कोरोना महामारी के कारण लगभग 18 महीनों बाद राज्य सरकारें चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन के नियमों में छूट दे रही हैं और स्कूल दोबारा खुल रहे हैं लेकिन इस दौरान बच्चों की पढ़ाई को नुकसान से परेशान 76 प्रतिशत माता-पिता अब अच्चे बच्चों को स्कूल भेजने का जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं।
एजुकेशन टेक्नोलॉजी कंपनी लीड ने इसको लेकर माता-पिता और अभिभावकों के साथ एक सर्वे किया है जिसके परिणाम आज जारी किये गये। इसके अनुसार इसमें मिल लोगों में से 59 प्रतिशत को लगता है कि महामारी के कारण उनके बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हुआ है और दिल्ली में 76 प्रतिशत माता-पिता अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजना चाहते हैं। उनका मानना है कि स्कूलों के दोबारा खुलने से ही स्कूल का पूरा अनुभव मिलना संभव है।
इस सर्वे मेट्रो और नॉन-मेट्रो शहरों में रहने वाले उन 10500 माता-पिता के बीच किया गया जिनके बच्चे कक्षा 1 से लेकर 10 में पढ़ते हैं। सर्वे के अनुसार अपने बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 22 प्रतिशत माता-पिता के लिये स्कूल स्टाफ का वैक्सीनेशन सबसे बड़ी प्राथमिकता है। इसके अलावा 55 प्रतिशत महानगरीय माता-पिता ने सामाजिक दूरी को सबसे महत्वपूर्ण माना।
पेरेंट्स ने महामारी के दौरान बच्चों और खुद के सामने आई चुनौतियों पर बात की और याद किया कि शुरूआती दिनों में वे कैसे ‘वर्क फ्रॉम होम’ और ‘स्कूल फ्रॉम होम’ के बीच ताल-मेल बिठाते थे। अध्ययन में पाया गया कि 47 प्रतिशत महानगरीय माता-पिता ने अपने बच्चों के स्कूल में हर दिन 3 से 4 घंटे बिताये, जबकि ऐसा करने वाले नॉन-मेट्रो पेरेंट्स 44 प्रतिशत थे। सर्वे में श्नामिल अधिकांश माता पिता (63 प्रतिशत) को लगता है कि फिजिकल क्लासरूम में होने से बच्चों की सामाजिक पारस्परिक क्रिया बेहतर होती है।
गैर महानगरीय 40 प्रतिशत माता-पिता ने कहा कि उनके बच्चे ने पर्सनल कंप्यूटर पर पढ़ाई की थी, जबकि लगभग 60 प्रतिशत महानगरीय माता-पिता ने बताया कि उनका बच्चा लॉकडाउन का एक साल बीतने के बाद भी कंप्यूटर/लैपटॉप पर पढ़ता रहा। नॉन-मेट्रो के ज्यादातर स्टूडेंट्स ने स्मार्टफोन के जरिये स्कूल अटेंड किये, जिससे पेरेंट्स को अक्सर चिंता हुई।