पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण को बना मेगा प्लान
अरावली हिल रेंज में दिल्ली से गुजरात तक बनेगी 'ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया'
'ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ सहारा' की तर्ज पर की जाएगी विकसित
अरावली क्षेत्र में 14 सौ किमी लंबा और 5 किमी चौड़ा वनक्षेत्र बनाने की है तैयारी
अभियान चलाकर चरणबद्ध तरीके से लगाए जाएंगे विभिन्न प्रजातियों के फलदार और छायादार वृक्ष
केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण को मेगा प्लान का खाका खींचा है। इस क्रम में दिल्ली से गुजरात तक ग्रीन कॉरीडोर 'ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया' विकसित करने की तैयारी है। सरकार की योजना अरावली पर्वत श्रृंखला क्षेत्र में 1400 किमी लंबा और 5 किलोमीटर चौड़ा वनक्षेत्र खड़ा करने की है। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के साथ ही पश्चिम की तरफ से आने वाली धूल भरी हवाओं को रोकना भी है। इस हरित गलियारे को अफ्रीका के 'ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ सहारा' की तर्ज पर बनाया जाएगा।
दंश में पर्यावरण बचाने और हरित क्षेत्र बढ़ाने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार ने दिल्ली से हरियाणा-राजस्थान होते हुए गुजरात तक 1400 किलोमीटर लंबी 'हरित दीवार' यानी 'ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया' तैयार करने का फैसला किया है। दरअसल सरकार गुजरात से दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर तक 1400 किमी लंबी और 5 किमी तक चौड़ी ग्रीन वॉल बनाने की योजना पर विचार कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 'ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया' कही जा रही इस हरित दीवार या गलियारे को अफ्रीका की 'ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ सहारा' की तर्ज पर बनाया जाएगा, जिसे पर्यावरण और रेगिस्तान से निपटने के लिए विकसित किया गया था। इसके लिए बाकायदा जन जागरूकता अभियान चलाकर चरणबद्ध तरीके से विभिन्न प्रजातियों के फलदार और छायादार वृक्ष लगाए जाएंगे।
पर्यावरण संरक्षण को यह होगा भारत का एक बेहतरीन प्रयास
'ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया' बनाने को की जा रही कवायद को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत सरकार की तरफ से किए जा रहे प्रयासों में सबसे बेहतरीन माना जा रहा है। भारत सरकार हरित गलियारा तैयार करने की इस परियोजना को 2030 तक राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखकर साकार करना चाहती है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत दो करोड़ 60 लाख हेक्टेयर भूमि को प्रदूषण मुक्त करने का लक्ष्य है। ग्रीन कॉरीडोर विकसित करने की इस योजना को लेकर कई मंत्रालय और उनके अधिकारी खासे उत्साहित हैं। अधिकारियों के मुताबिक, सरकार इस प्लान को 2030 तक पूरा करने की योजना पर काम कर रही है। इस संदर्भ में तमाम आवश्यक औपचारिकताओं पर रजामंदी होते ही इस मेगा प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने का काम शुरू हो जाएगा।
उजाड़ हो चुकी अरावली की पहाड़ियों पर दिखेगी हरियाली
इस ग्रीन वॉल को तैयार किए जाने से एक तरफ जहां देश में घट रहे वन क्षेत्रों में इजाफा होगा, वहीं अंधाधुंध खनन और अवैध कटान से उजाड़ हो चुकीअरावली क्षेत्र में घटती हरियाली के संकट को भी कम किया जा सकेगा। सरकार के इस मेगा प्लान के सिरे चढ़ने के बाद गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में फैली अरावली पर्वत श्रृंखला की वृक्ष विहीन हो चुकीं पहाड़ियां भी एक बार फिर हरियाली बिखेरती दिखेंगी।
पश्चिम से आने वाली धूल भरी हवाओं को रोकने में कारगर
हरित गलियारे यानी 'ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया' का निर्माण थार रेगिस्तान के पूर्वी तरफ से किया जाएगा। यह गुजरात के पोरबंदर से लेकर हरियाणा के पानीपत तक विकसित किया जाएगा। दिल्ली-हरियाणा सीमा से राजस्थान होते हुए गुजरात तक अरावली क्षेत्र में बनने वाली यह ग्रीन वॉल पश्चिमी भारत और पाकिस्तान की तरफ से दिल्ली आने वाली धूल भरी हवाओं को रोकने में खासी कारगर सिद्ध होगी।
गुजरात के खेड़ब्रह्मा से दिल्ली में रायसीना तक है अरावली पर्वत शृंखला का विस्तार
अरावली या 'अर्वली' उत्तर भारतीय पर्वतमाला है। भौगोलिक संरचना के लिहाज से अरावली यह संसार की प्राचीनतम पर्वत शृंखला है। भारत में अरावली की वास्तविक शुरूआत अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप के मिनिकाय द्वीप से होती है। इसीलिए लक्षद्वीप या अरब सागर को अरावली का पिता कहते हैं। अरावली की पहाड़ियां वलित पर्वत हैं। वलित पर्वत वह होते हैं जो कि पृथ्वी के अंदर की उथल-पुथल के चलते धरातल की चट्टानों के मुड़ने से बनते हैं। धरातलीय या जमीनी रूप से भारत में अरावली की शुरूआत गुजरात स्थित खेड़ब्रह्मा नामक जगह से होती है तथा अन्त दिल्ली में रायसीना पहाड़ी पर होता है। इस दौरान अरावली भारत के कुल चार राज्यों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से होकर गुजरती है। 4 राज्यों में स्थित अरावली पर्वत शृंखला की लम्बाई- 692 किलोमीटर है। अरावली की औसत ऊंचाई 930 मीटर है तथा अरावली के दक्षिण की ऊंचाई व चौड़ाई सर्वाधिक है। इसकी चोटियां सामान्यत: 300 से 900 मीटर ऊंची हैं। अरावली का फैलाव 10 से 100 किलोमीटर तक है।
अरावली के पहाड़ों पर बसे हैं माउंट आबू, तारागढ़, मेहरानगढ़, उदयपुर और आमेर किला
अरावली का लगभग 80 फीसदी भाग राजस्थान में है। अरावली पर्वत श्रंखला राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बाँटती है। इसके उत्तर पश्चिम में थार का रेगिस्तान है और दक्षिण पूर्वी भाग वन प्रदेश है, अन्यथा अधिकांश क्षेत्रों में यह विरल, रेतीली एवं पथरीली है। यह राजस्थान के 16 जिलों में फैली है। अरावली की सर्वोच्च चोटी 'गुरुशिखर' (1727 मी.) राजस्थान स्थित सिरोही जिले के माउंट आबू में है। जयपुर का आमेर दुर्ग, जोधपुर के मेहरानगढ़ और अजमेर के तारागढ़ के साथ ही माउंट आबू और उदयपुर जैसे पर्यटक स्थल भी अरावली पर्वत श्रृंखला के अलग-अलग पहाड़ों का हिस्सा हैं। राजस्थान में अरावली को आडावाला डूंगर नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान राज्य के पूर्वोत्तर क्षेत्र से गुजरती हुई 560 किलोमीटर लम्बी इस पर्वतमाला की कुछ चट्टानी पहाड़ियां दिल्ली के दक्षिण हिस्से तक चली गई हैं।
अरावली के सबसे उत्तरी छोर रायसीना पहाड़ी पर बना है राष्ट्रपति भवन
अरावली हिल रेंज मुख्यरूप से गुजरात के खेड़ ब्रह्मा से शुरू होकर अजमेर, जयपुर होते हुए हरियाणा के दक्षिणी भाग में प्रवेश करके दिल्ली के दक्षिणी भाग तक जाती है। दिल्ली पहुंचते-पहुंचते इसकी ऊंचाई कम होते-होते मैदान में बदल जाती है। दिल्ली की रायशेला कहें कि रायसीना पहाड़ी अरावली पर्वत श्रृंखला का सबसे उत्तरी छोर है। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन रायशैला पहाड़ी पर बना हुआ है जिसे रायसीना भी कहा जाता है, जो अरावली का ही भाग है।
विश्व की प्राचीनतम पर्वतमालाओं में शुमार है अरावली पर्वत श्रृंखला
इस पर्वत श्रृंखला को अरावली नाम कैसे मिला, इसके बारे में जितने मुंह उतनी बातें या यूं कहें कि जितनी कलम उतनी किताबें। सामान्यत: कहा जाता है कि अरावली शब्द, संस्कृत के दो शब्दों - अरा और वली की संधि से बना है। अरा माने रेखा और वली माने पर्वत या ऊंचाई। ऐसे में अरावली मतलब होता है ऊंचाइंयों से बनी हुई एक रेखा। अरावली यानी पारियात्र दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह पर्वत श्रृंखला कितनी पुरानी है, इसे आप ऐसे समझें कि अरावली-हिमालय को दादा-पोते की जोड़ी भी कहा जाता है। अरावली पर्वत श्रृंखला न केवल भारत ही, बल्कि विश्व की प्राचीनतम पर्वतमालाओं में शुमार है। हिमालय पर्वत श्रृंखला को सबसे नवीनतम पर्वत श्रृंखला माना जाता है। अरावली पर्वत प्राचीन भारत के सप्तकुल पर्वतों में से एक है। यहां पर पारिजात वृक्ष पाया जाता है इसलिए इसे पारिजात पर्वत कहा जाता है। भारत के 7 पुराने पर्वतों को दशार्ने-गिनाने वाली एक बहुत पुरानी संस्कृत सूक्ति है - 'महेन्द्रो मलय: सह्य: शुक्तिमान् ऋक्षपर्वत: विन्ध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुल: पर्वता:' इसमें हिमालय का नाम नहीं है, लेकिन पारियात्र का नाम है। कहा जाता है कि कल का पारियात्र ही आज का अरावली है।
लगातार बढ़ रहा है मरुस्थलीकरण
विशेषज्ञों की मानें तो इस मरुस्थल का विस्तार पूर्व की ओर जारी है, नागौर और जयपुर के बीच अरावली की दीवार में अंतराल (वायु घाटियां) हैं, जिनसे होकर रेगिस्तान की रेत अरावली की दूसरी ओर (पूर्व की ओर) जा रही है। विशेषज्ञों का दावा है कि अलवर क्षेत्र में पसरती रेत प्रतिवर्ष आधा किमी की गति से मरुस्थल को खिसका रही है। अगर इसी तरह बढ़ता रहा तो हरियाणा व दिल्ली-एनसीआर के सीमा में प्रवेश कर जाएगा और यह मरुस्थल से घिर सकते हैं। अगर मरुस्थल के इस विस्तार को सघन पौधारोपण से नहीं रोका गया, तो आने वाले वक्त में यहां भी तपिश जानलेवा होगी।
रक्षा कवच का काम करती रही हैं ये पहाड़ियां
दिल्ली से गुजरात तक फैली अरावली की पहाड़ियां पश्चिम से आती रेगिस्तानी आंधियों और झुलसाने वाली प्रचंड गर्म और जानलेवा हवाओं को दिल्ली-एनसीआर में सीधे आने से सदियों से रोकती आई हैं। अगर यह पहाड़ियां नहीं होतीं तो राजस्थान की तर्ज पर यहां भी पारा 50 डिग्री को पार कर चुका होता। अरावली की वजह से ही एनसीआर का तापमान 6 से 8 डिग्री तक कम रहता है। बता दें कि दिल्ली-एनसीआर में लगातार तापमान बढ़ रहा है और मई महीने में अधिकतम तापमान 46.7 डिग्री तक पहुंच चुका है। राजस्थान के कई इलाकों में 51 डिग्री तक तापमान पहुंच चुका है। पर्यावरण और मौसम विज्ञानियों का दावा है कि ऊंचे पर्वतों पर धरती की सतह बहुत कम गर्म हो पाती है। धरती की सतह के बहुत कम ऊष्मा प्राप्त करने के कारण उसके द्वारा परावर्तित की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा भी कम होती है। जिससे धरती की सतह से परावर्तित होने वाली दीर्घ तरंगों से ऊंचे पर्वतों का वायुमंडल भी अपेक्षाकृत कम गर्म हो पाता है। अरब सागर से आने वाली गर्मी की मानसून राजस्थान के ऊपर से गुजरती हैं पर नमी के विशाल भंडार को संजोए रखने के कारण यहां से गुजरने वाली हवाओं के तापमान में कमी आ जाती
दिल्ली-एनसीआर के फेफड़े का काम करती रही है अरावली
पर्यावरणविदों का कहना है कि अरावली पर्वत श्रृंखला दिल्ली-एनसीआर के लिए फिल्टर या फेफड़े की तरह काम करती रही है। जब खनन और वृक्ष काटकर हमने इसे ही छलनी कर दिया तो हमारे हिस्से में जहरीली हवा ही आएगी। विकास के नाम पर पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं, लेकिन उसके बदले नया वन क्षेत्र विकसित नहीं किया गया। अरावली की बबार्दी रोकने को यदि समय रहते कारगर कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में दिल्ली-एनसीआर के हालात और खराब होंगे।
शुद्ध हवा पहुंचाने में इस पर्वत श्रृंखला की रही है अहम भूमिका
दिल्ली समेत पूरे एनसीआर क्षेत्र को शुद्ध हवा पहुंचाने में इस पर्वत श्रृंखला की अहम भूमिका रही है। आपने देखा होगा कि विगत कुछ वर्ष से दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधियां लोगों का सांस लेना मुश्किल कर देती हैं। इसका एक बड़ा कारण है राजस्थान की तरफ से आने वाली धूल भरी आंधी को रोकने में सहायक रही अरावली पर्वत शृंखला का तहस-नहस होना। अगर अरावली पहाड़ियां सही हाल में होतीं तो पूरे दिल्ली-एनसीआर को इस तरह धूल भरी आंधियों का सामना नहीं करना पड़ता। अरावली में लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं, वन क्षेत्र में अतिक्रमण जारी है इस रक्षा कवच को तबाह किया जा रहा है। आमतौर पर आंधी-तूफान हर साल आते ही रहते हैं। पाकिस्तान व अफगानिस्तान के बॉर्डर से हवाएं उठती हैं और वहां हिंदूकुश पर्वत से टकरा कर भारत की तरफ आती हैं। पहले जब अरावली पर्वत अपने सही हाल में था और वहां पेड़-पौधे थे, तब ऐसी धूल भरी आंधियां उससे टकरा कर रुक जाती थीं और ताजी हवा शहर के अंदर पहुंचाती थी। आज अरावली का सीना छलनी हो चुका है, जिसके कारण अरावली की ऊंचाई भी कम हो गई है। यही कारण है कि आज धूल भरी आंधी लगातार दिल्ली-एनसीआर को अपने आगोश में ले रही है। इसलिए अरावली पर्वत को बचाना बहुत जरूरी है।
अरावली में बीजारोपण को चलाई गई बीज बम की अनूठी मुहिम
अरावली पर्वत क्षेत्र को हरा-भरा बनाने के लिए बीते साल फरीदाबाद में एक अनूठा प्रयास शुरू किया गया। भारत विकास परिषद की पहल पर विगत वर्ष जुलाई माह में शुरू किए गए पर्यावरण संरक्षण अभियान के अंतर्गत अरावली की पहाड़ियों और घाटियों में ड्रोन की मदद से एक करोड़ से ज्यादा बीजों का छिड़काव किया गया। पर्यावरण इस अभियान की शुरूआत हरियाणा सरकार के तत्काली उद्योग मंत्री विपुल गोयल ने की थी। इस अभियान के तहत ड्रोन की मदद से बीज बमों को अरावली पर्वत शृंखला में फेंका गया। इस छिड़काव से पहले बीजों को भिगोकर रखा गया था, जिससे थोड़ी सी भी मिट्टी मिलते ही ये बीज जड़ पकड़ लें। इनमें मुख्य तौर पर पीपल, बड़, नीम, शीशम तथा जामुन के बीज थे। ड्रोन को आकाश में छोड़ने के बाद कुछ ऊंचाई पर जाने के बाद धीरे-धीरे खोला गया, जिससे बीज अरावली पहाड़ी क्षेत्र में बिखरते चले गए।