड-19 को
नियंत्रित करने में चुनौतियां सामने आ रही हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में
आगामी दिनों में कोरोना विस्फोट हो सकता है। इसके मद्देनजर मुंबई के सेंट जार्ज और
गुरु तेगबहादुर (जीटी) अस्पताल को एहतियातन कोरोना अस्पताल में रूपांतरित कर दिया
गया है। कोरोना की स्थिति का जायजा लेने मुंबई आई केंद्रीय टीम का अनुमान है कि
आगामी 30 अप्रैल तक महानगर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 42
हजार तक पहुंच सकती है जबकि 15 मई 2020 तक
यह संख्या 6 लाख 56
हजार हो सकती है। वहीं, राज्य
के स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि हमारे अनुमान के तहत यह आंकड़ा एक लाख तक जा
सकता है। इससे पहले राज्य के
स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने भी मुंबई-पुणे में कोरोना संक्रमितों की संख्या
बढ़ने की संभावना जताई थी। लेकिन, मुख्यमंत्री
कार्यालय का कहना है कि केंद्रीय टीम ने इस संबंध में हमें कोई ऐसा डाटा उपलब्ध
नहीं कराया है। जबकि अंदरखाने अधिकारी भी यह मान रहे हैं कि मुंबई की झुग्गी
झोपड़ियों में जिस तरह से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है उसे देखते हुए
केंद्रीय टीम के अनुमान के आधार पर तैयारी की जरूरत है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी मेयर बंगले पर
आयोजित बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे केंद्रीय टीम के अनुमान का
संज्ञान लें। भले ही यह आंकड़ा हमारे अनुमान से अधिक है,
लेकिन उसके तहत काम करें। वहीं,
एक अधिकारी ने कहा कि हम केंद्रीय टीम के अनुमान को
खारिज नहीं कर रहे हैं। लेकिन यदि झुग्गी बस्तियों में यदि दूरी बनाने के नियम का
पालन किया गया तो अनुमानित आंकड़ों को नियंत्रित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना
वायरस के मरीज़ों
को लेकर शुक्रवार
को स्वतः सज्ञान
लेते हुए चार राज्यों
से जवाब माँगा
है.
उनमें से महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के साथ साथ दिल्ली भी है. जस्टिस कॉल ने दिल्ली को लेकर कहा कि यहाँ टेस्ट बहुत कम हो रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट में अस्पतालों में शवों की जो हालत है वो भयावह है.
इस बेंच ने कहा कि वेटिंग एरिया में शवों को रखा गया है. ये बताता है कि दिल्ली में स्थिति कितनी ख़राब हैं.।
इस तरह की भयावह स्थिति की बात ख़ुद दिल्ली सरकार ने की है.
9 जून 2020 को एक बयान में मनीष सिसोदिया, उप-मुख्यमंत्री, दिल्ली सरकार ने कहा की दिल्ली में जुलाई के अंत तक कोरोना के साढ़े पाँच लाख केस हो जाएंगे. दिल्ली में लॉकडाउन अब और नहीं बढ़ेगा.ऐसे में सवाल उठता है कि 68 दिन के लॉकडाउन में आख़िर दिल्ली की सरकार ने क्या तैयारी की? कहां कमी रह गई? केजरीवाल से कहां चूक हुई? दिल्ली कोरोना ऐप की कहानी. 2 जून को दिल्ली सरकार ने ऐप लॉन्च किया. नीयत अच्छी थी, इसमें कोई दो राय नहीं. लेकिन इस ऐप ने लोगों का भला कम किया सरकार की दिक़्क़तें ज़्यादा बढ़ा दीं. ऐप लॉन्च होते ही मरीज़ों, उनके रिश्तेदारों और पत्रकारों ने सभी अस्पतालों में फ़ोन करके पता लगाना शुरू कर दिया कि किस अस्पताल में कितने बेड ख़ाली हैं. पता चला कि ऐप में जो दिख रहा है और जो वास्तव में अस्पतालों की स्थिति है, वो एक जैसी नहीं है. दिल्ली कोरोना ऐप के आँकड़ों पर ध्यान देंगे तो तीन अहम बातें नज़र आती हैं पहली बात - दिल्ली में कोरोना मरीज़ों का सबसे ज्यादा लोड 10 बड़े सरकारी (केन्द्र और राज्य) और पाँच बड़े प्राइवेट अस्पतालों पर हैं. सरकारी अस्पतालों में लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल , जीबी पंत अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशियैलिटी अस्पताल, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, दीप चंद गुप्ता अस्पताल, एम्स (दिल्ली और झज्जर), सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया अस्पताल शामिल हैं. प्राइवेट अस्पतालों की बात करें तो मैक्स, सर गंगाराम और अपोलो अस्पताल में ज्यादा लोग जा रहे हैं. दूसरी बात जो निकल कर सामने आ रही है वो ये कि ऐप में तो दिख रहा है कि अस्पतालों में बेड ख़ाली हैं, लेकिन मरीज़ वहां जाते नहीं हैं या फिर वहाँ पहुँचने पर उन्हें एडमिशन नहीं मिल रहा है, या आईसीयू और वेंटिलेटर वाले बेड नहीं मिल रहे. तीसरी बात है इलाज का ख़र्च. कई अस्पताल लाखों में आईसीयू का ख़र्च बता रहे हैं. कुछ अस्पताल तो पैसा भी पहले ही जमा करवाने को कह रहे हैं. संत परमानंद अस्पताल ने फोन पर बीबीसी को बताया कि आईसीयू के लिए 9 लाख रुपये पहले जमा करवाने होंगे तभी जाकर मरीज़ को अस्पताल में दाखिला मिलेगा. फ़ोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल, न्यू फ़्रेंड्स कॉलोनी ब्रांच ने फोन पर बताया कि कोविड19 के इलाज के लिए एक बेड के लिए एक दिन का ख़र्चा 9000 रुपये आएगा. साथ ही डॉक्टर की हर विज़िट के लिए चार्ज अलग से देना होगा जो 4200 रुपये प्रति विज़िट होगा. आम तौर पर एक दिन में डॉक्टर दो से तीन बार मरीज़ को देखने आते हैं. अस्पताल के मुताबिक़ अगर मरीज़ को आईसीयू में रखने की आवश्यकता पड़ती तो उसका ख़र्च एक लाख रुपये प्रति दिन होगा. जिसमें 50 हज़ार से 80 हज़ार अस्पताल में दाख़िले के दौरान ही जमा करवाने होंगे. साफ़ है कि दिल्ली सरकार का ये ऐप फिलहाल के लिए एक छलावा है और इससे मरीज़ों का कुछ ख़ास कल्याण नहीं हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक अग्रवाल के मुताबिक छोटे अस्पतालों का ही नहीं, बड़े अस्पतालों का भी हाल बुरा है. इसलिए लोग केवल बड़े नाम वाले अस्पतालों में जाना चाह रहे हैं. रोज़ ट्विटर पर सरकारी अस्पतालों की तस्वीरें वायरल हो रही है जिनमें कॉरिडोर में मरीज़ बुरे हाल में पड़े दिखाई देते हैं, उन्हें अटेंड करने के लिए ना तो कोई नर्स है और ना ही कोई डॉक्टर. ऐसी तस्वीरें देखकर दूसरे मरीज़ों का भी हौसला टूटता है. अशोक अग्रवाल का मानना है कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लोगों का डाक्टरों पर भरोसा बहुत बड़ी बात होती है. और वो बरसों की मेहनत से ही जीता जा सकता है. लगातार मिल रही शिक़ायतों के बाद अब दिल्ली सरकार कोरोना ऐप के डेटा और अस्पतालों में ख़ाली बेड में तालमेल बिठाने की बात कर रही है. जल्द ही अस्पतालों में इस कमी को दूर करने के लिए सरकार हर अस्पताल में एक नोडल अफ़सर तैनात करने जा रही है, जो इस ऐप में सही डेटा भरने के लिए ज़िम्मेदार होंगे. बीबीसी से बातचीत में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर गिरीश त्यागी ने ये जानकारी साझा की. दिल्ली के उप-राज्यपाल ने 10 जून को एक सर्कुलर जारी कर सभी अस्पतालों को आदेश दिया है कि सभी अस्पताल और नर्सिंग होम अपने संस्थान के बाहर खाली बेड की संख्या और इलाज के ख़र्च का बोर्ड लगाएंगे.