एक लेखक वक्त की किताब के पन्नों में जिन्दा तभी रह पाता है जब वो अपने दौर की हर आहट को पूरी ईमानदारी के साथ जीता है और उसे कलमबन्द करके अपने बाद की पीढ़ी के हवाले कर देता है ताकि उसके बाद आने वाली पीढ़ी उसकी लिखी हुई बातों से कुछ सबक ले सके. मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य के उन चन्द लेखकों में से एक हैं जिन्होंने अपनी जिन्दगी में जो कुछ भोगा, जो कुछ देखा उसी को अपने शब्दों के जरिये कागज पर उकेरने की कोशिश की.
आज हिन्दुस्तान के इस सबसे चर्चित लेखक की जन्मतिथि है. आज ही के दिन यानि 31 जुलाई 1880 को बनारस के लम्ही गांव में मुंशी प्रेमचन्द का जन्म हुआ था. उनका बचपन काफी आर्थिक तंगी से जूझा. जब वो मात्र 8 साल के थे तभी उनकी मां भी गुजर गई. एक तरफ पैसा ना होने की वजह से जीवन जीने के लिए आवश्यकताओं का आवाभ तो दूसरी तरफ मां गुजर जाने के बाद जिन्दगी में ममता की कमी. इन सभी बातों ने मुंशी प्रेम चन्द का दिमाग पर बहुत गहरा असर कियाा. वो अपने बचपन के खालीपन को पूरा करने के लिए किताबों का सहारा लेने लगे. इन्ही किताबों के अध्ययन ने मुंशी प्रेमचन्द के अन्दर एक कहानीकार को जन्म दिया. वो काफी कम उम्र में ही कहानिया लिखने लगे.
मुंशी प्रेमचन्द के पिता एक पोस्टमैन थे. अपनी पहली पत्नी के गुजर जाने के बाद उन्होने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां होने की वजह से प्रेमचन्द का इस महिला से कोई भावुक रिश्ता नही रहा. अपनी मां के गुजर जाने के गम में प्रेमचन्द काफी चुपचाप और अकेले रहने लगे थे. उनके पिता को अपने बेटे का ये अकेलापन देखा नही गया इसीलिए उन्होने अपने बेटे का अकेलापन दूर करने के लिए मात्र 15 साल की उम्र में उनकी शादी उनकी उम्र से बड़ी एक महिला से करवा दी. अपनी बाल अवस्था में हुई इस शादी को लेकर प्रेमचन्द ने लिखा है कि मेरी बीबी मुझसे उम्र में बहुत ज्यादा बड़ी थी. वो बहुत झगडालू किस्म की महिला थी. मेरे पिता ने अपने जीवन के अन्तिम दिनों में मेरी जिन्दगी नरक बना दी थी.
यू तो मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी जिन्दगी में तकरीबन साढ़े तीन सौ से ज्यादा कहानिया और दर्जन भर से ज्यादा उपन्यास लिखे लेकिन वो कहानिया जिन्होने उनका नाम साहित्य के इतिहास में अमर कर दिया वो गोदान, नमक का दरोगा, ईदगाह और कफन थी. इन कहानियों ने हिन्दुस्तान के कस्बों की उस सच्चाई को दुनियाभर से मिलवाया जो नेताओं के झूठों नारों और वादों में कही गुम सी गई थी. मुंशी प्रेमचन्द की कहानी में कितनी सच्चाई थी इस बात का अन्दाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि जब उनका पहला कहानी सग्रह सोजे वतन आया था तो अग्रेजी हुकूमत ने इस कहानी सग्रंह की लगभग 500 प्रतियों को सरेआम जलाने का फरमान जारी कर दिया कर दिया था.
मुंशी प्रेमचन्द ने जो जिया और जो देखा उसी को ताउम्र लिखते रहे. उन्होने अपने कहानियों के पात्रों के जरिये हिन्दुस्तानी आवाम की जिस सच्चाई को दुनिया के सामने पेश किया वो सच्चाई आज भी हमारे सामने मूंह बाये खड़ी हैंं.
Web Title: Munshi Premchand stories is the mirror of india
feature image: Munshi premchandra(www.prabhatkhabar.com)