कोरोना लॉकडाउन: ऑनलाइन क्लास से कितना होगा बच्चों को फ़ायदा ।
ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली वरदान या अभिशाप?
क्यों कि हम जिस देश में रहते हैं
वहां लोग दो भाग में रहते हैं एक इंडिया और दूसरा जो की भारत
क्यों की
जहाँ लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई न छूटे इसके लिए ऑनलाइन क्लास चलाने का निर्देश
तो जारी हो गया लेकिन, बच्चों का ऑफलाइन
होना शिक्षकों के लिए मुसीबत बन गया है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन
क्लास के संचालन में समस्या आ रही है। कई शिक्षकों का कहना है कि राजकीय स्कूलों
में पढऩे वाले ज्यादातर छात्रों के पास एंड्राएड फोन नहीं है, ऐसे में वे ऑनलाइन क्लास
में शामिल ही नहीं हो पा रहे हैं। जो छात्र वाट्सएप पर हैं भी तो उनकी संख्या चार
से पांच फीसद ही है। माध्यमिक शिक्षा विभाग से बीस अप्रैल से ऑनलाइन क्लास शुरू
करने के निर्देश जारी किए गए हैं। इसमें सभी राजकीय, सहायता प्राप्त व स्ववित्त पोषित स्कूलों के प्रधानाचार्यों को बच्चों को
वाट्सएप ग्रुप से जोड़कर ऑनलाइन कक्षाएं लेने का आदेश दिया गया है लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में
स्थित स्कूलों में छात्रों को इससे जोड़ पाने में कठिनाई हो रही है। राजकीय इंटर
कॉलेज मुरादाबाद के प्रधानाचार्य श्यामा कुमार का कहना है कि विद्यालय के रिकॉर्ड
में जो नंबर हैं, उसमें कई छात्रों के
पास खुद का फोन ही नहीं है। जिनके पास है भी तो वे एंड्राएड फोन प्रयोग नहीं करते, ऐसे में बच्चों को किस तरह
ऑनलाइन पढ़ाया जाए। ऑनलाइन क्लास में सबसे ज्यादा चुनौती राजकीय विद्यालयों के
सामने है। लेकिन
लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद रहने
से बच्चों की पढ़ाई पर असर ना पड़े इसीलिए कई प्राइवेट और सरकारी स्कूलों ने
ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की है
तथा स्कूल के रिकॉर्ड से बच्चों के नंबरों
को वाट्सएप ग्रुप पर भी जोड़ा जा रहा है लेकिन एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में
से दो माता-पिता के
पास बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के सेटअप के लिए ज़रूरी सामान ही नहीं है. वहीँ इस लाक डाउन के दौरान
गुरुकुल में ऑनलइन शिक्षा कैसे ?
भारतीय पुरातन शिक्षा पद्धति गुरुकुल
में पढ़ने वाले उन गरीब परिवार के बच्चों का क्या भविष्य है जहाँ ऑनलाइन शिक्षा का
दौर है वहीँ गुरुकुल में पढ़ने वाले बच्चे गरीब परिवार के होते हैं कुछ बच्चे तो
किसी के रहमो करम पर पढ़ते ऐसे में उनकी पढाई कैसे होगी | गुरुकुल में दो तरह
के बच्चे आते हैं पढ़ने एक वो जिन्हे संस्कृत का पाठन करना है दूसरे वो जो निर्धन
परिवार से होते हैं जबकि गुरुकुल में फ़ीस लेते नहीं हैं इस स्थिति में कैसे मैनेज
करेंगे जबकि गुरुकुल चलाने का माध्यम सत्संग में भाग लेने वाले लोग तथा ओ लोग जो की
अपनी संस्कृति बढ़ाने एवं पठन पाठन को बढ़ने तथा पढाई परम्परा को चलाये रखने में
रूचि रखते है उनके द्वारा दिए गए दान | इस लाक डाउन के
दौरान आर्थिक मदद भी नहीं मिल पा रही है ऐसे में दिक्कतों का सामना करना पद रहा है
जिसके कारन जो बच्चे नजदीक के हैं उन्हें घर पहुचां दिया गया है ताकि कोरोना से
उन्हें बचाया जा सके तथा जो बच्चे दूर के हैं उन्हें दूर - दूर बैठा कर शिक्षा दी
जा रही है ऐसे में उन बच्चो की शिक्षा नहीं हो पा 0 रही जो अपने -अपने
घर पे हैं | ऐ छात्र ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवार से हैं
इनके पास एंड्रॉयड फोन और नेट की सुबिधा नहीं है ऐसे में वे ऑनलाइन क्लास में शामिल ही नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में सभी बच्चो को ऑनलाइन पढ़ाने में
समस्या सामने आ रही है। बहुत से बच्चे वाट्सएप पर नहीं हैं। ऐसे में सभी को एक साथ
पढ़ाया जाना मुश्किल है, जो बच्चे व्हाट्सअप पर उपलब्ध हैं उन्हें वीडियो बनाकर भेजी जा रही है। बाकी के
बच्चों को फोन करने की सुविधा दी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे एंड्राएड फोन
नहीं प्रयोग करते ऐसे में वाट्सएप ग्रुप पर बच्चों को जोडऩा चुनौती भरा है। बड़े स्कूलों की तर्ज पर कुछ छोटे स्कूलों ने भी मोबाइल ऐप बनाये हैं। लेकिन, ये बच्चों के लिए ज्यादा कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। बच्चों को इनसे बहुत
ज्यादा हेल्प नहीं मिल रही है। कुछ अभिभावकों का कहना है कि स्कूल ने ऐप
बनाया, जिसे उन्होंने डाउनलोड भी कर लिया। लेकिन, इससे कोई फायदा नहीं हुआ। अब टीचर एक अध्याय
विशेष की वीडियो बनाकर व्हाट्सएप पर शेयर करती है। ताकि, इसे देखकर सभी अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ा सकें। अब सवाल ये कि वीडियो भेजना
था तो ऐप बनाने की जरूरत क्या है। और अगर अभिभावकों को ही सब काम कराने हैं तो
वीडियो बनाकर शेयर कर अपना और हमारा इंटरनेट डाटा क्यों खत्म किया जा रहा है।
ज्यादातर अभिभावक इसे खुद के लिए एक नई परेशानी मान रहे हैं। उनका कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों पर ही पढ़ाने का जिम्मा डाल दिया गया है। इसमें शिक्षकों के पास भी इतना वक्त नहीं रह गया कि वह हर बच्चे से अलग-अलग बात कर सकें। इसके अलावा उन अभिभावकों के सामने भी दिक्कत है, जिनके एक से ज्यादा बच्चे हैं। कुछ अभिभावकों का कहना है कि उनका पूरा दिन बच्चे का होमवर्क कराने में ही गुजर जा रहा है। हालांकि, बच्चों को फोन पर सूचना दी जा रही है, कि वे अपनी समस्याएं फोन कर पूछ सकते हैं। बच्चों का कोर्स पूरा कराने के साथ ही डाउट भी क्लियर कराए जा रहे हैं। लेकिन अभिभावकों को यह व्यवस्था बहुत ज्यादा रास नहीं आ रही है। अभिभावकों को ऑनलाइन पढ़ाई से नहीं है क्लासरूम जैसा एतबार साथ ही अभिभावकों की बढ़ गई है जिम्मेदारी कुछ लोगों को इस बात की ख़ुशी है कि स्कूल बंद होने पर भी बच्चों की पढ़ाई हो रही है तो दूसरी तरफ़ उन्हें ये भी चिंता है कि बच्चे को चार से पांच घंटे मोबाइल लेकर बैठना पड़ता है. वैसे तो कहा जाता है कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखें लेकिन अभी बच्चे को पढ़ाई के लिए ही मोबाइल इस्तेमाल करना पड़ रहा है. उसके बाद वो टीवी भी देखता है तो उसका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है. इसका बच्चे की सेहत पर क्या असर होगा. आजकल माता-पिता कुछ ऐसी ही दुविधा से दो-चार हो रहे हैं. बच्चे को पढ़ाना भी ज़रूरी है लेकिन उसकी सेहत भी अपनी जगह अहम है. साथ ही बच्चा कितना समझ पा रहा है ये भी देखना ज़रूरी है. दरअसल, कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते मार्च से ही स्कूल बंद कर दिए गए हैं. इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि स्कूल कब से खुलेंगे और नया सिलेबस कब शुरू हो पाएगा. लॉकडाउन की वजह अभिभावकों को कुछ इस तरह की परेशानियों से भी दो चार होना पड रहा है | भावना की दोनों बेटियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं. उनका स्कूल ऑनलाइन क्लासेस के ज़रिए घर में ही पढ़ाई करवा रहा है. लेकिन भावना के घर में एक ही लैपटॉप है. उन्हें वर्क फ्रॉम होम भी करना है और दोनों बेटियों की अलग-अलग ऑनलाइन क्लास भी है. बेटियां स्मार्ट फोन से क्लास नहीं लेना चाहतीं, क्योंकि क्लास के दौरान शेयर स्क्रीन भी करनी होती है. जिसमें उनका कहना है कि दिक्क़त आती है. बहुत-से माता-पिता बच्चों की पढ़ाई में इस तरह की भी परेशानी से जूझ रहे हैं. स्कूल टीचर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बच्चों को क्लास दे रही हैं। लेकिन, अधिक बच्चों से कनेक्टिविटी से सर्वर पर लोड होने के कारण तकनीकी दिक्कतें आती रहती हैं। कई बार टीचर की बात समझने में भी दिक्कत आती है। कुछ स्कूलों ने एक ऐप उपलब्ध कराया है जिस पर होमवर्क प्रैक्टिस शीट, वर्कशीट सब कुछ भेजी जाती है। टीचर ऑनलाइन वीडियो के जरिए भी बच्चों को समझाने की कोशिश करते हैं। उसके बाद भी अगर कोई दिक्कत रहे तो सीधे फोन पर भी बात कर सकते हैं। कुछ अभिभावकों का कहना है की स्कूल वाले ऑनलाइन के नाम पर व्हाट्सएप पर होमवर्क भेज देते हैं। पेरेंट्स को बच्चों का होमवर्क कराकर भेजना होता है। ऑनलाइन के नाम पर पेरेंट्स पर ही पढ़ाने का दबाव डाला जा रहा है। टीचर के पास इतना समय नहीं है कि वह हर बच्चे से अलग-अलग बात कर सके। इसलिए ज्यादातर सिर्फ एक वीडियो बनाकर भेज दिया जाता है। इससे बहुत ज्यादा फायदा नहीं लगता। कुछ माता-पिता बच्चों की पढ़ाई में इस तरह की भी परेशानी से जूझ रहे हैं अभिभावकों का कहना है कि स्कूल ने मोबाइल ऐप दिया है, जिस पर रोजाना प्रैक्टिस के लिए काम भी मिलता है। लेकिन हमारे दो बच्चे हैं और मोबाइल एक। ऐसे में दोनों बच्चों को पढ़ाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इससे अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है। हमारे जैसे अभिभावकों को पहले एक बच्चे का काम खत्म कराना होता है फिर दूसरे बच्चे का। लेकिन लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई प्रभावित ना हो इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई का विकल्प अच्छा है। प्राइवेट स्कूलों के साथ ही सरकारी स्कूलों ने भी ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की है। हमारी कोशिश है कि बच्चे घर पर रहते हुए भी अपने स्कूल तथा कोर्स से जुड़े रहें। अनेक सरकारी और प्राइवेट स्कूल इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। पढ़ाई के इस नए डिजिटल माहौल से जहां बच्चे काफी खुश हैं, तो वहीं अध्यापक भी इसे काफी उत्साहजनक मान रहे हैं। जहां देशभर में लॉकडाउन का एक बड़ा साइड इफेक्ट बच्चों पर हुआ है बच्चे घर से नहीं निकल पा रहे हैं. ऐसे में स्कूल भी बंद है इसलिए स्कूल बच्चों को तकनीक के जरिए ऑनलाइन क्लासेज करवा रहे हैं. ताकि इस लॉकडाउन में बच्चे पढ़ाई से दूर ना हों और इसलिए भी आनलाइन क्लासेज शुरू कर दी गई हैं ताकि वो अपने टीचर के साथ जुड़े रहें और पढ़ाई भी साथ-साथ करते रहे जिससे बच्चों पर लॉकडाउन का बहुत ज्यादा साइड इफेक्ट न हो फिलहाल, देश के अनेक सरकारी-प्राइवेट स्कूलों में स्मार्टफोन के सहारे बच्चों का भविष्य संवारने की कोशिश हो रही है और व्हाट्सएप, यूट्यूब और वीडियो इसके वाहक बन गए हैं। मौजूदा हालातों में बच्चे स्कूल जाकर पढ़ाई नहीं कर सकते. ऑनलाइन क्लासेज के साथ बच्चों को होमवर्क भी दिया जाता है. टीचर्स के लिए भी ऑनलाइन क्लासेज लेना एक बड़ी चुनौती है और कुछ नया सीखने और सिखाने का मौका भी. मई के दूसरे हफ्ते में स्कूलों की गर्मियों की छुटिट्यां शुरू हो जाती हैं ऐसे में लॉकडाउन कब खत्म होगा और दोबारा आगे बढ़ेगा या नहीं, इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है. लिहाजा स्कूलों की कोशिश है कि लॉकडाउन में भी बच्चों को पढ़ाई में पिछड़ने न दिया जाए. भारत में स्कूल जाने वाले करीब 26 करोड़ छात्र हैं. ज़ाहिर है, ऑनलाइन क्लासेस के ज़रिए शहरों में स्कूलों के नए एकेडमिक सेशन शुरू हो गए हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर और ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले छात्र इस मामले में कहीं पीछे छूट रहे हैं. कोई नहीं जानता कि देश कोरोना से ख़तरे से निकलकर कब सामान्य ज़िंदगी में आएगा, ऐसे में अब सरकार के सामने ये चुनौती है कि वो स्कूल के इन छात्रों को कैसे साथ लेकर चलेगी. सरकार ने छात्रों के लिए तमाम मुफ्त ऑनलाइन सुविधाएं दी हैं लेकिन सच्चाई ये है कि ग्रामीण इलाक़ों में प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्ति के पास इंटरनेट है तो ये छात्र पढ़ेंगे कहां? यूनिसेफ के साथ जुड़े शिक्षा विशेषज्ञ शेषागिरी के एम कहते हैं कि ऑनलाइन ज़रूर एक पावरफुल माध्यम है, लेकिन इस तरह आप सिर्फ़ 20 से 30 प्रतिशत आबादी तक ही पहुंच सकेंगे. हर राज्य में डिजिटल पाथवे को लेकर शोर शराबा चल रहा है. ज़रूर ये एक माध्यम है, जिसके ज़रिए बच्चों तक पहुंचने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं. हर किसी के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिवी नहीं है. छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पूरी किताब को ही डिजिटलाइज़ करके वेबसाइट में डालने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ वीडियो और ऑडियो अपलोड करने की बात भी चल रही है. अगर आप लोगों को बोल रहे हैं कि वो वेबसाइट पर जाकर ये डाउनलोड करें, तो उसकी भी एक विधि होती है.वो हर किसी को नहीं आती है. शिक्षा विशेषज्ञ शेषागिरी कहते हैं कि अब तक की रणनीति 'वन साइज़ फिट ऑल टाइप' की है. वो सुझाव देते हैं, जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है और जो इंटरनेट एक्सेस नहीं कर सकते हैं, स्थानीय प्रशासन की तरफ से ऐसे परिवारों के बच्चों को छोटा-मोटा एजुकेशनल किट बनाकर देना चाहिए, जो उनके घर में जाकर दिए जाएं. इसकी भाषा आसान हो, जिसमें गणित या विज्ञान जैसे विषयों की आसान वर्कशीट्स हो. हमदर्द पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल सहर सैयद बताती हैं कि ऑनलाइन सिस्टम से बच्चों और अभिभावकों में पढ़ाई को लेकर हुआ नुकसान काफी कम हो गया है। अभिभावकों के साथ-साथ बच्चे इसे काफी सकारात्मक तरीके से ले रहे हैं। हर क्लास के विशेष टीचर एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर उसमें बच्चों को पढ़ने के मैटेरियल भेज रहे हैं। पढ़ाई की सामग्री की वीडियो बनाकर यूट्यूब पर अपलोड कर दी जाती है। बच्चे इसे अपनी सुविधानुसार समय पर मैटेरियल पढ़कर अध्ययन करते हैं और वीडियो देखकर उन्हें समझने की कोशिश करते हैं। इसके बाद उन्हें जो चीजें नहीं समझ आई रहती हैं, उन पर वे व्हाट्सएप के जरिए अपने अध्यापक से सवाल करते हैं। अध्यापक भी व्हाट्सएप से ही उन सवालों के जवाब दे देते हैं। इससे बच्चों की ज्यादातर समस्याएं हल हो जाती हैं। इन्हीं माध्यमों से बच्चों के टेस्ट भी ले रहे हैं और उनका मूल्यांकन भी कर रहे हैं। यह नया माहौल बच्चों को काफी उत्साहित करने वाला है। इसके लिए उन्हें अपने अध्यापकों को कुछ बेसिक ट्रेनिंग दी है। अब यह काफी कारगर तरीके से चल रहा है। इसमें बच्चों के परिवार से भी सहयोग मिल रहा है। जूम जैसे ऑनलाइन माध्यमों को कुछ अभिभावक सुरक्षित नहीं मान रहे हैं, जिसके कारण अभी ऑनलाइन क्लास का कॉन्सेप्ट बहुत लोकप्रिय नहीं हो पा रहा है। छोटे बच्चों को टेक्स्ट भेजकर उसकी हार्ड कॉपी बनवाकर पढ़ाया जा रहा है तो बड़े बच्चों को ऑनलाइन ही मैटेरियल दिया जा रहा है। अध्यापक और अभिभावकों की मीटिंग भी व्हाट्सएप के जरिए हो रही है। वहीं, कई स्कूल अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। उत्तम स्कूल फॉर गर्ल्स, गाजियाबाद में जूम के जरिए बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है। इस प्लेटफॉर्म की सबसे अच्छी बात यह है कि एक साथ सौ बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। इसमें शिक्षिका अपनी स्क्रीन भी शेयर करके साथ-साथ वीडियो भी दिखा पा रही हैं। इसके साथ ही ऑनलाइन पढ़ाने के लिए गूगल हैंगआउट, गूगल क्लासरूम और गूगल फॉर्म्स का विकल्प खूब लोकप्रिय हो रहा है। गूगल फॉर्म्स के सहारे ऑनलाइन टेस्ट भी ले लिया जाता है और चाहें तो ऑटो असेसमेंट भी एक्टिवेट किया जा सकता है। विद्यार्थी अपने टेस्ट के परिणाम खुद ही देख पाते हैं। इससे उन्हें अपनी कमियों का भी पता चल जाता है। ऑनलाइन माध्यम के जरिए दिल्ली सरकार भी अपने बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रही है। अब दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का माहौल काफी बदल गया है। पढ़ाने से लेकर अभिभावकों के साथ अध्यापकों की मीटिंग भी ऑनलाइन हो रही है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत 326 स्कूल हैं। इनमें 1175 लाख बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नगर निगम के नेता संदीप कपूर बताते हैं की उनके 230 स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती है, इसके लिए उनके पास कंप्यूटर दक्ष स्टाफ मौजूद हैं। यही कारण है कि अब लॉक डाउन के समय इन्हीं अध्यापकों के माध्यम से वे तीसरी, चौथी और पांचवीं क्लास के बच्चों को व्हाट्सएप से पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। संदीप कपूर के मुताबिक यह तरीका बेहद कारगर साबित हो रहा है। स्मार्टफोन से हर क्लास के बच्चों को पढ़ने की सामग्री, किस्से-चुटकुले और खेल भेजे जा रहे हैं और खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने की कोशिश हो रही हैं। टेक-महिंद्रा ने टीचरों को नई तकनीक से पढ़ाने के लिए तकनीकी सहयोग दिया है। ऑफलाइन क्लास का विकल्प नहीं शिक्षाविद मानते हैं कि यह तरीका काफी कारगर है और आने वाले समय में यह औपचारिक शिक्षा में बड़ा सहयोग दे सकता है। लेकिन इसके बाद भी इसकी अपनी सीमाएं हैं और यही वजह है कि यह तरीका ऑफ लाइन कक्षाओं वाली शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकता है। इसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी तकनीकी परेशानियां तो आ ही रही हैं, देश के एक बड़े वर्ग के पास स्मार्टफोन न होना भी इसकी पहुंच सीमित करता है। लेकिन लॉकडाउन की इस सीमा में यह बच्चों को पढ़ाने का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। देशभर में जारी लॉकडाउन में स्कूल-कॉलेज ऑनलाइन क्लास का सहारा ले रहे हैं। परंपरागत क्लास अब ई-पाठशाला में तब्दील हो चुकी है। हालांकि, कोरोना संकट से बचाव के लिए देशभर में जारी लॉकडाउन में स्कूल-कॉलेज ऑनलाइन क्लास का सहारा ले रहे हैं। अब दूरदर्शन पर लगेगी क्लास... अब दूरदर्शन मध्यप्रदेश के माध्यम से होगी बच्चों की पढ़ाई, जी हां दूरदर्शन मध्यप्रदेश चैनल पर 11 मई से एक नया कार्यक्रम क्लासरूम शुरू हो गया है, जिसके माध्यम से 10 वीं क्लास लिए दोपहर 12 बजे से एक बजे तक और 12वीं क्लास के लिए दोपहर 3 से 4 बजे तक सब्जेक्ट बेस्ड टीचिंग होगी। अब परंपरागत क्लास अब ई-पाठशाला में तब्दील हो चुकी है। लेकिन इसके फायदे और नुकसान को लेकर छात्र, शिक्षक, परिजन और डॉक्टर सभी के अपने-अपने तर्क हैं। कुछ अभिभावकों का कहना है की लॉकडाउन की वजह से बंद निजी स्कूल के प्रबन्धको ने फीस वसूलने के लिए अब ऑनलाइन पढ़ाई का फंडा तैयार कर लिया है। जिसके तहत व्हाट्स ऐप ग्रुप बनाकर पदस्थ शिक्षकों द्धारा घर बैठे ऑनलाइन शिक्षा कार्य कराया जा रहा है। निजी विद्द्यालयों के प्रबंधक द्धारा ऑनलाइन पढ़ाई का माध्यम अभिभावकों, बच्चों और शिक्षकों सभी के लिए मुसीबत बन गई है। जरूरी नही सभी के पास ब्यक्तिगत मोबाइल फोन, लैपटाप हो किसी के घर मे एक ही फोन है किसी पास है तो खराब हो गया। मोबाइल रिपेयरिंग की दुकानें बंद होने कारण ठीक कराने में परेशानी हो रही है। गांवों में बिजली न आना, तकनीकी ज्ञान में कमी, व्हाट्सएप व इंटरनेट न होने की समस्या के कारण बच्चे ऑनलाइन पढ़ नहीं पा रहे। इस कोरोना महामारी के वजह से अभिभावक जीवनयापन मे मुसीबत झेल रहे हैं व बहुत सारे अभिभावक फीस देने मे असमर्थ है। दूसरी तरफ भुगतान का तगादा शुरू हो गया है। स्कूलों से फीस के लिए लगातार फोन,मैसेज आने शुरू हो गए। क्या फीस के लोभ में इन मासूमों को आंख,कान,रेडिएशन, मानसिक और शारिरिक रोगों की भट्टी में झोंका जा रहा है। इन मासूम छात्रों को दिन में चार घंटे ऑनलाइन क्लास के लिए कान में ईयर फोन लगाकर मोबाइल में आंखें गड़ाकर बैठना पड़ रहा है। फिर तीन घंटे व्हाट्सएप पर होमवर्क करना पड़ रहा है। स्कूल worksheets upload किये जा रहे हैं बिना यह सोचे कि जरूरी नहीं कि हर घर में प्रिंटर हों, प्रिंटर हों तो वे ठीक ही हों ,ठीक हो तो कागज़ घर पर हों जिनपर प्रिंट निकाला जा सके। शिक्षा के आदान प्रदान की इतनी आग अभी ही क्यों लग रही है ? स्कूलों की ऑनलाइन क्लासेज उन्हें नेत्र रोग, कर्ण रोग, मनोरोग और शारीरिक रोगों के तरफ तेजी से धकेल रही है। कोरोना लॉक डाउन के चलते इन दिनों एक माह से हर घर में स्कूली बच्चे 3 से 4 घंटे मोबाइल ऑनलाइन क्लासेज और 2 से 3 घंटे मोबाइल के जरिए होमवर्क करने में गुजार रहे हैं। यदि यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब बच्चे नेत्र, कर्ण, शारीरिक एवं मनोरोगों का जबरदस्त तरीके से शिकार हो जाएंगे। वहीँ ऑनलाइन क्लास से पढ़ाई करने वाली 12वीं की छात्रा खुशी चौधरी का कहना है कि पहले तो उन्हे ऑनलाइन क्लास में काफी मजा आया, लेकिन करीब एक महीने बाद उन्हे आंखों में ड्रायनेस, गर्दन और पीठ दर्द जैसी समस्याएं होने लगी हैं। वहीं पेरेंट्स का कहना है कि बच्चों की पढ़ाई और सेहत दोनों जरूरी हैं, ऐसे में बच्चे को पढ़ाना भी ज़रूरी है लेकिन उनकी सेहत भी जरूरी है। ऑनलाइन क्लास के साइड इफेक्ट दिखने भी लगे हैं। बच्चों को चार से पांच घंटे मोबाइल या लैपटॉप लेकर बैठने तथा घंटों स्क्रीन के सामने रहने के कारण स्क्रीन टाइम बढ़ गई है, जिससे सिरदर्द, गर्दन में दर्द जैसी समस्याएं होने लगी हैं। घर में स्कूल जैसा माहौल नहीं बन रहा, ऑनलाइन पढ़ाई में कॉन्सेप्ट भी क्लियर नहीं हो पा रहे हैं। मैं सरकार से निवेदन करता हूं कि इस ऑनलाइन शिक्षण के जाल से बच्चों को बचाएं और तत्काल प्रभाव से इसकी समीक्षा करें। निजी विद्यालयों को आदेश दें कि वे इसे अनिवार्य न बनाएं। जब स्कूल खुले तब पाठ्यक्रम का शुरू से अध्यापन करवाएं ।
डॉक्टर शकुंतला पांडेय
के अनुसार यदि स्टूडेंट्स घंटों स्क्रीन पर नजर टिकाए रहते हैं तो उनकी आंखों में
सूजन,एक
की पोजीशन में बैठे रहने से गर्दन और पीठ में दर्द के साथ ही मनोवैज्ञानिक असर हो
सकता है। इससे उनमें आत्मसंयम की कमी, जिज्ञासा में कमी, भावनात्मक स्थिरता ना
होना, ध्यान
कंसन्ट्रेट ना कर पाना जैसी समस्याएं आती हैं । इन दिनों बच्चो की
फिजिकल
एक्टिविटी कम हो गई है, जिससे
उनका वजन भी बढ़ रहा है । ज्यादा देर पढ़ाई में कंस्ट्रेट नहीं कर पाते, सामान्य तौर पर बच्चे 20 से 30 मिनट ही अच्छी तरह
फ़ोकस कर सकते हैं, ये
सीमा ज़्यादा से ज़्यादा 40 मिनट
हो सकती है. उसके बाद ध्यान भटकना शुरू हो जाता है
बीच-बीच
में लें ब्रेक, करें
हल्का व्यायाम लॉकडाउन कब खत्म होगा इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है, लिहाजा स्कूलों की
कोशिश है कि लॉकडाउन में भी बच्चों को पढ़ाई में पिछड़ने न दिया जाए। ऐसे में
डॉक्टरो की सलाह है कि छात्रों को समय-समय पर ब्रेक लेना चाहिए, घर पर ही एक्सरसाइज
करनी चाहिए, आंखों
को आराम देना चाहिए, बैलेंस
डाइट के साथ पूरी नींद लेनी चाहिए, तनाव नहीं लेना चाहिए, ताकि पढ़ाई भी हो और
सेहत भी बनी रहे।