नए कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करने की तैयारी में हैं कांग्रेस शासित राज्य
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में बनाये गये तीन नए कृषि कानून को लेकर विपक्षी पार्टियों का विरोध लगातार जारी है। दावा किया जा रहा है कि यह कानून किसानों को नुकसान पहुंचाएगा। इन सभी कानूनों को वापस लेने की मांग पर विपक्षी दल साथ हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रस्ताव बाद कांग्रेसशासित राज्य नए कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर प्रस्ताव पारित कराने की तैयारी में हैं। यह ऐन उसी तरह किया जाना है जैसे कांग्रेस और गैर राजग सरकारों ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर किया गया था।
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की कानूनी समिति ने इस संबंध में एक मसौदा तैयार किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस शासित राज्य, केंद्र के नए कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए जल्द ही विधानसभा का सत्र बुलाएंगे। कांग्रेस शासित प्रदेशों, पंजाब, राजस्थान, पुडुचेरी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे अपने-अपने राज्यों में केंद्र के नए कृषि कानूनों को लागू नहीं करेंगे और इन्हें निष्प्रभावी करने के लिये अपनी राज्य विधानसभाओं में विधेयक लाएंगे।
सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों को दी संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत विधानसभा में कानून पारित करने की सलाह
नए कृषि कानूनों का कांग्रेस नए कृषि कानूनों का सख्त विरोध कर रही है और वह इन कानूनों के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में पार्टी शासित राज्यों को अपनी-अपनी विधानसभाओं में संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत कानून पारित करने की सलाह दी थी। कांग्रेस का दावा है कि अनुच्छेद 254 (2) किसी राज्य विधानसभा को संसद के कानून के प्रतिकूल कानून बनाने की अनुमति देता है, इस प्रावधान का इस्तेमाल भाजपा ने संप्रग सरकार द्वारा बनाये गए भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ किया था। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एक ओर जहां कांग्रेस शासित राज्य इस संबंध में कानून पारित करने वाले हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ गैर-राजग शासित राज्यों में भी ऐसा ही किए जाने की संभावना है, क्योंकि उनके द्वारा भी केंद्र के नए कृषि कानूनों का विरोध किया जा रहा है। कृषि संबंधी तीन नए कानूनों के खिलाफ लामबंद कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस और भारतीय किसान यूनियन समेत कई किसानों ने बीते दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन किए हैं। इससे ऐन उलट महाराष्ट्र के प्रमुख किसान संगठन शेतकारी किसान ने कृषि संबंधी नए कानूनों का समर्थन किया है।
मंडियों से मिलने वाला कर भी है राज्य सरकारों के विरोध का बड़ा कारण
एपीएमसी मंडियों का इन्फ्रास्ट्रक्चर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में खासा बेहतर है, यहां एमएसपी पर गेहूं और धान की ज्यादा खरीद होती है। पंजाब में मंडियों और खरीद केंद्रों की संख्या करीब 1,840 है, ऐसी मंडी व्यवस्था दूसरी जगह नहीं है। हालांकि, एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं। पंजाब में यह टैक्स करीब 4.5 फीसदी है। आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। विभिन्न राज्यों में ससत्तारूढ़ गैर राजग राजनीतिक दलों के विरोध की एक बड़ी वजह यह भी है कि उनके राजस्व के एक स्त्रोत पर असर पड़ सकता है। पंजाब और हरियाणा में बासमती निर्यातकों और कॉटन स्पिनिंग और जिनिंग मिल एसोसिएशनों ने तो मंडी शुल्क समाप्त करने की मांग की है। देश की विभिन्न मंडियों में फिलहाल किसानों से साढ़े आठ फीसदी तक मंडी शुल्क वसूला जाता है।